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अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
प्रथम परिच्छेद... [35] 5. उपासकदशा - बालावबोध195:
8. कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी:उपासकदशांग सूत्र में भगवान् महावीर के आनन्द आदि
आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजीने इस ग्रंथ की रचना दश श्रावकों के जीवन का वर्णन किया गया हैं। आचार्य विजय रतलाम में वि.सं. 1954 में की थी। यह ग्रंथ श्रीदशाश्रुतस्कन्ध सूत्र राजेन्द्र सूरीश्वरजी ने लोक-कल्याण हेतु वि.सं. 1954 में खाचरोद के अष्टम अध्ययन रुप श्री भद्रबाहुस्वामी प्रणीत श्रीकल्पसूत्र की में इस ग्रंथ का तत्कालीन मारवाडी-गुजराती-मालवी मिश्रित भाषा संस्कृत टीका हैं। में बालावबोध नाम से अनुवाद किया है। जिससे साधारण-जन भी
यह ग्रंथ नौ व्याख्यानो में विभक्त हैं। प्रथम पाँच व्याख्यानो आगमों के ज्ञान का लाभ प्राप्त कर सकें।
में महावीर चरित्र, छठे व्याख्यान में पार्श्वनाथ चरित्र, सातवें में नेमिनाथ इस ग्रंथ में प्रथम अनुबन्ध-चतुष्टय हैं। तत्पश्चात् श्री चरित्र, आठवें में आदिनाथ चरित्र एवं नौवें व्याख्यान में स्थविरावली उपाशक दशा सूत्र के दशों अध्ययन (1) आनंद (2) कामदेव (3) एवं समाचारी का वर्णन है। श्री कल्पसूत्र पर रचित अभी तक की चुलणीपिया (4) सुरादेव (5) चुलशतक (6) कुंडकोलिक (7) सद्दालपुत्र
अनेक टीकाओं में यह संस्कृत गद्य टीका अन्य टीकाओं की अपेक्षा (8) महाशतक (9) नंदिणीपिया और (10) सालिणीपिया - इन
अति सरल, विशाल, रोचक एवं अनेक विशेषताओं से परिपूर्ण हैं ।198 दश श्रावकों के नाम से हैं।
9. कल्पसूत्र-बालावबोधःइनमें प्रत्येक अध्ययन में एक-एक श्रावक का वर्णन है।
श्री महावीर स्वामीने राजगृही के गुणशील चैत्य नामक इनमें श्रावकों के नगर, उद्यान, वनखंड, भगवान् का समवसरण, राजा,
स्थान में बारह पर्षदा (तीर्थंकर के समवशरण की सभा) के बीच
नौवें प्रत्याख्यानपूर्व के दशाश्रुतस्कंध सूत्र के श्री पर्युषण कल्प नामक परिवार, धर्माचार्य, धर्म कथा, ऋद्धि, भोग, भोग त्याग, बारह व्रत,
अध्ययन कहा था।199 उस पर श्री भद्रबाहु स्वामीने 1216 श्लोक व्रत के अतिचार, प्रतिमा, उपसर्ग, संलेखना, प्रत्याख्यान, अनशन,
प्रमाण श्री कल्पसूत्र (बारसा सूत्र) के नाम से उज्जैन (म.प्र.) में स्वर्गगमन आदि का प्रथम अध्ययन में विस्तार से और शेष में संक्षिप्त
ग्रंथ रचना की थी।200 मालवा, मारवाड, गुजरात और पारकर चारों में वर्णन हैं।
देश के श्रीसंघ के आग्रह से उस कल्पसूत्र की मूल एवं चूर्णि, इनमें (1) आनंद श्रावक को अवधिज्ञान एवं गौतम स्वामी नियुक्ति, टीकादि पञ्चांगी के साथ प्राचीन ग्रंथ मंगवाकर आचार्यश्रीने द्वारा क्षमा मांगना (2) देव के उपसर्ग में कामदेव और कुंडकोलिक उसके आधार पर मूल ग्रंथ न देते हुए उसी के संक्षेप से अर्थ लेकर श्रावक का अडिग रहना एवं चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लनशतक, सद्दालपुत्र एवं टीका से कुछेक कथाभाग लेकर करीब 5500 श्लोक प्रमाण श्री का चलायमान होना तथा (3) दुष्ट भार्या के कारण महाशतक श्रावक कल्पसूत्र बालावबोध201 नामक इस ग्रंथ की वि.सं. 1940 में वैशाख की गृहस्थ जीवन की विडम्बना भरी स्थिति, साथ ही भार्या रेवती
