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है । उत्पन्न तो है ही, फिर भी उत्पन्न होता हो तो अनवस्था, अर्थात् उत्पन्न होता ही रहे ! (ii) जब कि अनुत्पन्न, तो अश्वश्रृंग जैसे कहलाता है; यह उत्पन्न हो ही नहीं सकता । (iii) तीसरा भी नहीं, क्योंकि प्रत्येक पक्ष का दोष उभय पक्ष में लगता है । फिर उभय भी कोई वस्तु है या नहीं ? यदि है, तो उत्पन्न ही हो, उभय कैसे? यदि नहीं तो अनुत्पन्न ही हो, उभय कैसे ? (iv) 'उत्पद्यमान जन्म लेती है' ऐसा कहते हो तो उत्पद्यमान भी है कि नहीं ? इसमें तृतीय विकल्प जैसा दोष है। सारांश यह है कि उत्पत्ति असंभवित, अतः वस्तु असत् ।
(४) वस्तु उपादान और निमित्त कारणों की सामग्री से बनती दिखाई देती है, अर्थात् सब सामग्रीमय दिखाई देता है। परन्तु जहाँ 'सर्व' जैसा कुछ है ही नहीं, तो सामग्री कैसी? एवं यदि इन प्रत्येक में जनन-सामर्थ्य नहीं, तो समस्त सामग्री में कैसे हो? अर्थात् जनन-सामर्थ्य-विहीनों के समूह में भी कारण-सामग्रीपन कैसे घटित हो सकता है ? समूह में इस दृष्टान्त से जनन-सामर्थ्य नहीं है कि बालू के प्रत्येक कण में तेल नहीं तो समह में भी नहीं। और अगर प्रत्येक कारण में सामर्थ्य हो तो एक एक से भी कार्य होना चाहिए । इस प्रकार उत्पादक सकल सामग्री के असंभव से वस्तु असत् ।
(५) एवं कोई वस्तु अदृश्य तो है ही नहीं, क्योंकि दिखाई नहीं देती । तो दृश्य भी नहीं, क्योंकि जो दिखाई देता है वह वस्तु का पिछला नहीं परन्तु ऊपर का ही अथवा अगला ही भाग होता है । यह भाग भी सावयव होने से इसमें भी ऊपरी अथवा अग्रभाग ही दिखाई देता है। इसमें भी इसी प्रकार ... यावत् बिल्कुल ऊपरी अथवा अग्रिम परमाणु-पहलु आता है और परमाणु तो अदृश्य करते हो । इस प्रकार सर्व अद्रश्य ! अतः सर्व शून्य है।
अब इसका उत्तर देते हैं। 'सर्व शन्यं' का खंडन :
(१) प्रथम तो, अगर सभी वस्तुएँ असत् ही होती हों तो पंचभूत है या क्या ? ऐसा संदेह ही क्यों होता है ? क्योंकि असत् अश्वश्रृंगादि में संदेह नहीं होता कि 'यह अश्वश्रृंग' है अथवा गर्दभश्रृंग ? और संदेह सत् ही में होता है, जैसे 'यह ढूंठ है अथवा मानव ?' किन्तु असत् में नहीं, ऐसा भेद क्यों ? अत: कहो कि जिसमें संदेह होता है, वह सत् सिद्ध होती है। अन्यथा विपरीत क्यों नहीं ? जैसे कि असत् में ही संदेह की अनुभूति होती है, सत् में नहीं ! ऐसा क्यों नहीं ?
(२) यदि सभी शून्य हों, तो संदेह स्वयं भी असत् सिद्ध होता है । (३) संदेह भ्रमादि ज्ञान के पर्याय है, वे ज्ञेय से ही संबद्ध होता है। सर्वशून्य
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