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________________ [34]... प्रथम परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन 1. उत्तमकुमार उपन्यास 2. कथासंग्रह पञ्चाख्यानसार 3. कर्तुरीप्सिततमंकर्म (सूत्र व्याख्या) 4. करण कामधेनु सारणी 5. ज्योतिकल्पलता 6. दीपावली कल्पसार 7. धातुपाठ तरंग 8. ध्रष्टर चौपाई 9. मुनिपतिराजर्षि चौपाई 10. स्वरोदयज्ञान यंत्रावली 1. सर्वसंग्रहप्रकरण 12. सिद्धांतसारसागर 13. त्रैलोक्यदीपिका यंत्रावली 14. स्तुतिप्रभाकर उपरोक्त संदर्भ ग्रंथो की सूचि में धनसार - अघटकुमार चौपाई को भी आचार्यश्रीकृत बताया है जबकि अघटकुमार चौपाई और अघटकुँवर चौपाई एक ही ग्रंथ है, जिसका हम परिचय दे चुके हैं और धनसार चौपाई आचार्यश्री के उपसंपद् शिष्य मुनि श्री प्रमोदरुचिजी ने वि.सं. 1932 में झालोर में बनाई थी लेकिन एक ही पुस्तक में दोनों चौपाई छपने के कारण यह भ्रम हुआ है, जो दृष्टव्य है। आगे के अनुच्छेदों में आचार्य श्री की रचनाओं का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा हैं 1. अक्षय तृतीय कथा: गुरु द्वारा पूर्वभव वर्णन, दसवीं ढाल में मुनिगुण वर्णन, ग्यारहवी श्री राजेन्द्र कोश विशेषांक : शाश्वत धर्म के अनुसार आचार्य ढाल में पूर्व-भव में जीव हिंसा त्याग एवं अभक्ष्य भक्षण के त्याग विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी ने इस कथा की रचना वि.सं. 1938 (ईस्वी का व्रत ग्रहण एवं व्रत परीक्षा, बारहवीं ढाल में व्रत पालन-परीक्षा सन् 1881) में आलीराजपुर चातुर्मास के पश्चात् राजगढ में की थी।189 में सफलता, देवी द्वारा उसकी भक्ति एवं पूर्वभव एवं वर्तमान भव यह कथा स्वतंत्र मुद्रित न होकर श्री अभिधान राजेन्द्र कोश के प्रथम के सभी पात्रों का परिचय, संयोग एवं फल और तेरहवीं ढाल में भाग में 'अक्खरइतया' शब्द के अन्तर्गत पृ. 133 पर मुद्रित हैं।190 देशविरतिव्रत ग्रहण, कालांतर में जैन-दीक्षा ग्रहण एवं केवलज्ञान प्राप्ति श्रमणपरम्परा के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ को दीक्षा धारण तथा आयुः क्षय होने पर मोक्ष का वर्णन किया हैं।192 करते ही पूर्वभवोपार्जित अंतरायकर्म का उदय होने से एक वर्ष (पर्यन्त प्रस्तुत चौपाई का आधार लेकर इसी कथा को आचार्य निराहार रहना पडा/इसके बाद अक्षय तृतीया के दिन 13 महीने 10 दिन के बाद श्री आदिनाथजीने गजपुर (हस्तिनापुर) नगर में अपने श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी (तत्कालीन यतीन्द्र विजयजी) ने वि.सं. सांसारिक पौत्र सोमप्रभ के पुत्र श्रेयांसकुमार के हाथों से इक्षुरस से 1984 गुरु सप्तमी पर्व शुक्रवार को संस्कृत गद्य भाषा में प्रबन्ध के पारणां किया था। इसका वर्णन इस लघुकथा में आलेखित हैं। रुप में लिखा है, जो कि 'चरित्र-चतुष्टय' में मुद्रित हैं।193 2. अघटॉवर चौपाई: 3. अभिधान राजेन्द्र कोश:इस खंड-काव्य की रचना आचार्यश्रीने वि.सं. 1932 में इसका विस्तृत परिचय इसी शोधप्रबन्ध के द्वितीय परिच्छेद जालोर (राज.) में की थी। इस काव्य में आचार्यश्रीने अघटकुमार में दिया जा रहा हैं। के माध्यम से मुनि-निंदा एवं जीव-हिंसा के भाव का विपाक (फल) 4. अष्टह्निका व्याख्यान:तथा सुपात्रदान (जैन मुनि को आहारादि का दान) जिन पूजा एवं इस ग्रंथ की संस्कृत प्रशस्ति के अनुसार खरतरगच्छीय श्री अहिंसा व्रत के पालन के प्रभाव का विशद वर्णन किया हैं। क्षमाकल्याण वाचक द्वारा प्रणीत संस्कृत गद्य अष्टाह्निका व्याख्यान इस काव्य में 13 ढालें है। प्रत्येक ढाल के प्रारंभ में दोहा के इस मारवाडी भाषान्तर की रचना श्री अष्टाह्निका व्याख्यान194 - छंद में 1, 2, 3 या 4 छन्द दिये हैं और प्रत्येक ढाल में विविध 'बाल बोधिनी' टीका के नाम से आचार्य विजय राजेन्द्रसूरिश्वरजीने देशी-राग-रागिनियों में अघटकुँवर के जीवन का वर्णन किया हैं। वि.सं. 1927 में कुक्षी (म.प्र.) चातुर्मास में कार्तिक कृष्णा तृतीया इसमें प्रथम ढाल में दासी पुत्र का जन्म; दूसरी ढाल में को की है। राजा विक्रमादित्य के दरबार में दासी पुत्र की अवंती के राजा बनने इस ग्रंथ में प्रथम कुक्षीस्थ श्री शान्तिनाथ भगवान् का की ज्ञानगर्भ पुरोहित की भविष्यवाणी और उसे मारने हेतु राजा का मंगलाचरण, तत्पश्चात् प्रथम व्याख्यान में नंदीश्वर दीप में देवगमन, प्रयत्न; तीसरी ढाल में उसे सूखे बगीचे में छोड देना और बालक पर्युषण पर्व में श्रावकों के कर्तव्य, अभयदान के विषय में पाँचों के पुण्य प्रभाव से उद्यान का पल्लवित होना, माली द्वारा उसे दत्तक राणी एवं चोर की कथा, द्वितीय व्याख्यान में जिनदर्शन पर शय्यंभव भट्ट एवं जिनवाणी की महिमा के विषय में रोहिणेय चोर की कथा लेना, मालण के साथ बालक के राजदरबार में जाने पर पुनः पुरोहित तथा सामायिक व्रत के विषय में पुणिया श्रावक की कथा, व्रतभंग की भविष्यवाणी; चौथी ढाल में पुनः उसे मारने हेतु प्रयत्न और के भाव से होने वाली दुर्गति के विषय में आद्रकुमार की कथा, देव मंदिर में उसे छोडना एवं देवधर सार्थवाह द्वारा उसे ले जाना; तृतीय व्याख्यान में पर्वतिथि की आराधना के विषय में सूर्ययशा पाँचवी ढाल में युवक अघटकुँवर का पालकपिता के साथ पुनः विशाला राजा की कथा एवं अनित्य भावना पर भरत चक्रवर्ती की कथा हैं। (उज्जैनी) के दरबार में आना, पुरोहित की पुनः भविष्यवाणी एवं 189. गुरुवंदना विशेषांक : शाश्वत धर्म में आचार्यश्री ने इस कथा की रचना राजा के द्वारा प्रदत्त मथुरा का राज्य संचालन, छट्ठी ढाल में राजा वि.सं. 1940 में मोहनखेडा तीर्थ के शिलान्यास के आसपास की है द्वारा पुनः मारने हेतु प्रयत्न, देवप्रभाव से रक्षा एवं राजकुमारी से विवाह; एसा उल्लेख हैं। सातवीं ढाल में पुन: देवी पूजा के छल से मारने हेतु प्रयत्न, अघटकुँवर 190. अ.रा.भा. 1/133 191. अक्षय तृतीया अर्थात् वैशाख सुदि त्रीज का बचना तथा राजकुमार की हत्या, आठवीं ढाल में राजा विक्रमादित्य 192. धनसार-अघट कुमार चौपाई द्वारा स्व-पाप प्रकाशन, अघट को राज्य प्रदान एवं जैनी दीक्षा ग्रहण 193. चरित्र-चतुष्टय - अंतिम पत्र तथा मनुष्य को पाँचों प्रमाद छोडने का उपदेश; नौंवी ढाल में केवलज्ञानी 194. श्री अष्टाह्निका व्याख्यान - पृ. 57, 58 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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