SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । उ. परोपकार करनां यह सर्व मनुष्यों को करना उचित है, धर्मी पुरुषकोंतो अवश्य ही करना उचित है । प्र.३५. श्री महावीरजीने किस वस्तुका त्याग करा था । उ. सर्व सावद्य योग का अर्थात् जीवहिंसा १ मृषावाद २ अदत्तादान ३ मैथुन स्त्री आदिकका प्रसंग ४ सर्व परिग्रह ५ इत्यादि सर्व पापके कृत्य करने करावने अनुमतिका त्याग करा था. प्र.३६. श्री महावीरजीने अनगारपणा कब लीनाथा और किस जगेमें लीनाथा और कितने वर्षकी उमर में लीनाथा ।। उ. विक्रमसे पहिले ५१२ वर्षे मगसिर वदी दशमीके दिन पिछले पहरमे उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रमें विजय महुर्तमें चंद्रप्रभा शिबिकामें बैठके चार प्रकारके देवते और नंदिवर्द्धन राजाप्रमुख हजारों मनुष्योंसे परिवरे हुए नानाप्रकारके वाजिंत्र बजते हुए बडिभारी महोत्सवसे न्यातवनषंड नाम बागमे अशोकवृक्षके हेठि जन्मसें तीस वर्ष व्यतीत हए दीक्षा लीनीथी. मस्तक के केश अपने हाथसें लुंचन करे और अंदरके क्रोध, मान, माया, लोभका लुंचन करा. प्र.३७. श्री महावीरजीकों दीक्षा लेनेसें तुरत ही किस वस्तुकी प्राप्ति हुइथी। उ. चौथा मनः पर्यवज्ञान उत्पन्न हुआ था । प्र. ३८. मनःपर्यवज्ञान भगवंतकों गृह स्थावस्थामें क्युं न हुआ. उ. मनः पर्यवज्ञान निग्रंथ संयमीकोही होता है अन्यको नही. प्र.३९. ज्ञान कितने प्रकारके है उ. पांच प्रकार के ज्ञान है । प्र.४० तिन पांचो ज्ञानके नाम क्या क्या है ? उ. मतिज्ञान १ श्रुतिज्ञान २ अवधिज्ञान ३ मनः पर्यवज्ञान ४ केवलज्ञान ५. प्र.४१. इन पांचो ज्ञानोंका थोडासा स्वरुप कहो. उ. मतिज्ञान विनाही सुने के जो ज्ञान होवे तथा चार प्रकारकी जो बुद्धि है सो मतिज्ञान है. इसके ३३६ तीनसौ छत्तीस भेद है | जो कहने सुनने GOOGOAGDAGOGRAG00GOAGOAGDAGORGEASEAN २ 00GBAGDAGOGSAGEAGOOGDAGDAGOGBAGAGer Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy