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________________ उत्तर- इस प्रकार भी जानने के लिये, पहिले सब में अपने जैसा सत्पन जानना चाहिये । (अन्यथा असत् भी क्षणिक सिद्ध होगा ! 'भले हो,' कहना नहीं, क्षणिक यानी क्षण में नाश; असत् का फिर नाश क्या ?) तभी 'वे सब सत् होने से क्षणिक है' ऐसा जाना जाए न ? किन्तु यह सत्पन पहिले जानने जाए इतने में तो स्वयं नष्ट है, तो इस पर से सर्व क्षणिक कौन जाने ? वास्तव में तो 'क्षण बाद में नष्ट हूँ' ऐसा स्वयं अपना भी कैसे जाने यदि स्वयं ही क्षण भर बाद टिकता नहीं ? 'संस्कार से संस्कारित जान सकता है, ' पर तब भी (i) संस्कार और संस्कारित एक साथ विद्यमान होने चाहिये, तथा (ii) संस्कार स्थायी अर्थात् अक्षणिक होने चाहिये । तात्पर्य यह है कि एक अविनाशी आत्मा मानो तो ही यह सब घटित हो सकता है । (२०) वेद में कथित दानादि के फल भी, देह से अगर भिन्न आत्मा हो, तभी घटित हो सकते है । 'तब देह में प्रविष्ट होती अथवा देह से निकली हुई यह क्यों नहीं दिखाई देती ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि पूर्वकथित सूक्ष्मतादि के कारण वस्तु होती हुई भी अदृश्य रहती है । (२१) इस प्रकार पूर्व -कथित योग-उपयोग- ईच्छा - रागादि व आंतरिक सुखदुःखादि संवेदन ये सब देह की हानि बुद्धि से घटते बढ़ते हों - ऐसा नियम नहीं है। इससे पता चलता है कि ये धर्म देह के नहीं है, परन्तु भिन्न आत्मा के है । पूर्व जन्म का स्मरण, देह की अपेक्षा आत्मा के भिन्न शब्द पर्याय, प्रसंगवश सबसे अधिक प्रिय आत्मा के लिए देह का भी त्याग, इत्यादि हेतु भी भिन्न आत्मा को सिद्ध करते हैं । भगवान के इस प्रकार समझाने से वायुभूति की शंका नष्ट हो गई, और उन्होंने भी अपने ५०० विद्यार्थीयों सहित प्रभु के पास चारित्र - ग्रहण किया । * चौथे गणधर - पंचभूत सत् हैं ? अब चौथे व्यक्त नामक ब्राह्मण प्रभु के पास आए । प्रभु ने इनके मन का संदेह कहा कि 'स्वप्नोपमं वै जगत्' इत्यादि वेद पंक्ति से तुम्हें हुआ कि जगतमान्य पंचभूत स्वप्नवत् मिथ्या हैं, अर्थात् सत् नहीं; और दूसरी ओर 'पृथ्वी देवता, आपो देवता...' आदि वचन से देवतारूप भूत सत् होने का लगा, इससे शंका हुई कि 'पंचभूत सत् होंगे अथवा असत् ?' द्रश्य भूत में भी संदेह होता है तो फिर आत्मा Jain Education International व्यक्त * * ४९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003226
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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