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________________ आनंदघन का पद-वैभव : 19 में उड़ जाता है । तन छूटे जाने पर धन निरर्थक है । अतः सचारित्र्ययुक्त जीवन ही सत्यमार्ग है । आत्मानंद पाने का ऐसा अवसर तूझे कहाँ मिलेगा ? आनंदघन कहते हैं कि इस अवसर को अच्छी तरह से पहचानकर आनंदपुंजरूप प्रभु का स्मरण करके तेरा आंतरविकास करता जा । __आत्मानन्द की अनुभूति के अवसररूप जीवन को पाने कतिपय अवरोधों को दूर करने के लिए अध्यात्म-पुरुषार्थ आवश्यक है । आनंदघन ने अपने पदों में कुमति की कपटलीला का वर्णन करके इन अवरोधों का सूचन किया है । कुमति के कारण अनादिकाल से अज्ञान रूपी निद्रा में व्यस्त मानव की दुर्दशा का वर्णन करते • हुए आनंदघन कहते हैं - 'सुपन को राज साच की माचत, राहत छांह गगन बदरीरी, आई अचानक काल तोपची, गहेगो ज्युं नाहर बकरीरी. जीय. २ "स्वप्न में राज्य को सच मानता है और आकाश के बादलों की छाया में आनन्द से बैठता है । (परंतु) अचानक काल-तोपची आकर जिस प्रकार नाहर बकरी को पकड़ कर ले जाता है, उसी प्रकार तुझे पकड़ लेगा ।" __कवि ने मोहग्रस्त मनुष्य जीवन में सहसा मृत्यु से उत्पन्न होने वाली दशा का हृदयस्पर्शी चित्रण किया है । स्वप्न में राजवैभव भोगने वाले की स्वप्न टूटने पर कैसी दशा होती है ? आकाश में एकाध बदली के आने पर क्षणभर के लिए छाया का सुख मिलता है, परंतु उस बदली के चले जाने पर कडी धूप सहनी पड़ती है । बकरी का पेट फाड़कर उसका शिकार करनेवाले नाहर की भ्रांति काल क्षणभर में तुझे ग्रास बना लेगा । पुद्गल-भाव में डूबे हुए मनुष्य को आनंदघन बार-बार जाग्रत् करते हुए कहते हैं कि 'पुद्गल का क्या विसवासा मानव जीवन तो पानी के बुलबुले की भाँति क्षण-भर में फूट जाने वाला है । ऐसा मनुष्य हीरा को छोड़कर मायारूप कंकड पर मोहित होता है । वह हारिल पक्षी की भ्रांति है । यह हारिल पक्षी जब पिंजरे में होता है तब नीमनी नामक लकड़ी को पकड़कर रखता है, फिर उसके पंजों के हिलने-डुलने से लकड़ी इधर-उधर सरक जाती हैं और पक्षी औंधे मुँह लटककर ची ची करने लगता है, परंतु लकड़ी नहीं छोड़ता ।। पुद्गलभाव से अपार हानि होने के बावजूद जो व्यक्ति उसे नहीं छोड़ता उसकी स्थिति हारिल पक्षी जैसी है । आत्मा या चैतन्य को मिलने के लिए अति आतुर सुमति (शुद्ध चेतना) की विरह-वेदना द्वारा कवि विषय-कषाययुक्त पुद्गलभाव में डूबे व्यक्ति का चित्रण करते हुए कहता है कि अपना प्रियतम-आतमराम अशुद्ध चेतना (कुमति) में ऐसा डूब गया है, कि वह चेतन को भूलकर जड़ बन गया है । स्वभाव को भूलकर विभाव में डूब गया है । आत्मसुख को छोड़कर देहसुख में डूब गया है । कवि आनंदघन सुमति की इस विरह दशा का आलेखन कभी संवाद शैली में तो कभी उपालंभरूप में करते हैं । सुमति के विरह को भिन्न भिन्न भाव-भंगिमाओं को निरूपित करके कविने अपनी अभिव्यक्ति-कौशल की विविधता का परिचय कराया है। गौडी राग में लिखित एक पद में कवि कहता है कि यह विरहिणी पति वियोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003220
Book TitleBhartiya Sahitya ke Nirmata Anandghan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherSahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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