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आनंदघन: कबीर, मीरा और अखा के परिप्रेक्ष्य में : 59
नहीं है, जहाँ संत आनंदघन और उनके काव्य पहुँच सके हैं ।
की तरह आनंदघन भी 'अगम पियाला' की मस्ती आलेखित करते हुए
कहते हैं।
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" अगम पियाला पियो मतवाला, चीन्ने अध्यातम वासा, आनंदघन चेतन है खेले, देखे लोक तमासा । आशा 15
कवि आनंदघन अध्यात्ममत में लीन लोगों को अगम प्याला पीने के लिए आमंत्रण देते हैं और उसके लिए अध्यात्म का निवास कहाँ है यह ढूँढने के लिए कहते हैं और जब अगम प्याला पीने का आनंद प्राप्त होता है, तब संसार-प्रपंच प्रत्यक्ष दीखता है । इस तरह से दोनों ने 'विरला अलख जगावे' का बोध दिया है; लेकिन दोनों की शैली भिन्न है ।
कबीर के पदों में उपदेशों का निरूपण है तो आनंदघन के पदों में सिद्धांत है । कबीर के पद मानवचित्त को बाह्य सरोकारों से मुक्त करके अन्तर्मुख होने के लिए प्रेरित करते हैं जबकि आनंदघन का उपदेश व्यक्तिं को योग और अध्यात्म की गहराई का अनुभव कराता है । कबीर में व्यावहारिक दृष्टि है और उसमें से मिलते दृष्टांतों की अधिकता है, जबकि आनंदघन में योगदृष्टि है । कबीर के पद आम आदमी को छू लेते हैं, जबकि आनंदघन के पद योग और तत्त्वज्ञान से भरपूर होने के कारण उन्हें समझने के लिए विशेष सज्जता की आवश्यकता होती है ।
कबीर के पदों में आम जनता के हित को लक्ष्य में रखा गया है, जबकि आनंदघन के पदों में व्यक्ति को भक्ति के लिबास में आत्मा की गहराई में ले जाने का प्रयास है । कबीर के पदों में कहीं भी गुजराती भाषा का प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता जबकि आनंदघन के पद राजस्थानी भाषा में होने के बावजूद उनमें गुजराती भाषा का प्रभाव लक्षित होता है । उपदेशक का आवेश उनमें दिखाई देता है । जबकि आनंदघन की शैली आत्मज्ञान की पर्त-दर-पर्त को खोलकर दिखानेवाली है । कबीर में सत्यार्थी सन्त का उत्कट अभिनिवेश देखने को मिलता है, जबकि आनंदघन में सत्यार्थी बैरागी आत्मा की उत्कट अनुभूति दृष्टिगत होती है । कबीर को समझने के लिए रहस्यवादियों की परंपरा को जानना आवश्यक है, जबकि आनंदघन की थाह पाने के लिए रहस्यवादियों की परंपरा के अतिरिक्त जैन परिभाषा जानने की अपेक्षा रहती है ।
इस तरह से कबीर और आनंदघन के पदों में उनका व्यक्तित्व प्रकट होता है । दोनों का हृदय कवि का, मन योगी का और मिज़ाज बादशाह का था । उनके पदों में मस्ती की झलक है । कानों में निरंतर गूँजनेवाला श्रुतिपटुत्व है । पदों का उन्नत और आलौकिक भाव, चोटदार रूपक, गहनमधुर भाषा और गहरा रहस्यगर्भित चिंतन काव्यरसिकों को आनंद में तल्लीन कर देता है | आनंदघन के पदों की संख्या कबीर जितनी नहीं है । कबीर जैसा आवेशपूर्ण बयान उसमें नहीं है । उसमें व्यवहारिक जीवन की नकद कल्पना नहीं है, इसके बावजूद आनंदघन के पद अपनी संख्या के अनुपात में ऊँची गुणवत्ता रखते हैं । उसमें विकसित कमल जैसा आत्मज्ञान, भावों का लालित्यपूर्ण आलेखन रहस्यगर्भित अनुभूति का वेधक
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