SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 20 : आनंदघन को सहन नहीं कर सकती । विरह के कारण सारी रात निंदियां बैरन बन जाती है । उसे अपने पति के प्रति शुद्ध प्रेम हैं । उसने अपना सर्वस्व समर्पित किया है, फिर भी दीर्घ वियोग से वह अत्यंत पीड़ित और दुःखी हैं । सारी सुध-बुध खोकर जी रही हैं । उसे ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश के तारे मानो अंधेरी घनघोर रात में दाँत दिखाकर उसके विरह की हँसी उड़ा रहे हैं । अश्रुधारा के कारण 'भादुकादु (भादो-कीचडयुक्त) बन गया है । अबला स्त्री पर इतना अत्याचार उचित नहीं है । पति से इतर अन्य सर्व संबंध उसे रण में रोने जैसे व्यर्थ लगते हैं । आशावरी राग में विरहिणी कहती है - 'मीठो लागे कंतडो ने, खाटो लागे लोक, कंत विहुणी गोठडी ते, ते रणमांहि पोक ।' अपने को निराधार छोडकर चले गये पति की सुमति निश-दिन राह ताकती "निश-दिन जोउं (तारी) वाटडी, घरे आवो ने ढोला, मुज सरिखी तुज लाख हैं, मैरे तूहीं ममोला ।” रात-दिन अपने नाथ की राह देखती-सुमति उसे पर-भाव त्यजकर स्व-भाव (स्व-घर) में आने की विनति करती हैं। विभाव दशा में निरत रहने पर माया, ममता, कुबुद्धि जैसी अनेक स्त्रियाँ उसे घेर लेती हैं, परंतु आप तो मेरे लिए अमूल्य हो, क्योंकि आपको निवृत्ति नगर में ले जा सके, वह मैं ही हूँ, अत: आप निज-गृह में पधारो ।' आनंदघन के पदों की यह विशेषता है कि उनके बाह्य सतही भाव को भेदकर उनके भीतर जाने पर कई आध्यात्मिक रहस्य प्रकट होते हैं । पदों में दर्शन ताने-बाने की भाँति गुंथा हुआ है । विरहिणी सुमति कहती है कि वह प्रियतम की राह में पतिविरह के दुःखरूपी मंदिर के झरोख्ने से झुक-झुककर एकटक देख रही है । सामान्य स्त्रियाँ उसके विरह को देखकर उपहास करती हैं, परंतु उसका तन-मन सब कुछ विरहाभिभूत हैं, वह क्या करे ? अपने जीवनाधार के बिना वह अपने प्राणों को कैसे बचा सकती हैं ? सुमति (शुद्ध चेतना) कहती हैं - ‘फागुण चाचर एवं निसा, होरी सीरगानी हो' मेरे मन सब दिन जरै, तनखान उडानी हों.'8 फागुन मास में सिर्फ एक दिन होली जलती है, परंतु मेरे मन में तो प्रतिदिन होली जला करती है और वह शरीर को राख बनाकर उडाती है ।। सुमति के मन में सवाल उठता है कि मुझे मेरा मन-भावन कब मिलेगा ? अपने मनभावन के बिना का खेल तो किसी मूर्ख के द्वारा रेती को ग्रास (कौर) बनाने जैसा निरर्थक है । कुछ ऐसे ही भाव को लेकर कवि लिखता है - 'मुने मारो कब मिलशे मनमेलु. मनमेलु विण केलि न कलीए, वाले कवल कोई वेलू." ___ कुछेक पदों में सुमति कुमति की बुरी सोबत का वर्णन करती हैं, तो कुछेक पदों में सुमति अपने और कुमति के बीच का अंतर प्रकट करती हैं । कुमति लंपट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003220
Book TitleBhartiya Sahitya ke Nirmata Anandghan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherSahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy