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________________ [38]... प्रथम परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन 23. दीपावली देववन्दन एवं (शारदा) पूजन विधि:- 28. पञ्च सप्ततिशत स्थान चतुष्पदी:प्रस्तुत देववंदन रचना में जैनविधि से दीपावली चोपडा यह रचना गुरुदेवश्री ने सियाणा (राज.) चातुर्मास वि.सं. पूजन, सरस्वती-लक्ष्मी पूजन, आरती, गौतमाष्टक, दीवाली का जप 1946 में कार्तिक शुक्ला पञ्चमी के दिन पूर्ण की हैं।226 मंत्र, गौतमरास एवं दीपावली देववंदन में भगवान् श्री महावीर स्वामी तपागच्छीय श्री सोमतिलकसूरि विरचित 'सत्तरिसय के निर्वाण कल्याणक का वर्णन एवं उनकी आराधना की महिमा ठाणापगरण, नामक 359 प्राकृत गाथामय ग्रंथ है। और उसकी राजसूरगच्छीय दर्शाई है साथ ही निर्वाण कल्याणक के समय देव-मनुष्यों के कर्तव्यों श्री देवविजयजी रचित अति सरल संस्कृत वृत्ति भी है। प्रस्तुत ग्रंथ का वर्णन एवं परमात्मा देवाधिदेव तीर्थंकर के अतिशयों का वर्णन रचना उसी पर आधारित है। परंतु आचार्यश्री ने पाँच स्थान इतर हैं। इसकी रचना वि.सं. 1961 में कुक्षी चातुर्मास में की हैं 121 जैन ग्रंथो से उद्धत कर इसमें रखे हैं। आचार्यश्रीने इस ग्रंथ में पाँच उल्लास में वर्तमान चौबीसी 24. देववंदनमाला22: के तीर्थंकरों की भवसंख्या, पूर्वभव का परिचय, जिनेश्वरों के पाँचों आचार्य विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने देववंदनमाला ग्रंथ में कल्याणकों का समय एवं तत्संबंधी संपूर्ण जानकारी, परस्पर अंतर, जैनधर्म के विविध पर्वो पर आराधक भव्यात्माओं को धार्मिक क्रिया जिनशासन में इस अवसर्पिणी काल के रुद्र, दर्शनोत्पत्ति, आश्चर्य, करने हेतु विधि सहित पर्वानुसार चैत्यवंदन स्तुति, स्तवन, खमासमण चक्रवर्ती, वासुदेव, प्रतिवासुदेव एवं बलदेव आदि की जानकारी दी के पद एवं दोहे आदि की सुंदर शैली में रचना की है जिसका है। कर्ता ने ये समस्त रचना दोहा, चौपाई में एवं विभिन्नगेय रागभावुकजन यथा प्रसंग सुंदर लाभ उठाते हैं। नवपद ओली, दीपावली, रागिनियों में की है। यह प्रशस्ति के साथ सब मिलकर 559 पद्य ज्ञानपंचमी, सिद्धाचल, और चौमासी देववंदन की रचित गुंफित सामग्री प्रमाण हैं 227 का सामूहिक संकलन 'देववंदनमाला' के नाम से प्रकाशित हैं। 29. पदवीविचार सज्झायः25. नवपद ओली देववंदन: आचार्यश्री द्वारा रचित इस सज्झाय का रचना काल एवं स्थान प्राप्त नहीं हुआ है लेकिन अनुमान से यह भी सियाणा में इसमें आसोज एवं चैत्र मास की सुदि 7 से 15 तक नवदिन पूर्वोक्त सज्झायों के साथ रची गयी है क्योंकि इन ग्रंथों में क्रम से जैनधर्म में परम आराध्य शाश्वतयंत्र श्री सिद्धचक्र महायंत्र में विराजित इन्हीं सज्झायों के साथ यह भी मुद्रित है। