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________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन प्रथम परिच्छेद... [27] ज्योतिष संबंधी विशद ज्ञान के कारण उन्होंने सैंकड़ों प्रतिष्ठाएँ करवायी किन्तु कहीं कोई विघ्न उपस्थित नहीं हुआ। आपने ज्योतिष संबंधी 'गतिषष्ठ्या-सारणी', ग्रह-लाघव और स्वरोदय-यंत्रावलीये तीन ग्रंथ लिखे। इसके अलावा आपके द्वारा रचित फलादेश संबंधी कुछ दोहे तत्संबंधी गंभीर ज्ञान के द्योतक हैं।162 आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि : निमित्तज्ञानी: आचार्य विजय राजेन्द्रसूरि की ध्यान साधना उत्कृष्ट कोटि की थी। ध्यान के बल पर वे भविष्य को जानते थे। उनके जीवन में कई ऐसी घटनाओं का उल्लेख है जो उन्होंने समय से पूर्व ही ध्यान के बल पर बता दी थी। वि.सं. 1951 में आप कुक्षी में थे तब रात्रि में ध्यानावस्था में आपने कुक्षी नगरी को अग्नि के प्रकोप से जलती देखी। सुबह आपने श्रावकों को बताया कि आज से 19 वें दिन गंगाराम ब्राह्मण के घर से आग शुरु होगी और भयंकर नुकसान होगा। यह बात अक्षरशः सही नीकली।163 जिसमें कुक्षी का बृहद् हस्तलिखित ज्ञान भण्डार जलकर भस्म हो गया। वि.सं. 1953 में कडोद (म.प्र.) निवासी खेताजी वरदाजी के यहाँ चोरी हो गयी और 80,000 का माल चला गया तब गुरुदेव के पास आये। गुरुदेव ने कहा कि सब माल वापिस आ जायेगा। तीन माह के बाद चोर पकडे गये और सब माल वापिस आ गया। जिसका दोनों भाइयों ने धर्म कार्य में सदुपयोग किया।164 श्रावक राचयंदजी के अनुसार आप जब वि.सं. 1922 में बीकानेर (राजस्थान) में थे तब आपके पास एक हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति ने आकर अपनी जन्मपत्रिका देकर अपनी शेष आयु के बारे में पूछा तब आपने बताया कि आठ दिन मात्र आयु शेष है, वह बात पूर्ण सत्य सिद्ध हुई।155 इसी प्रकार सुश्रावक कोचरजीने आपसे अपना भविष्य पूछा तब आपने उनकी पत्रिका देखकर बताया कि वैशाख सुदि तेरस के दिन आप बीकानेर राज्य के दीवान पद पर आसीन होंगे और वैसा ही हुआ।156 बीकानेर के राजा ने आप से पूछा कि मुझे पुत्र कब होगा? तब आपने राजा की जन्म पत्रिका देखकर जान लिया कि राजा का आयुष्य पांच वर्ष शेष है और उनकी मृत्यु पश्चात कोई दत्तक पुत्र गादी पर बैठेगा। अतः आपने कहा कि पांच साल बाद पुत्र प्रसिद्ध प्रगट होगा। पांच वर्ष के बाद यह बात अक्षरशः सत्य निकली।157 क्रियोद्धार के समय की लग्नकुण्डली देखकर आपने उसी समय भविष्य बताया कि जोधपुर राज्य की स्थापना से 470 वर्ष होने के पश्चात् त्रिस्तुतिक मत का अतिशय प्रचार-प्रसार होगा ।158 यह बात भी आज पूर्ण रुप से सत्य प्रतीत हो रही हैं। इसी तरह वि.सं. 1940 में जब आप अहमदाबाद विराजमान थे तब अहमदाबाद-वाघनपोल में श्री महावीर जिनालय की प्रतिष्ठा थी। उस प्रतिष्ठा मुहूर्त को देखकर आपने कहा कि इस मुहूर्त में प्रतिष्ठा करने पर अग्नि प्रकोप होगा। और भविष्यवाणी के अनुसार भयंकर आग प्रकट हुई। बाद में भगवान् की मूर्ति उठाने को रोकने पर भी भगवान् की मूर्ति उठायी और द्वितीय मुहूर्त में प्रतिष्ठा की तब आपने कहा कि यह मुहूर्त भी सही नहीं है। इस मुहूर्त में प्रतिष्ठा करने पर मूलनायक श्री महावीर स्वामी को विराजमान करने वाला व्यक्ति छ: महीने में मृत्यु को प्राप्त होगा। हठाग्रहियोंने यह बात नहीं मानी और गलत मुहूर्त में प्रतिष्ठा का जो फल आपने बताया था वही हुआ।