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________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन द्वितीय परिच्छेद... [51] अपवर्ग नाममाला: ने 'शब्दरत्नाकर' और सहजकीर्ति ने सिद्ध शब्दार्णव' कोशों की रचना आचार्य जिनभद्रसूरि ने 'अपवर्गनाममाला' नामक नाम शब्दों की। इसी प्रकार आचार्य श्री राजशेखरसूरिने 'प्रबंधकोश' और किसी के एक आंशिक शब्दकोश की रचना की थी जिसमें कुछ महत्त्वपूर्ण अज्ञात रचयिता ने 'वस्तुरनकोश' और 'एकादिसंख्या संज्ञा कोश' शब्दों का संग्रह किया गया हैं। की रचना की। इसके अतिरिक्त जैन कथा साहित्य का अवलंबन इसके अलावा आचार्य जिनभद्रसूरिने जिणसत्तरि (गा. 220) करके श्री हरिषेण ने बृहत्कथाकोश, आचार्य प्रभाचंद्र ने आराधनाकोश और द्वादशांगीपदप्रमाणकुलक (11.29) की रचना की। इन्होंने गिरनार, नामक गद्यकोश, आचार्य नेमिचंद्रसूरिने आख्यात मणिकोश, आचार्य चित्तौड, मंडोवरादि में प्रतिष्ठा एवं मांडवगढ, जैसलमेर, जालोर, पाटण, ब्रह्मदेवने कथारनकोश, श्री श्रुतदेवने कथाकोश की रचना की। इस खंभात, नागोर आदि नगर में ज्ञानभंडार बनवाये थे। उन्होंने संसार प्रकार जातककथा कोश और बृहत्कथाकोश 9 वीं शताब्दी से बारहवीं को अपने शिष्य-प्रशिष्यों में 18 विद्वानों की आचार्य, उपाध्याय, पंन्यासादि शताब्दी तक लिखे जा चुके थे।34 के रुप में भेट दी।26 आचार्य पद्मनंदिः ____ इसके साथ ही तेरहवीं सदी में जैनाचार्य श्री जिनदत्तसूरि के शिष्य आचार्य श्री अमरचन्द्रसूरि ने वर्णमाला क्रम से प्रत्येक तेरहवीं शती के ही जैनाचार्य श्री पदमनंदि ने वैद्यकविद्या अक्षर का अर्थ बताते हए 21 श्लोक प्रमाण 'एकाक्षरी नाममाला' पर एक निघण्टु नामक कोशग्रंथ की रचना की थी। की रचना की थी। श्री विश्वशम्भु ने भी 115 पद्यों में ऐसा ही आचार्य जिनेश्वरसूरि एवं आचार्य बुद्धिसागरसूरिः 'एकाक्षरी नाममाला कोश' लिखा है। श्री विमलसूरिने 'देश्य शब्द इन दोनों आचार्यो का गृहस्थ नाम क्रमशः श्रीधर और श्रीपति समुच्चय' एवं अकारादि क्रम से 'देश्यशब्द निघण्टु' नामक महत्त्वपूर्ण था। ये दोनों सहोदर ब्राह्मण पुत्र थे। इन्होंने श्रेष्ठी लक्ष्मीधर की प्रेरणा कोश रचनाएँ सोलहवीं शताब्दी में निर्मित की। श्री रामचन्द्रसूरि का से धारा नगरी (म.प्र.) में सुविहित गच्छ के आचार्य वर्धमानसूरि 'देश्य निर्देश निघण्टु' भी इस प्रकार की कोशरचना है। के पास जैन दीक्षा ग्रहण की, और क्रमश: आचार्य पद प्राप्त किया। अभिधान चिंतामणि कोश के द्वितीय परिशिष्ट के रुप आचार्य बनने के पश्चात् प्राकृत भाषा में 40 उपदेशात्मक कथा प्रमाण में श्री जिनदेवसूरि ने 15 वीं शताब्दी में 'शिलोञ्छ नाममाला' कथानककोश की रचना वि.सं. 1108 में डीडवाणा (गुजरात) नगर नामक एक पूर्तिकोश की लगभग 140 या 149 पद्यों में रचना की में की थी। इस कोश के अलावा इन्होंने लीलावती कथा, पंचलिंगी है। श्री पुण्य रत्नसूरि का 'द्वयक्षर कोश' एवं कविवर श्री असंग प्रकरण, षट्स्थान प्रकरण, प्रमालक्ष्मवृत्ति, अष्टकप्रकरण वृत्ति, चैत्यवंदन का 'नानार्थ कोश' भी विद्वतापूर्ण है। टीका आदि ग्रंथों की रचना की थी।