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________________ आनंदघन का पद-वैभव : 25 यहाँ भौतिक सुख से ब्रह्मानंद के अक्षयरस को श्रेष्ठ कहा गया है । आनंदघन की आत्म-मस्ती तो देखिए । 'मनसा प्याला प्रेम मसाला, ब्रह्म अग्नि परजाली, तन भाठी अक्टाई पीए कस, जागे अनुभव लाली. ३ 23 शरीररूपी भठ्ठी में शुद्ध स्वरूप अग्नि प्रज्वलित करके अनुभवरस में प्रेमरूपी मसाला डालकर उसे मनरूपी प्याले में उबालकर उसका सत्त्व पीने पर अनुभव की लाली प्रकट होती है । इस अनुभवलाली के प्रकट होने पर आत्मरमण की पराकाष्ठा पर पहुँचकर आनंदघन छलक उठता है । चोतरफ आनंद ही आनंद छा जाता है । कर्ममल से रहित सिद्ध आत्मदशा ही इस आनंद की पराकाष्ठा है । उनका उपनाम 'आनंदघन' ही उनके जीवन के साध्य का द्योतक है । ऐसे साध्य की प्राप्ति कर कैसा विरल अनुभव होता है ? देखिए कवि के शब्दों में 'मेरे प्रान आनंदघन, तान आनंदघन, मात आनंदघन, तात आनंदघन, गात आनंदघन, जात आनंदघन. १ राज आनंदघन, काज आनंदघन साज आनंदघन, लाज आनंदघन, २ आभ आनंदघन, गाभ आनंदघन, नाम आनंदघन, लाभ आनंदघन. ३24 आनंदघन स्तवनों में आरंभ में जैन तीर्थंकरो का नामोल्लेख करते हैं, परंतु बादमें उनका निरूपण अध्यात्म अनुभव की प्रक्रिया का आलेख बन जाता है । संप्रदाय की सीमाओं से परे हटकर आनंदघन ने जैन परंपरा में एक अलग पहचान बनाई है । यही कारण है कि उनके जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ या उनके परवर्ती जैन तीर्थंकर विषयक पदों में भी उनकी यही व्यापक दृष्टि रही है । पार्श्वनाथ की महत्ता प्रतिपादित करते हुए वे लिखते हैं कि उन्होंने कामदेव को क्षणभर में जीत लिया था तथा दुनिया और देवों को विचलित कर देने वाले कामदेव पर विजय प्राप्त करना अपने आप में एक अपूर्व और अलौकिक कार्य है 125 पद - आनंदघन की व्यापक उदात्तता का मार्मिक अनुभव तो उनके अत्यंत प्रसिद्ध ' राम कहो, रहमान कहो' में प्रतीत होता है । इस पद में कवि की एक विशिष्ट दृष्टि का परिचय होता है। ईश्वर के नाम के स्थान पर उनकी नजर सर्व में स्थित, सर्वव्यापक तत्त्व पर है । बर्तन भिन्न-भिन्न हैं, किंतु माटी तो एक ही होती है । कवि कहता है 'राम कहो रहेमान कहो कोउ कहान कहो महादेव री, पारसनाथ कहो कोउ ब्रह्मा, सफल ब्रह्म स्वयमेव री. 226 अर्थात् हम परमात्म स्वरूप हैं, ब्रह्मस्वरूप हैं और अनंतगुण शक्ति युक्त हैं । इस सत्य का ज्ञान यदि हमें हो जाय तो फिर ईश्वर के नाम की तकरार ही व्यर्थ है । जो निज स्वरूप में रमण करे वह राम, दूसरों पर रहम करे वह रहेमान, कर्मों को खेंच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003220
Book TitleBhartiya Sahitya ke Nirmata Anandghan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherSahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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