159 वि.सं. 1955 में आहोर में श्री गोडीजी पार्श्वनाथ मंदिर के ५२ जिनालय की प्रतिष्ठा के समय प्रतिपक्षी वर्ग के यहाँ भी उत्सव का आयोजन होने जा रहा था। तब आपने प्रतिष्ठाकारक से कहा -"यह मुहूर्त उनके अनुकूल नहीं है, इसमें ग्रहगति और संगति विपरीत बैठती है।" तब आपकी बात सत्य साबित हुई, जो विपक्षियों ने नहीं मानी लेकिन उसके दुष्परिणाम स्वरुप प्रतिष्ठाकारक श्रीपूज्य जिनमुक्तिसूरि आहोर आते-आते रास्ते में ही रोग से पीडित होकर दिवगंत हो गए एवं गाँव के ठाकुर, उनका पट्ट हस्ती और महावत का भी देहान्त हो गया160 वि.सं. 1958 में सियाणा में प्राचीन श्री सुविधिनाथ जिनालय की 24 देवकुलिकाओं में स्थापना करने हेतु 24 जिनेश्वरों की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा के समय मंडप में जन्म कल्याणक महोत्सव हेतु 60-70 हाथ उँचा मिट्टी का मेरुपर्वत बनाया जा रहा था। वह नीचे से गीला था और उपर मजदूर आदि के भार से गिरने से 5-- 7 मजदूर उसमें दब गये। किसी ने उसी समय आचार्यश्री को सूचना दी, तब स्वरोदय ज्ञान बल से आपने कहा -"जाओ, एक भी नहीं मरा, अब तुम उन्हें जल्दी से निकालो।" और वास्तव में काम करनेवाले सभी लोग मणों मिट्टी के ढेर में दबने के बावजूद स्वस्थ निकले।61 155. श्री राजेन्द्रसूरि का रास पृ. 31 156, वही पृ. 31, 32 157. वही ढाल 11 158. श्रीमद्विजय धनचंद्रसूरि जीवन चरित्र 159. श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ - पृ.61 160. श्री राजेन्द्रगुणमञ्जरी श्लोक 459 से 469 161. श्री राजेन्द्र गुणमञ्जरी पृ. 80,81 162. सातमा भुवन तणो धणी, धन भवने पड्यो होय । परण्या पूंठे धन मिले, इम कहे पण्डित लोय ।। पंचमेश धन भवन में, सुत पूठे धनवन्त । धन तन स्वामी एक हों, तो स्वधन भोगन्त ॥ लग्न धनेश चौथे पड्या, कहे मातानी लच्छ। क्रूर ग्रह लग्ने पड्यो, प्रथम कन्या दो वच्छ॥ भौम त्रिकोणे जो हुए, तो लहे पुत्र ज एक। मंगल पूजा दृष्टि सूं, होवे पुत्र अनेका॥ भौम वक्र क्रूर सातमे, पडे मूंडी स्त्री हाथ । भौम अग्यारमें जो पडे, परणे नहीं धननाथ ।। शनि चन्द्र अग्यारमें, पडे स्त्री परणे दोय । चन्द्र भौम छटे पडे, षट् कन्या तस जोय ॥ अग्यारमें क्रूर ग्रह तथा, पंचम शुक्र जो थाय। पेली पुत्री सुत पछे, माता कष्ट सुणाय । क्रूर ग्रह हुए सातमें, कर्कसा पाये नार। बुध एकलो पांचमें, तो जोगी सिरदार ॥ शनिशर दशमे पडे, वाघचित्ताथी लेह। मरे दसमे वली शुक्र जो, अहि डसवाथी तेह ॥ राहु दशम जो हुए, मरे अग्नि में जाण । राजेन्द्रसूरि इम भणे, जातकने अहिनाण ।। - श्री राजेन्द्र ज्योति-पृ. 14 163. श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ पृ. 62 164. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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