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, इसमें 563 प्रकार के जीवों के 24 दंडकों में से आया हुआ सम्यक् चारित्र एवं सम्यक् तपः इन नव पदों की आराधना हेतु नव जीव देवाधिदेव, केवली, चक्रवर्ती आदि 16 पदवियों में से कौन दिन की क्रियाविधि की सुगमता के लिये प्रत्येक दिन के पद के कितनी और कौन-कौन सी पदवी प्राप्त कर सकता है इसका दंडक अनुसार गुणवर्णनपूर्वक चैत्यवंदन, स्तुतियाँ एवं स्तवन तथा उन पदों प्रकरण के अनुसार वर्णन किया हैं।28 के गुणों के वर्णनपूर्वक खमासमण का पद दिया हुआ हैं। इनमें यह 'प्रभु स्तवन सुधाकर' में पृ 229 से 232 पर मुद्रित क्रमश: नवें पद के 12, 8, 36, 25, 27, 67, 51, 70, 50 गुणों का वर्णन हैं। साथ ही नवपद ओली में त्रिकाल नित्य करने योग्य 30. पाइयसद्दम्बुहि (प्राकृतशब्दाम्बुधि) कोश:देववंदन, पच्चक्खाण पारने एवं संवरने की विधि, संथारा पोरिसी आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी ने इस ग्रंथ की पूर्णाहुति विधि एवं ओलीजी आराधना में आराधक के नियमों का वर्णन भी वि.सं. 1956 में शिवगंज में कीथी।229 यह कोश श्री अभिधान राजेन्द्र दिया हैं।23 बृहत् प्राकृत कोश का संक्षिप्त रुप है। श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ में कहा गया है कि इसके चार भाग हैं। इसमें प्रथम वर्णानुक्रम 26. नवपद प्रश्नोत्तर24: से प्राकृत शब्द, उसका संस्कृतानुवाद, पश्चात् लिङ्गनिर्देश और हिन्दी नवपद में विशेष कर जिन प्रतिमा पूजा सम्बन्धी एवं अन्य नवपद सम्बन्धी प्रश्नों के शास्त्रोक्त उत्तर 'शास्त्रपाठ' प्रमाण सहित 221. देववन्दनमाला 222. वही दिये गये हैं। यह "जिनेन्द्र पूजा संग्रह' में मुद्रित हैं। 223. वही 27. नीतिशिक्षा द्वय पच्चीसी225: नवपद-प्रश्नोत्तर जिनेन्द्रपूजा संग्रह 'नीति शिक्षा द्वय पच्चीसी' नामक दो पच्चीसियों की रचना 225. नीतिशिक्षाद्वाय पच्चीसी - लघुपुस्तिका, प्रथमावृत्ति 226. पंचसप्ततिशतस्थान चतुष्पदी, निर्माण करी हर्षाया रे ।।2।। आचार्य विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने वि.सं. 1954 में रतलाम (म.प्र.) विजय राजेन्द्रसूरीशनी रचना भविकजन के मन भाया रे ॥5॥ चातुर्मास में की थी। इसमें 'यथा नाम तथा गुण'-इस उक्ति के विक्रम उगणी छैताला अब्दे, कार्तिक मास ओपाया। अनुसार 25 बोलों में सामान्य जन-जीवन में व्यवहार योग्य नीतिशिक्षा सौभाग्य पञ्चमी दिन एह भाव सुन, सकल संघ हुलसाया रे ।।6।। मरुधरदेश सीयाणा नगरे, सुविधिनाथ जिनराया । संबंधी बातें हैं। गद्य में रचित इस लघु-पुस्तिका की भाषा सहज - अन्त्य प्रशस्ति, श्री विशंति विहरमानजिन चतुष्पदी, श्री पञ्चसप्ततिशतस्थान सुबोध मारवाडी हैं। चतुष्पदी-पृ. 150, 151 से उद्धृत 227. प्रस्तावना - श्री पञ्चसप्ततिशतस्थान चतुष्पदी वर्तमान आचार्य श्रीमद्विजय जयंतसेन सूरीश्वरजीने यह पुस्तिका 228. प्रभु स्तवन सुधाकर ईस्वी सन् 1992 में श्री राज-राजेन्द्र प्रकाशन ट्रस्ट, अहमदाबाद ने 229 श्री राजेन्द्र अंक, : विशेषांक शाश्वत धर्म में से "गुरुदेव जीवन प्रकाशित करवाई है। विहंगावलोकन 224. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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