________________
साढेतीन करोड नवीन श्लोकोंका कर्ता श्री हेमचंद्रसूरिजीने अपने रचे हुए योगशास्त्रके दूसरे प्रकाशकी वृत्तिमें यह श्लोक लिखा है । स्वजन्मकालएवात्म, जनन्युदरदारिणः मांसोपदेशदातुश्च , कथंशौद्धोदनेर्दया ।।११।। अर्थ । अपने जन्म काल में ही अपनी माता मायाका जिसने उदर विदारण करा तिसके, और मांस खानेके उपदेशके देनेवाले शुद्धोदनके पत्रके दया कहांसे थी, अपितु नही थी. इस उपरके श्लोकसें यह आशय निकलता है कि जब बुध गर्भमें था, तब तिसके सबबसें इसकी माता का उदर फट गया था, अथवा उदर विदारके इसकों गर्भमें से निकाला होवेगा. चाहो कोइ निमित्त मिला होवे, परंतु इनकी माता इनके जन्म देनेसें तत्काल मरगइ थी. तत्काल मरणांतो इनकी माताका बुद्ध धर्मके पुस्तकोमेंनी लिखा है. और बुद्ध मांसाहार गृहस्थावस्थामेंभी करता होवेगा, नहीतो मरणांत तकभी मांसके खानेसें इसका चित्त तृप्तही न हुआ ऐसा बौद्ध मतके पुस्तकों में ही सिद्ध होता है, इस वास्ते ही बौद्धमतके साधु मांस खाने मे घृणा नही करते है, और बेखटके आज तक मांस भक्षण करे जाते है, परंतु कच्चे मांसमें अनगिनत कृमि समान जीव उत्पन्न होते है, वे जीव बुधकों अपने ज्ञानसें नही दीखे है, इस वास्तेही बुध मतके उपासक गृहस्थ लोक अनेक कृमि संयुक्त मांसकों रांघते है और खाते है. इस मतमें मांसखानेका निषेध नही है, इस वास्तेही मांसाहारी देशोंमें यह मत चलता है।
प्र.८३. श्री महावीरजी छद्मस्थ कितने काल तक रहे और केवली कितने वर्ष रहे ?
उ. बारां वर्ष १२ व ६ मास १५ पंदरा दिन छद्मस्थ रहे, और तीस वर्ष केवली रहे है.
प्र.८४. भगवंतने छद्मस्थावस्थामें किस जगे चौमासे करे, और केवली हुए पीछे किस किस जगे चौमासे करे थे ?
उ. अस्थि ग्राममें १, दूसरा राजगृहमें २, तीसरा चंपामे ३, चौथा पृष्ठ चंपामें ४, पांचमा भद्रिकामे ५, छठा भद्रिकामें ६, सातमा आलरियामे ७, आठमा राजगृह मे ८, नवमा अनार्यदेशमे ९, दशमा सावस्तीमे १०, इग्यारमा विशालामे ११, बारमा चंपामे १२, येह १२, छद्मस्थावस्थाके
-
-
-
-
MAGERSOAGOREA6A6AG64GBAGDAGO00000०२
0000AGORGE000000000000000000AGOAGOOGor
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org