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58 : आनंदघन
कबीर कहते हैं
:
" ज्ञानी भूले ज्ञान कथि निकट रह्यो निज रूप, बाहर खोजैं बापुरे भीतर बस्तु अनूप ।"
( ज्ञानी बिचारा ज्ञान की बातों के भँवर में भटक गया था । अपना सच्चाअसली स्वरूप अपने ही पास था । जो अनुपम चीज उसके भीतर थी उसकी तलाश में बेचारा कस्तूरीमृग की तरह बाहर भटक रहा था ।)
संत कबीर की तरह आनंदघन भी शास्त्र के बदले अनुभव के रसरंग में लीन
हैं ।
आनंदघन ‘अवधू क्या मांगू गुणहीना' पद में कहते हैं कि मैं वेद नहीं जानता, किताब नहीं जानता, विवाद करने के लिए में तर्क नहीं जानता, कविता के लिए छंद रचना भी नहीं जानता । आपका जाप नहीं जानता । “बस मैं सिर्फ तेरे द्वार पर खड़ा रहकर तेरा नाम जपना जानता हूँ ।"
मध्यकालीन रहस्यवादी कवियों में 'अवधू' 'निरंजन' और 'सोहं' जैसे शब्दों के प्रयोग देख सकते हैं । संत कबीर की बानी में तो 'अवधू' शब्द बारबार दीखता है, आनंदघन के पदों में भी 'अवधू' शब्द का प्रयोग मिलता है । इस 'अवधू' शब्द का प्रयोग आनंदघनजी ने अपने पदों में साधु या संत के अर्थ में किया है । वे कहते हैं :
" साधो भाई ! समता रंग रमीजै, अवधू ममता संग न कीजै ।"
इसी तरह से आनंदघन निरंजन शब्द का प्रयोग परमात्मा के अर्थ में करते हैं । जो समस्त व्यर्थ आशाओं का हनन करके ध्यान के द्वारा अजपा जप की रट लगाता है, वही आनंद के घन को, निरंजन को पा सकता है । यह निरंजन सकल भय को हरनेवाला है, कामधेनु है और इसीलिए अन्यत्र भटकने के बदले निरंजन के शरण में जाना उसे ज्यादा पसंद है ।
" अब मेरे पति गति देव निरंजन
भटकूँ कहाँ, कहाँ सिर पटकूँ कहाँ करूँ जन रंजन खंजन दृगन लगाऊँ, चाहूँ न चितवन अंजन संजन-घट अंतर परमातम सकल-दुरति भय भंजन एह काम एह काम घट एही सुधारस मंजन
आनंदघन प्रभु घट बन केहरि काम मतंग गज गंजन ।”
आनंदघनजी के पदों में हठयोग की साधना का प्रभाव देखने को मिलता है । 'अवधू' के संबोधन से उनके अनेक पदों में इसी साधना की बात की है । 'आत्मानुभव' और 'देहदेवल मठवासी' की बात भी आनंदघन की कुछ साखियों में मिलती है । आनंदघन कहते हैं कि इड़ा-पिंगला के मार्ग का परित्याग करके 'सुषुम्ना घरवासी' होना पड़ता है । ब्रह्मरंध्र के मध्य में 'श्वास पूर्ण' होने के बाद नाद सुनाई देता है और साधक ब्रह्मानुभूति का साक्षात्कार करने की स्थिति को प्राप्त होता है । डॉ. वासुदेवसिंह' तो ऐसी संभावना व्यक्त करते हैं कि कबीर का कोई शिष्य या अनुयायी भी साधना की उस उच्च सीढ़ी और काव्य की उस उच्च कक्षा तक पहुँचा
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