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________________ जीवन : 3 शाइस्तखान और मुरादबक्ष गुजरात के सूबेदार बनकर आये और उस समय मुग़ल शहनशाहत हाँसिल करने के लिए जहाँगीर के बेटों ने जो सियासी षड्यंत्र किए, उसका गुजरात पर काफी प्रभाव पड़ा । ई. स. 1655 में औरंगज़ेब ने गुजरात की प्रजा पर धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों को मनाने के लिए पाबंदी लगा रखी थी । दिवाली की रात को की जानेवाली रोशनी और होली के त्यौहार पर प्रज्ज्वलित की जाने वाली होली का उसने विरोध किया । इन सब जानकारियों का उल्लेख 'मिराते अहमदी' के फरमानों में है । 4 इस तरह आनंदघनजी के समय के दौरान राजस्थान की स्थिति राजनीतिक संघर्षों से विक्षुब्ध रही, तो गुजरात के सूबेदार के रूप में औरंगज़ेब का आगमन होने के कारण गुजरात की धार्मिक स्थिति भी डाँवाडोल रही । धर्मरक्षक साधुसंतो का अडिग सांस्कृतिक दुर्ग उसके सामने टक्कर झेल रहा था। इसी वजह से इस समय की विशेष ऐतिहासिक घटनाओं या आर्थिक परिस्थितियों का वर्णन सियासी या प्रजालक्षी इतिहास में महत्त्वपूर्ण बन जाता है, लेकिन आनंदघन जैसे साधक के जीवन और कृतित्व के लिए अन्य जानकारियाँ मायने नहीं रखती हैं । ऐसे साधक तो बहिर्मुख सृष्टि के रसाभासों में फँसे बिना विश्व के अंतरंग में विराजमान परम चैतन्य के साथ समाधिस्थ रहते हैं । दुनिया की सुख-सुविधा को जंजाल मानकर वे जगत की यवनिका के पीछे छिपे परमतत्त्व को खोजने का प्रयास करते थे । चर्मचक्षु के द्वारा जिस पदार्थ की थाह नहीं ली जा सकती, उसे अंतर्चक्षु के द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करते । आनंदघन के जीवन और कृतित्व में नकद सत्य की खोज की चाह थी । बाह्य परिस्थिति, आस-पास की प्रवृत्तियों का बवंडर और दृश्यमान घटनाओं को पार करके वे परमतत्त्व की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते थे । योगी आनंदघन के समय में जैन धर्म की परिस्थिति देखें । विक्रम की सोलहवीं सदी में जैन भंडारों में शुद्ध पाण्डुलिपियाँ तैयार करने की तथा भंडारों को व्यवस्थित करने की ज्ञानप्रवृत्ति प्रारंभ हो गई थी । उसके साथ-साथ साहित्यसृजन की प्रवृत्ति का भी विकास होने लगा था । विक्रम की सतरहवीं सदी में अकेले तपागच्छ में ही बावन पंडित हो गए। कई सालों के बाद धर्मप्रवृत्ति के लिए ऐसा अनुकूल समय आया था । दूसरी ओर जैन साधु ज्ञान और वैराग्य द्वारा जैन धर्म के प्रभाव का प्रसार कर रहे थे । तपागच्छ के हीरविजयसूरि ने शहनशाह अकबर को जैन धर्म का स्वरूप समझाया था । जैन धर्म के पाँच व्रतों का उपदेश दिया था। अकबर ने इस जैन सूरि को कुछ उपहार देने की हार्दिक अभिलाषा प्रकट की, लेकिन तब इन्होंने जवाब दिया कि अपरिग्रही साधु के लिए कोई भी उपहार अस्वीकार्य है । बादशाह अकबर ने अत्यंत आग्रह किया, तो हीरविजयसूरि ने कहा कि, बंदियों को कैद में से मुक्त कर दीजिए और पिंजरे में कैद पंछियों को आज़ाद कर दीजिए। इसके अलावा पर्युषण के आठ दिन हिंसा पर निषेध फरमाइए। उन आठ दिनों में बादशाह ने अपने चार दिन जोड़कर बारह दिन समग्र राज्य में 'अमारि' प्रवर्तमान हो, ऐसा फरमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003220
Book TitleBhartiya Sahitya ke Nirmata Anandghan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherSahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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