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18 : आनंदघन भावस्थितियों का आलेखन भी प्राप्त होता है । आनंदघन ने आध्यात्मिक योगलक्षी एवं वैराग्य विषयक पद प्रदान किए हैं, वहीं उनके आलेखन में आलंकारिक रूपकशैली तथा भिन्न-भिन्न दृष्टांतो द्वारा कथन को सचोट एवं सटीक ढंग से प्रस्तुत करने की कला भी अनुपम हैं । इनके पदों में इस बात का भी सुंदर आलेखन हुआ है कि कुमति की संगति में बेहोश, आकंठ डूबा हुआ व्यक्ति (आत्मा) किस प्रकार धीरे-धीरे ऊर्ध्वारोहण कर सकता है । विषय में आसक्त जीव को विषय त्यागकर जगाने हेतु उद्बोधन करते हुए वे कहते हैं -
“क्या सोवे उठ जाग वाउ रे अंजलि जल ज्यु आयु घटत है, पहोरियां धरिय घाउ रे."l
पद के आरंभ में ऐसा भाव प्रकट होता है, कि विषय-कषाय की गाढ निद्रा में लीन व्यक्ति को 'क्या सोवे उठ जाग बाउरे' कहकर मानो जगाना चाहते हैं । यहाँ कवि नरसिंह महेता की 'जागने जादवा' पंक्तियाँ अनायास ही याद आ जाती हैं । निरंतर क्षीण होते आयुष्य के संदर्भ में कवि कहता है कि जिस प्रकार अंजलि में रखा हुआ जल अंगुलियों के बीच के छिद्रों में से रिसकर बह जाता है उसी प्रकार प्रतिक्षण तेरा आयुष्य घटता जाता है । इसलिए आयुष्य का प्रत्येक क्षण तेरे लिए अमूल्य है । पलभर का भी प्रमाद अनुचित है ।
कवि एक सुंदर कल्पना करते हुए कहता हैं, कि कालरूपी दरबान निरंतर घड़ी में डंका बजाकर सूचित करता है कि तेरा आयुष्य प्रतिक्षण घट रहा है । इन्द्र, चन्द्र, धरणेन्द्र जैसे बड़े-बड़े मुनिगण चले गए तो फिर चक्रवर्ती राजा तो क्या है ? ऐसे समर्थजनों को भी काल-वश होना पड़ा तो तू किस गिनती में हैं ? अत: तत्काल जाग्रत हो जा ।
यह जागृति कोई बाह्य जागरण नहीं है, परंतु आत्म जागृति है । यह जागृति अर्थात् स्थूल से सूक्ष्म की ओर गति, अनित्य से नित्य की ओर प्रयाण, भंगुर में से शाश्वत की ओर की यात्रा । इसके लिए तुझे विषय-कषाय की विभावदशा की निद्रा से जगना होगा और प्रभु-भक्तिरूपी नौका द्वारा प्रतिक्षण जीवन-साफल्य के लिए जूझना होगा । जीवन कोई प्रसंग या घटना नहीं है और न तो जन्म-मरण के बीच का कालखण्ड । जीवन तो आत्मा को ऊर्ध्वगामी बनाने का महापर्व है, महोत्सव है । इस उत्सव को प्रदीप्त करने के लिए कवि आशावरी राग में आलेखित निम्न पद में कहता है -
'बेहेर बेहेर नहीं आवे, अवसर बेहेर बेहेर नहीं आवे, ज्युं जाणे त्युं कर ले भलाई, जनम जनम सुख पावे. १ तन धन जोबन सब ही जूठो, प्राण पलक में जावे. २ । तन छूटे धन कौन कामको ? कायकुं कृपण कहावे ? ३ जाके दिल में साच बसत है, ताकुं जूठ न भावे. ४
'आनंदघन' प्रभु चलत पंथ में, समरी समरी गुण गावे. ५'2 __ मनुष्य-योनि अत्यंत दुर्लभ है, अतः भलाई करते हुए जन्म-जन्मान्तर सुख पाने का प्रयत्न करना चाहिए । शरीर, धन और जवानी क्षणिक हैं और प्राण तो पलभर
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