________________
नामकर्म ९० जिस कर्मके उदयसें जीवका स्वर मार्जार, उंट सरीखा होवे, सो दुःस्वर नामकर्म ९१ जिस कर्मके उदयसें जीवका वचन अच्छाभी होवे, तोभी लोक न माने सो अनादेय नामकर्म ९२ जिस कर्मके उदयसें जीवका अपयश अकीर्ति होवे, सो अयश कीर्ति नामकर्म , ९३ इति नामकर्म.६
____ अथ नामकर्मके बंध हेतु लिखते है ।। देव गत्यादि तीस ३० शुभ नामकर्मकी प्रकृतिका बंधक कौन होवे सो लिखते है. सरल कपट रहित होवे जैसी मनमें होवे तैसीही कायकी प्रवृत्ति होवे. किसी को भी अधिक न्यून तोला मापा करके न ठगे, परवंचन बुद्धि रहित होवे, शुद्धिगारव, रसगारव, सातागारव, करके रहित होवे, पाप करता हुआ डरे, परोपकारी सर्व जन प्रिय क्षमादि गुण युक्त ऐसा जीव शुभ नामकर्म बांधे तथा अप्रमत्त यतिपणे चारित्रियों आहारकद्विक बांधे, १ और अरिहंतादि वीस स्थानककों सेवता हुआ तीर्थंकर नामकर्मकी प्रकृति बांधे । और इन पूर्वोक्त कामोसें विपरीत करे अर्थात् बहुत कपटी होवे, झूठा, तोला, मान, मापा करके परकों ठगे, परद्रोही, हिंसा, जूठ, चौरी, मैथुन, परिग्रहमें तत्पर होवे, चैत्य अर्थात् जिनमंदिरादिककी विराधना करे, व्रत लेकर नग्न करे, तीनो गौरवमें मत्त होवे, हीनाचारी ऐसा जीव नरक गत्यादि अशुभ नाम कर्मकी ३४ चौतीस प्रकृति बांधे, येह सतसठ ६७ प्रकृतिकी अपेक्षा करके बंध कथन करा , इति नामकर्म ६ संपूर्ण.
अथ गोत्रकर्म तिसके दो भेद. प्रथम उच्च गोत्र, विशिष्ट जाती, क्षत्रिय कास्यपादिक उग्रादी कुल उत्तम बल विशिष्ट रूप ऐश्वर्य तपोगुण विद्यागुण सहित होवे, सो उच्चगोत्र १ तथा भिक्षाचरादिक कुल जाती आदीक लहे सो नीचगोत्र २ अथ उच्चगोत्रके बंध हेतु ज्ञान , दर्शन, चारित्रादीक गुण जिसमें जितना जाने, तिसमें तितना प्रकाशकर गुण बोले, और अवगुण देखके निंदे नही , तिसका नाम गुण प्रेक्षीहै, ऐसा गुण प्रेक्षी होवे , जातिमद १ कुलमद २ बलमद ३ रूपमद ४ सूत्रमद ६ ऐश्वर्यमद ६ लाभ मद ७ तपोमद ८ ये आठ मदकी संपदा होवे, तोभी मद न करे, सूत्र सिद्धांत तिसके अर्थके पढने पढानेकी जिसकों रुचि होवे, निराहंकारसें सुबुद्धि पुरुषकों शास्त्र समझावे, इत्यादि परहित करनेवाला जीव उच्चगोत्र बांधे, तीर्थंकर सिद्ध प्रवचन संघादिकका अंतरंगसें भक्तीवाला जीव उच्चगोत्र बांधे, इन पूर्वोक्त गुणोसें विपरीत गुणवाला अर्थात् मत्सरी १ जात्यादि आठ मद सहित अहंकारके
GOAGRAGUAGLAGUAG000000000000000000000८५
RAGUAGBAGDAG80GUAGEAGUAGO0000000GBAGr
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org