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________________ आनंदघन: कबीर, मीरा और अखा के परिप्रेक्ष्य में : 65 "उपजी धुनी अजपा की अनहद, जित नगारे वारी; झड़ी सदा आनंदघन बरखत वनमोर एक तारी ।” शुद्ध चेतना के मंदिर में चेतन आता है, अवर्णनीय मिलन होता है और आत्मस्वरूप का दर्शन होता है । इस समय यह विचार उठता है कि इसमें कर्ता कौन है ? यह करनी किसकी है ? और फिर इसका हिसाब कौन मांगेगा ? कवि आनंदघन कहते हैं : "साधुभाई ! अपना रूप देखा, साधुभाई ! अपना रूप देखा, करता कौन कौन कुनी करनी ? कौन मागेगा लेखा ?"13 ऐसे समय में दिन किस तरह आनंद से बीते इसका वर्णन सुमति के मुख से करवाते हुए आनंदघन कहते हैं कि हे चेतन । तेरे मीठे बोल पर मैं बलिहारी जाऊँ । तेरे बिना मुझे अन्य सभी बुरे लगते हैं । अब तो मैं तेरे बिना रह नहीं पाऊँगी । सुमति कहती है : “मेरे जीयकुं कल न परत है, बिन तेरे मुख दीठडे; प्रेम पीयाला पीवत पीवत, लालन ! सब दिन नीठडे ।" इस समय सोहं-सोहं की ध्वनि गूंजने लगती हैं । कवि आनंदघन को तो इसके अलावा दूसरा कुछ सोचना पसंद ही नहीं : "चेतन ! ऐसा ज्ञान विचारो, सोहं सोहं सोहं सोहं, सोहं अणु न बीया सारो ।"14 अंतर के दरवाजे पर विजय का डंका बजने लगता है। आनंद राशिरूप वर्षा मूसलाधार बरसने लगती है और वन के मोर उसके साथ एकाकार हो जाएँ ऐसी एकरूपता सुमति और चेतन के बीच स्थापित होती है। मीरां और आनंदघन के पदों में निरूपण का लालित्य है, परन्तु दोनों के वर्णन-विषय बिलकुल अलग हैं । मीरां प्रणय की निर्व्याज अनुभूति को सहजता से निरूपित करती हैं, जबकि आनंदघन में यह प्रणय सुमति और चेतन के आत्मपिपासु प्रणय के परिवेश में लिपटा हुआ है । मीरां कहती हैं कि उसने तो 'प्रेम आंसु डार डार अमर वेल बोई ।' इस प्रकार मीरां द्वारा चित्रित प्रणय में वे स्वयं पात्र के रूप में आती हैं । जबकि आनंदघन में तो कवि प्रणय-आलेखन में भी अध्यात्मभाव को अभिव्यक्त करने वाले रूपकों को आलेब्रित करते हैं । मीरां के पदों में आनेवाले पात्र, स्थूल जगत के पात्र हैं, जबकि आनंदघन के पात्र किसी आत्मानुभव के प्रतीक रूप में आलेखित रूपक हैं । चेतन पति, सुमति पत्नी, कुमति शोक्य (सौत), ज्ञान (अनुभव) और विवेक वह सुमति के भाई तथा चेतन के मित्र हैं। प्रेम विरहिणी मीरां के पद आत्मलक्षित अधिक प्रतीत होते हैं, जबकि ज्ञानी आनंदघन के पद अपेक्षाकृत अधिक परलक्षी हैं । मीरां में जो नारी हृदय का जादूगर है उसी प्रकार के उद्गार आनंदघन में भी मिलते हैं परन्तु वहाँ इन उद्गारों को कवि रूपक रूप में आलेखित करता है । इसलिए मीरां के पदों में तादात्म्य और आनंदघन के पदों में तटस्थता का अनुभव होता है । मीरां की वेदना उनके हृदय से निकली हुई है, तो आनंदघन की वेदना मर्मज्ञ संत की वेदना है । आनंदघन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003220
Book TitleBhartiya Sahitya ke Nirmata Anandghan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherSahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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