28 महोपाध्याय समयसुन्दरगणि रचित 'अष्टलक्षी' (संवत् 1649) आचार्य महाक्षपणकः विश्व साहित्य का अद्वितीय रत्न है। इसकी पृष्टभूमि कुछ ऐसी है :आचार्य महाक्षपणक के बारे में विशेष जानकारी उपलब्ध एक बार अकबर की सभा में जैनागम का 'एकस्स सुत्तस्स अणंतो नहीं है। उनके द्वारा 'अनेकार्थ ध्वनि मञ्जरी' नामक कोशग्रंथ लिखा अत्थो' इस आगम वाक्य का उपहास हुआ देख इन्होंने सूत्रवाक्य गया। इसमें 220 पद्य हैं, जो तीन भागों में वर्गीकृत है। यह कोश की सार्थकता बतलाने के लिये 'राजानो ददते सौख्यम्' -इस आठ 'शब्दरत्नप्रदीप' के नाम से भी प्रसिद्ध है।29 अक्षरवाले वाक्य के दस लाख, 22 हजार, चार सौ सात अर्थ किये पं. अमर कवीन्द्रः और सभा में सुनाये। पीछे कवि ने उक्त अर्थो में से असंभव या जैन कवि अमर कवीन्द्र जिनका दूसरा नाम अमर पंडित योजना विरुद्ध अर्थो को निकालकर इस ग्रन्थ का नाम 'अष्टलक्षी' भी है, ने 19 श्लोक प्रमाण 'एकाक्षर नाममाला' की रचना की। रखा। इसमें उपरोक्त अष्टाक्षरी वाक्य के आठ लाख अर्थ हैं जो वे गुर्जर प्रदेश के राजा वीसलदेव के समकालीन थे। कि अनेकार्थ शब्द का सबसे बडा अद्वितीय संग्रह हैं।37 अन्य जैन कोशकर्ताःचौदहवीं सदी में सेनसंघ के आचार्य श्रीधरसेनने 'विश्वलोचन 26. जैन परम्परा नो इतिहास, भाग 2, पृ. 474 श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनंदन ग्रंथ, विश्लेषण पृ. 32 कोश' जिसका दूसरा नाम 'मुक्तावली कोश' भी है, की रचना की। 28. शासनप्रभावक श्रमण भगवंतो, पृ. 197 इसी प्रकार राजशेखरसूरि के शिष्य आचार्य सुधाकलश मे 'एकाक्षर श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनंदन ग्रंथ, विश्लेषण पृ. 32 नाममाला' की रचना की। सम्राट अकबर के समकालीन जैन विद्वान पद्मसुंदर ने भी सुंदर प्रकाश कोश जिसका दूसरा नाम ‘पदार्थ चिंतामणि' शाश्वत धर्म : विशेषांक, फरवरी 1990 पृ. 67 या शब्दार्णव भी है, की रचना की। उसी समय श्री भानुविजय वही वही पृ. 34 गणिने 'विविक्त नामसंग्रह' जिसका अपरनाम 'नाममाला संग्रह' भी अभिधान राजेन्द्र विशेषांक : शाश्वत धर्म पत्रिका फरवरी 1990; अभिधान है, की रचना की। सोलहवीं शती में जैनाचार्य श्री हर्षकीर्तिसरि राजेन्द्र : प्रथम भाग, प्रस्तावना; 'शासन प्रभावक श्रमण भगवंतो' भा. ने शारदीय नाममाला (मनोरमा नाममाला) की रचना की और श्री 1,2 विमलसूरिने 'देश्य शब्द समुच्चय' नामक कोशग्रंथ की रचना की। 35. ये गुजरात के राजा विसलदेव के राजकीय विद्वान थे। सत्रहवीं शताब्दी में किसी अज्ञात नाम के आचार्य जो कि खरतरगच्छ 36. अभिधान राजेन्द्र विशेषांक : शाश्वत धर्म पत्रिका फरवरी 1990 37. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 6, पृ. 523 (देवचंद्र लालाभाई से संबद्ध थे, ने 'शेषनामाला', श्री साधुकीर्ति के शिष्य सुंदर गणि जैन पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरत, ग्रन्थांक 81 से उद्धृत) वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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