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________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनशीलन प्रथम परिच्छेद... [39] में अर्थ हैं ।30 लेकिन 'राजेन्द्र ज्योति' ग्रंथ में 'पाइयसबुंहि' ग्रंथ स्थानांग सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र की साक्षी पूर्वक दिया गया हैं। के प्रथम पृष्ठ की छाया में हमें हिन्दी अर्थ प्राप्त नहीं हुआ हैं।231 यति नन्दराम के प्रश्नों के उत्तर दिये जाने के पश्चात् आचार्यश्रीने इसमें अभिधान राजेन्द्र कोश की तरह विस्तृत व्याख्याएँ नहीं हैं। चार प्रश्न पूछे जो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान से संबंधित यह ग्रंथ अभी तक अप्राप्त एवं अमुद्रित हैं। थे; उसमें प्रथम प्रश्न का प्रत्यत्तर सही नहीं दिया एवं शेष का अति 31. पुंडरीकाध्ययन सज्झायः संक्षेप में उत्तर दिया। तब प्रथम उत्तर को गलत बताने पर ढूंढक आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने इस सज्झाय-पद पंथी यति नन्दराम के द्वारा वितण्डा (मारपीट) की स्थिति उत्पन्न की रचना सियाणा (राज.) में वि.सं 1946 में चातुर्मास में ज्ञानपंचमी/ करने से कोर्ट में शास्त्रार्थ हुआ, वहाँ आचार्यश्री ने यति नन्दराम सौभाग्य पंचमी के दिन की थी। के 9 प्रश्नों में रही अशुद्धियों को बताते हुए प्रश्नों के उत्तर दिये इस सज्झाय में 16 गाथा में जिनवाणी के दूसरे अंगसूत्र एवं अपनी तरफ से और 25 प्रश्न उनके साध्वाचार संबंधी पूछे और सूत्रकृतांग में वर्णित पुंडरीक अध्ययन में गर्भित उपदेश का वर्णन कोर्ट की तरफ से भी पन्द्रह प्रश्न ढूंढकों के साध्वाचार संबंधी पुछवाये है। इसमें परमात्मा महावीर राजा-चार पुरुष-पुष्पकरणी (वापिका) जिसमें से एक का भी यति नंदराम प्रमुख उत्तर ही नहीं दे पाये, पुंडरीक, आस्रव का फल, मिथ्या सिद्धांतवादी, मिथ्यात्वी, एवं शुद्ध जिसके फलस्वरुप आचार्यश्री की विजय हुई और निम्बाहेडा में ढूंढकों साध्वाचार का दृष्टांतपूर्वक फल दिखाकर साधु को जिनमत में श्रद्धा के 60 परिवारों ने आचार्यश्री राजेन्द्र सूरि को गुरु-आम्नाय स्वीकार एवं आस्रव निरोध का उपदेश दिया हैं।232 की। वे श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक 32. प्रभु स्तवन सुधाकर: श्रीसंघ में सम्मिलित हुए। वर्तमान में इन्हीं 60 घरो के 250 से आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने वर्तमान युग में प्राकृत- अधिक घर हैं। यह ग्रंथ अमुद्रित हैं। संस्कृत से अनभिज्ञ जन साधारण के लिये देशी भाषा में जो चैत्यवंदन, 35. प्राकृत व्याकृति एवं प्राकृतशब्द रुपावली:स्तुति, स्तवन एवं सज्झायों का निर्माण किया है वे सभी प्रायः इसका परिचय प्रस्तुत शोध प्रबंध के द्वितीय परिच्छेद में इस पुस्तक में संग्रहित है। इनमें गुणगांभीर्य एवं आध्यात्मिक भाव अभिधान राजेन्द्र कोष के प्रथम भाग की विषय वस्तु के अन्तर्गत परिपूर्ण रुप से विद्यमान है। आपके निर्मित पद्यों में अपभ्रंश शब्द दिया हैं। भी हैं जो इनकी शोभा में अतीव वृद्धि करते हैं। 36. महावीर पञ्चकल्याणक पूजा236:33. प्रश्नोत्तर पुष्प वाटिका234: इसमें प्रत्येक पूजा के प्रारंभ में दोहे हैं। दो-दो ढालों में इस ग्रंथ की रचना आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी (गीतों में) एक-एक कल्याणक का वर्णन है। प्रत्येक पूजा के अंत ने वि.