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________________ कृतित्व : 13 " वेद न जाणुं कतेब न जाणुं, जाणुं न लक्षण छन्दा, तरकवाद विवाद न जाणुं, न जाणुं कवि फंदा । अ. २” ( आनंदघन ग्रंथावली, पद 10) पदों की भाववाही वाणी में भक्ति और वैराग्य के उल्लास की लहरें उछलती हैं । स्तवनों में अनुभवी भक्त और शास्त्रों की वाणी है, जबकि पदों में कवि की वाणी है । स्तवनों में विचार गांभीर्य है, तो पदों में परमतत्त्व के साथ अनुसंधान का उछलता हुआ आनंद संवेदन है । स्तवन की भाषा जैन परिभाषा के लिबास में है, तो पदों में प्रेमलक्षणा भक्ति का उद्गार सुनाई देता है । स्तवन में जैनशास्त्र की दृष्टि से आलेखित आत्मज्ञान विषयक विचार हैं, जबकि पदों में शास्त्र या सिद्धांत के दायरे को बहुत कुछ दूर रखकर हृदय से निकलने वाले सहज आनंदानुभव के स्वरों को स्थान दिया गया है । स्तवन में पक्के ज्ञानी की स्वस्थता है, पदों में मर्मज्ञ संत हृदय की वेदना है, पिन अनुभूति का स्पर्श तो दोनों में है । रसिकता और चोटदार आलेखन की दृष्टि से आनंदघन के पद स्तवनों की अपेक्षा ऊँचा स्थान रखते हैं । आनंदघन के स्तवन जैन परंपरा में गौरवपूर्ण स्थान पर विराजमान हैं । आनंदघन के पद कबीर, नरसिंह और मीरां के पदों की श्रेणी में अपना स्थान पा सकें ऐसे हैं । आनंदघन के स्तवनों पर गुजराती भाषा का मुलम्मा चढ़ा दिखता है, जबकि पदों का दम-खम और छटा मुख्यतया राजस्थानी भाषा में दिखाई देता है । स्तवनों और पदों की वस्तु, भाव, विचार और वर्णन की उस भिन्नता के कारण प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आनंदघनजी ने पहले स्तवनों की रचना की होगी या पदों की ? इस बारे में आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी, मुनि जिनविजयजी और श्री अगरचंदजी नाहटा का मत इस प्रकार है कि आनंदघनजी ने पहले स्तवनों और बाद में पदों की रचना की होगी, जबकि श्री मोतीचंद कापड़िया के मतानुसार पहले पदों और बाद में स्तवनों की रचना हुई होगी । आनंदघनजी ने पहले स्तवनों की रचना की - अपने इस मंतव्य के आधार में श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी कहते हैं : “ श्रीमद् रचित चौबीसी और पद हैं, उसमें जो आद्य साबित हो उसके अनुमान पर जन्म- देश का निर्णय लिया जा सकता है । श्रीमद् ने पहले चौबीसी की रचना की ऐसी कुछ अनुमानों के आधार पर संभावना की जा सकती । उस समय में प्रचलित गुजराती भाषा के शब्दों में उन्होंने चौबीसी की रचना की है । उस समय के गुर्जर के साक्षरों ने जिस गुजराती भाषा के शब्दों का उपयोग किया है, वे शब्द श्रीमद् के हृदय की स्फुरण के साथ परिणत हुए हैं अनुमान लगाया जाये तो गुर्जर देश के होने के कारण उन्होंने पहले गुर्जरभाषा में चौबीसी की रचना की और तत्पश्चात् मारवाड़ इत्यादि देश के लोगों के उपयोग हेतु उन्होंने ब्रज भाषा में आत्मा और सुमति आदि पात्रों के उद्गारमय पद बने हों, गुर्जरदेश से मारवाड़ और मेवाड़ की ओर उनका विहार (भ्रमण) होने से उस तरफ के विद्वानों की तरह हिन्दुस्तानी मिश्रित भाषा में पदों को वाणी दी हो, ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है । यद्यपि यह अनुमान आनंदघन गुजरात के निवासी .... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003220
Book TitleBhartiya Sahitya ke Nirmata Anandghan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherSahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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