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________________ [54]... द्वितीय परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन किया जा सकता है। जैसे - वर्णनात्मक कोश, तुलनात्मक कोश प्रयोगसिद्धि स्पष्ट करने के लिए संस्कृत व्याकरण एवं प्राकृत व्याकरण और ऐतिहासिक कोश इत्यादि । के सूत्रों एवं विधानों का निर्देश किया गया है। शब्दस्वरुप व्याकृत शब्दकोश एवं ज्ञानकोश में मौलिक अन्तर: करने के बाद शब्द के अर्थो का संकेत क्रमश: किया गया है। एक जिस संग्रह में शब्दों के अर्थ, पर्याय, व्याख्याएँ आदि होते शब्द के अनेक अर्थ होने पर, वहाँ पर शब्द के अर्थो को क्रम से हैं उन्हें शब्दकोश कहते हैं, और जिस कोश में किसी शब्द के दिया गया है। अर्थ की प्रामाणिकता हेतु अन्य कोशों का संकेत संबंध की विशेष ज्ञातव्य बातें विस्तारसे दी जाती हैं या विषयवार भी किया गया है। उनका विस्तृत विवेचन होता है, उन्हें ज्ञान कोश अथवा विश्वकोश शब्द का समान्य परिचय देने के बाद उससे संबद्ध विशेष कहते हैं ।। जानकारी दी गयी है। और उससे संबद्ध विषय का पूरा विवेचन अभिधान राजेन्द्र : विश्वकोश: वहाँ प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न ग्रंथों के विभिन्न उद्धरणों को ऊपर कोशसाहित्य का वर्गीकरण करते हुए कोशों के प्रकारों आवश्यकतानुसार उद्धृत किया गया है, जिन पर कोशकारने का वर्गीकरण किया गया हैं। अभिधान राजेन्द्र कोश-निर्माण का आवश्यकतानुसार स्वयं भी प्रकाश डाला है।। उद्देश्य यह था कि जैन आगमों में प्रयुक्त प्राकृत-अर्धमागधी भाषा इस प्रकार अभिधान राजेन्द्र कोश प्राकत के, विशेष के शब्दों का ससंदर्भ विस्तार सहित सही अर्थ दिया जा सके। तया जैनागमों से संबद्ध अर्ध-मागधी के सभी शब्दों के विभिन्न तदनुरुप ही अभिधान राजेन्द्र कोश में दिये गये शब्दों का वर्णन प्रयोग बतलाते हुए उनकी व्याख्याएँ प्रस्तुत करता है और आवश्यक करते हुए सबसे पहले प्राकृत शब्द, तत्पश्चात् उसकी संस्कृत छाया जानकारी को विस्तार से विषयवार प्रस्तुत करता है इसलिए यह दी गयी है, संस्कृत छाया देने से ऊस शब्द की व्युत्पत्ति और प्राकृत एक ज्ञानकोश अर्थात् विश्वकोश की श्रेणी में आता हैं। रुप-सिद्धि का कार्य पूरा हो जाता है। संस्कृत छाया के बाद व्याकरणिक 10. शब्द विज्ञान : कोश विज्ञान - भाषा विज्ञान, पृ. 389, 390, 391 कोटियों में शब्द के लिङ्ग, वचन इत्यादि का निर्देश किया गया 11. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3, पृ. 221 नागरी प्रचारिणी सभा, काशी हैं। जहाँ आवश्यक समझा गया है वहाँ पर शब्दसिद्धि । रुपसिद्धि । 12. अभिधान राजेन्द्र कोश, प्रथम भाग, प्रथमावृत्ति प्रस्तावना ['मुणि-पसत्थ दमसासणो') पञ्चमहव्वयजुत्तो, पंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तोअ। सब्भितरबाहिरिए, तवोकम्मंमि अज्जुओ॥ निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो। समो असव्वभूएसु, तसेसुथावरेसुअ॥2॥ लाभालाभे सुहेदुक्खे,जीविए मरणे तहा। समोनिंदापसंसासु, तहा माणावमाणओB॥ गारवेसुकसाएसु, दंडसल्लभएसुअ। नियत्तोहाससोगाओ,अनियाणो अबंधणो॥4॥ अणिस्सिओ इहलोए, परलोए अणिस्सिओ। वासीचंदणकप्पोअ,असणेऽणसणेतहा॥5॥ अप्पसत्थेहिँदारहिं,सव्वओपिहियासवो। अज्झप्पझाणजोगेहि,पसत्थदमसासणो॥6॥ - अ.रा.पृ. 6/300 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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