वदि द्वितीया, मंगलवार के दिन पूर्णाहुति की थी।202 को अप्रिय वचन सुनाने की भूल - ये बातें विशेष ध्यान देने योग्य
इस ग्रंथ में कुल नव व्याख्यान है। प्रथम व्याख्यान में हैं। आनंद के अलावा महाशतक श्रावक को भी अवधिज्ञान प्राप्त
ग्रंथ रचना का हेतु, वाचनविधि, श्री पर्युषण पर्व-कल्पसूत्र एवं श्रीसंघ
का महत्त्व, चातुर्मास में विहारादि एवं चातुर्मास बाद भी स्थिरता हुआ था और नंदिनीपिता तथा सालीनिपिता इन दो श्रावकों को कोई
के कारण, चातुर्मास योग्य क्षेत्र के गुण, अट्ठम तप पूर्वक कल्पसूत्र उपसर्ग नहीं हुआ। ये सभी श्रावक आयु पूर्ण कर देवलोक में गये,
श्रवण आश्रयी नागकेतु की कथा, ऋषिपंचमी की कथा, चौथ की इसका विशद वर्णन लोकभाषा में किया गया हैं।
संवत्सरी की कथा, सामुद्रिक शास्त्र-दश आश्चर्य (अच्छेरा) एवं स्वप्न आचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी द्वारा कृत हिन्दी
शासत्र वर्णन, छटे व्याख्यान की पूर्णाहुति तक विस्तृत श्री महावीर अनुवाद के साथ यह बालावबोध श्री राज-राजेन्द्र प्रकाशन ट्रस्ट -
चरित्र, सातवें व्याख्यान में श्री पार्श्वनाथ एवं श्री नेमिनाथ चरित्र तथा अहमदाबाद से वि.सं. 2054 में दीपमालिका के दिन प्रकाशित हुआ
चौवीसों जिनेश्वरों का आपस में अंतर (शासन काल का अंतर), आठवें
व्याख्यान में श्री ऋषभदेव चरित्र का वर्णन एवं नौवें व्याख्यान में 6. एक सौ आठबोल का थोकडा:
श्री स्थविरावली एवं समाचारी का वर्णन है। अंत में संस्कृत में इस लघु पुस्तिका की रचना आचार्यश्री ने वि.सं. 1934 7 श्लोक प्रमाण प्रशस्ति हैं। में राजगढ चातुर्मास में की थी। इस पुस्तक में मननीय 108 बातों
इस ग्रंथ की भाषा मारवाडी-मालवी मिश्रित गुजराती हैं। का अनुपम संग्रह है। अल्पमती जीवों को यह पुस्तक अधिक उपयोगी
195. श्री उपासकदशा - बालावबोध, मुद्रितग्रंथ, प्राक्कथन हैं।196
196. अग्रसेन पुष्पांजलि पत्रिका, गुरुदेव विशेषांक, पृ. 23 7. कमलप्रभा शुद्ध रहस्य:
197. श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ पृ. 92 इसकी रचना आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने अपने
198. श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ पृ. 89; श्री कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी
199. श्री कल्पसूत्र बालावबोध प्रथमावृत्ति, पृ. 247 जीवन के अंतिम वर्षावास, वि.सं. 1963 में बडनगर (म.प्र.) में
200. श्री कल्पसूत्र बालावबोध प्रथमावृत्ति, पृ. 15 एवं पृ. 247, श्री हनुमंत की थी। यह ग्रंथ मुद्रित हैं।
बाग जैन मंदिर - उज्जैन का शिलालेख स्थानकवासी साध्वी श्री पार्वतीबाई महासती की 'सत्यार्थ
श्री कल्पसूत्रबालावबोध प्रथमावृत्ति, वि.सं. 1944, प्रस्तावना, पृ. 6 चन्द्रोदय' पुस्तक में श्री महानिशीथ सूत्रोक्त कमलप्रभाचार्य के लिये
____ 202. 'सौधर्मस्वामिनो गच्छे, संति, राजेन्द्रसूरयः । जो असत्य प्रलाप किया है उसी का ही इसमें प्रमाण सहित मार्मिक
तेनेयं कल्पसूत्रस्य, वार्ता बालावबोधिनी ।।4।।
अब्दे खवेदनंदैके, (1940) माघवे (वैशाखे) च सितेतरे। भाषा में खंडन किया गया हैं। 197
पक्षे दिन द्वितीयायां, मंगले लिखिता त्वियम् ।।6।।
- श्री कल्पसूत्रबालावबोध, प्रशस्ति
201.
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