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2 : आनंदघन
ई. स. 1597 माह शुक्ला एकादशी के दिन महाराणा प्रताप का स्वर्गवास हुआ । राणा प्रताप के स्वर्गवास के पश्चात् भी मेवाड़ पर कब्ज़ा करने की अकबर की इच्छा उतनी ही तीव्र रही । उसने शाहजादे सलीम को महाराणा अमरसिंह के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजा, पर असफल रहा । पुन: अपने प्रशासन के अड़तालीसवें साल ई. स. 1604 दशहरा के दिन शहजादे सलीम को विशाल सैन्य और शूरवीर सरदारों के साथ मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया, पर इस बार भी उसे सफलता नहीं मिली' । ई. स. 1606 की कार्तिक शुक्ला 14 के रोज़ मंगलवार को शहनशाह अकबर का निधन हुआ और जहाँगीर को राजगद्दी मिली ।
मेवाड़ की स्वतंत्रता और उसका अखंड गौरव जहाँगीर से बिलकुल बर्दाश्त नहीं होता था । अत: उसने मेवाड़ पर एक के बाद एक कई आक्रमण किये । शहज़ादा परवेज़, मोहब्बतखान और अब्दुल्लाखां की अगुआई में किये गए आक्रमण असफल सिद्ध हुए । नतीजा यह हुआ कि जहाँगीर खुद अजमेर आकर रहा । शहज़ादे खुर्रम को लड़ने के लिए भेजा और मेवाड़ को चारों और से घेर लिया ।
___ मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह को सुलह करनी पड़ी । चारसौ वर्षों के मेवाड़संघर्ष का अंत हुआ । पर इस सुलह के बाद भी मेवाड़ के महाराणा मुग़लो की जीहजूरी करने की बजाय स्वतंत्र ढंग से ही व्यवहार करते थे । तत्पश्चात् अमरसिंह, कर्णसिंह, जगतसिंह और राजसिंह (प्रथम) मेवाड़ के सत्ताधीश बने । ई. स. 1719 की श्रावण शुक्ला के दिन औरंगज़ेब मुग़ल राज्य का स्वामी बना । ऐसे समय में अपने धर्म की आराध्य मूर्तियों को बचाने के लिए सब मेवाड़ आ पहुँचे और मेवाड़ ने सभी को आश्रय दिया । उत्तर में मेवाड़ के महाराणा राजसिंह और दक्षिण में शिवाजी औरंगज़ेब के प्रखर प्रतिद्वन्दी बने। ई. स. 1671 में शिवाजी ने औरंगज़ेब के कब्ज़े के प्रदेश पर आक्रमण शुरू कर दिया ।
आनंदघनजी के समय में गुजरात की राजनीतिक परिस्थिति पर नज़र डालें तो पता चलता है कि तब मुग़ल शहनशाह के सूबे गुजरात का राज-क। न चलाते थे । ई. स. 1701 से ई. स. 1706 के दौरान मिर्जा अज़ीज़ लोला ने आग्रा में रहते हुए गुजरात का राज-काज देखा । बादशाह जहाँगीर के शासनकाल के दौरान गुजरात में लगभग आठ के करीब मुग़ल सूबेदार आ चूके थे । जहाँगीर अपने स्मृतिग्रंथ 'तुजूके जहाँगीरी' में इस बात का उल्लेख करते हैं कि गुजरात की मुलाकात लेने की वे तीव्र इच्छा रखते थे । जो पहले कभी न किया था, वह हाथी का शिकार करने के लिए और पहले जो कभी नहीं देखा था ऐसा लवण समुद्र देखने के लिए जहाँगीर गुजरात में आया । खंभात में दस दिन उन्होंने समुद्री सफर का आनंद उठाया और पंचमहाल के जंगलों में हाथी का शिकार किया । शाहज़ादा शाहजहाँ ने जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह किया और इस आंतरविग्रह का असर गुजरात पर पड़ा । शाहजहां के शासन के दौरान आरंभिक आठ वर्षों में गुजरात में पाँच सूबेदार बदले गए । सन् 1701 में गुजरात के इतिहास में एक उल्लेखनीय घटना घटी । बादशाह शाहजहाँ ने २७ वर्षीय औरंगज़ेब को गुजरात के सूबेदार के रूप में भेजा । इस समय में औरंगज़ेब की परधर्म के प्रति असहिष्णुता स्पष्टत: लक्षित होती है । दाराशिकोह,
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