सं. 1936 में गोलपुरी (जि-झालोर) राजस्थान में की थी। में काव्य एवं मंत्र है। और समस्त पूजा पूर्ण होने के सूचनास्वरुप इस ग्रंथ में उस समय के विवादास्पदप्रश्नों का तथा और भी इतर कलश काव्य की रचना है। पूजा का वर्णन हीडा, जल्लानी, गरबी, प्रश्नों का सुन्दरतम शैली से निराकरण किया गया हैं। प्रश्नों के नानडिया, सोरठ-गिरनारी आदि राग-रागिनियों में किया है, कलश प्रत्युत्तर में गुरुदेव ने शास्त्रीय आज्ञा को श्रेष्ठतम रुप से जनता के 'पारणा' की राग में हैं। समक्ष रखा है। यह ग्रंथ लोकभाषा में होने से साधारण व्यक्ति जैसा कि पूजा में वर्णन किया गया है, प्रथम च्यवन कल्याणक भी इसे सरलता से समझ सकते है। यह ग्रंथ खुडाला (राज.) से पूजा में देवलोक से व्यवन, ऋषभदत्त ब्राह्मण के घर देवानंदा की प्रकाशित हुआ है। कुक्षी में अवतरण, गर्भपरावर्तन आदि का वर्णन है। द्वितीय जन्म 34. प्रश्नोत्तर मालिका35: कल्याणक पूजा में स्वप्नदर्शन, गर्भपालन एवं जन्म का वर्णन है। इस ग्रंथ की रचना आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने तृतीय दीक्षा कल्याणक पूजा में इन्द्र द्वारा जन्म-महोत्सव, सिद्धार्थ वि.सं. 1949 में निम्बाहेडा (राज.) में की थी। इस ग्रंथ में ढूंढकपंथी राजा द्वारा जन्म महोत्सव, बालक्रीडा, सांसारिक जीवन एवं दीक्षा नंदराम के साथ मुख्यरुप से मूर्तिपूजा की एवं जिनमूर्ति प्रतिष्ठा की का वर्णन है। चतुर्थ केवलज्ञान कल्याणक पूजा में विहार, तप, पारणे, शास्त्रोक्तमान्यता विषयक शास्त्रार्थ का प्रमाण के साथ उत्तर सहित उपसर्ग, केवलज्ञान, अष्ट प्रातिहार्य, समवसरण, प्रथम देशना आदि वर्णन हैं। का वर्णन हैं। पंचम मोक्ष कल्याणक पूजा में ग्यारह गणधर एवं इस शास्त्रार्थ में प्रथम वादी नंदराम ने त्रस-स्थावर, सूक्ष्म भगवान् महावीर के धर्म-परिवार का वर्णन एव पावापुरी में निर्वाण बादर जीवों के अल्प-बहुत्व, पुद्गल की जधन्य-उत्कृष्ट अवगाहना प्राप्ति का वर्णन हैं। कलश आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी की में वर्णादि; द्वीन्द्रिय, तीर्यंच एवं कृष्ण लेश्यावन्त जीव की गति गुरुपरंपरा एवं ग्रंथ रचना का समय दर्शाया हैं। संबंधी एवं जिन प्रतिमा पूजा एवं प्रतिष्ठा संबंधी स्थानक मान्य 32 230. श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ,पृ. 88 आगमों में से मूलसूत्रपाठ के साथ उत्तर मांगा, जो आचार्यश्रीने तत्काल 231. गुरुदेव साहित्य परिचय : राजेन्द्र ज्योति - डो. नेमीचंद जैन द्वारा खींची दे दिया था। जिसमें जिनप्रतिमा पूजाविषयक प्रमाण श्री उपासकदशांगसूत्र, गयी छाया कापी से 232. प्रभुस्तवन सुधाकर भगवतीसूत्र, दशाश्रुतस्कंध, श्रीआचारांगसूत्र, रायप्पसेणीसूत्र 233. प्रभुस्तवन सुधाकर आवश्यकसूत्र, उववाइसूत्र एवं जम्बूद्वीप-पन्नति सूत्र के मूलपाठों की 234. श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ, पृ. 91 साक्षी से एवं प्रतिष्ठा संबंधी उत्तर श्री अनुयोगद्वारसूत्र, ज्ञाता सूत्र, 235. प्रश्नोत्तरमालिका ग्रंथ की पाण्डुलिपि, श्रीराजेन्द्रसूरि ज्ञानभंडार, कुक्षी (म.प्र.) 236. महावीर पञ्चकल्याणक पूजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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