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का तो पूछना ही क्या ? अर्थात् क्या सभी शून्य ही है ?
सब असत् होने में यह तर्क प्राप्त हुआ :'सर्व शून्यं' का तर्क; - वस्तु असत् है; क्योंकि - (१) वस्तु परस्पर सापेक्ष है। (२) इसमें सत्व का संबंध अघटित है । (३) इसकी उत्पत्ति अघटित है। (४) इसकी उत्पादक सामग्री अघटित है । (५) इसका प्रत्यक्ष अघटित है ।
(१) वस्तु की सिद्धि सापेक्ष है; क्योंकि सत् वस्तु स्वतः या परतः अथवा स्व पर उभयत: सिद्ध होती है। अब वस्तु चाहे कारणरूप हो अथवा कार्यरूप हो सकती है। इसका कोई कार्य हो तो वह कारण कहलाये; परन्तु प्रथम वह कारण स्वरूप सिद्ध हो, तभी उसे कार्य कहें न ? कारण स्वयं सिद्ध नहीं होता, तो इस पर अवलम्बित कार्य भी कहां से सिद्ध हों ? इसी तरह कार्य भी स्वतः सिद्ध नहीं, अत: उस पर आधारित कारण भी कैसे सिद्ध हो ? इस प्रकार हस्व-दीर्घ, दूर-नजदिक, पिता-पुत्र आदि भी परस्पर सिद्ध होने पर सिद्ध होते हैं । बीच की अंगुली बड़ी सिद्ध हो तो पहली अंगुली छोटी सिद्ध होती है और यदि पहली अंगुली छोटी सिद्ध हो तो बीच की अंगुली बड़ी सिद्ध होती है। तात्पर्य यह है कि पदार्थ परस्पर सापेक्ष होने से स्वत: सिद्ध नहीं तो परतः भी सिद्ध नहीं । इसीलिए स्वतः परत: उभय से सिद्ध कैसे हो ?
(२) घटादि वस्तु में सत्-सत्व-अस्तित्व वस्तु से अभिन्न अथवा भिन्न ? (i) यदि अभिन्न, तो 'जो जो अस्ति वह वह घट' ऐसा आया अर्थात् सभी पदार्थ घटरूप बनेंगे । परन्तु फिर घड़ा भी सिद्ध नहीं। क्योंकि कोई अघट हो तो इसे घट कहें न ? अर्थात् सभी असत् है । (ii) यदि सत् वस्तुसे भिन्न, तो वस्तु स्वयं सत् स्वरूप नहीं रही ! असत् ही बनी । इस प्रकार अघट सिद्ध हुए बिना 'घट' शब्द से अभिलाप्य (अभिधेय) भी कैसे बन सकता है ? अर्थात् सत् की भाँति अभिलाप्य भी कुछ नहीं । तात्पर्य यह है कि वस्तु और सत्व का सम्बन्ध घटित न होने से सब शून्य है। .. (३) इसी तरह (i) उत्पन्न वस्तु उत्पन्न होती है ? अथवा (ii) अनुत्पन्न वस्तु उत्पन्न होती है ? या (iii) उभय अर्थात् उत्पन्न-अनुत्पन्न उत्पन्न होती है ?
(i) प्रथम नहीं, क्योंकि उत्पन्न को पुनः उत्पन्न करने का परिश्रम व्यर्थ होता
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