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________________ महिलोंमें भोग विलास कराया । उ. श्री महावीरजीके भोग विलासकी सामग्री महिला बागादि सर्वथी. परंतु महावीरजी तो जन्म से ही संसारिक भोग विलासों से वैराग्यवान् निस्पृह रहते थे, और यशोदा परणी सोभी माता पिताके आग्रह सें और किंचित् पूर्व जन्मोपार्जित भोग्य कर्म निकाचित भोगने वास्तें. अन्यथातो तिनकी भोग्य भोगने मे रति नही थी । प्र. ३०. श्री महावीरजीके कोइ संतान हुआ था तिसका नाम क्या था । उ. एक पुत्री हुइ थी तिसका नाम प्रियदर्शना था । प्र.३१. श्री महावीरस्वामी अपने पिताके घरमें मूलसें त्यागी वा भोगी रहे थे । उ. श्री महावीरजी २८ अठावीस वर्ष तकतो भोगी रहे पीछे माता पिता दोनो श्री पार्श्वनाथजी २३ में तीर्थंकर के श्रावक श्राविका थे । वेह महावीरजीकी २८ मे वर्षकी जिंदगी में स्वर्गवासी हुए पीछे श्री महावीरजीने अपने बडे भाइ राजा नंदिवर्द्धनकों दीक्षा लेने वास्ते पूछा, तब नंदिवर्द्धनने कहाकी अबहीतो मेरे माता पिता मरे है और तत्कालही तुम दीक्षा लेना चाहते हो यह मेरे कों बड़ा भारी वियोगका दुख होवेगा, इस वास्ते दो वर्ष तक तुम घरमे मेरे कहने से रहों, तब महावीरजी दो वरस तक साधुकी तरे त्यागी रहे. प्र. ३२. महावीरजीकी बेटीका किसके साथ विवाह करा था । उ. क्षत्रियकुंडका रहने वाला कौशिक गोत्रिय जमालि नामा क्षत्रिय कुमारके साथ विवाह करा था । प्र. ३३. श्री महावीरजीकों त्यागी होने का क्या प्रयोजन था । उ. सर्व तीर्थंकरोका यही अनादि नियम है कि त्यागी होके केवलज्ञान उत्पन्न करके स्व-परोपकारके वास्ते धर्मोपदेश करनां. तीर्थंकर अपने अवधिज्ञानसे देख लेते है कि अब हमारे संसारिक भोग्य कर्म नही रहा है और अमुक दिन हमारे संसार गृहवास त्यागने का है तिस दिन ही त्यागी हो जाते है. श्री महावीरस्वामीकी बाबतभी इसी तरें जान लेना. प्र.३४. परोपकार करनां यह हरेक मनुष्यकों करना उचित है । Jain Education International ००००००००० ११ ०००००००० For Private & Personal Use Only versendenser www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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