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________________ [20]... प्रथम परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन 27. जावरा (मालवा) में शा. लक्ष्मीचन्दजी लोढा के द्वारा निर्मित जिनालय में पोष सुदि सप्तमी, वि.सं. 1962 को श्री शीतलनाथादि जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा की। हमारे संग्रह के एक हस्त पत्र के अनुसार तीन हजार एक सौ पैंतीस (3135) जिनप्रतिमाओं की अंजन शलाका श्रीमद् गुरुदेव के हाथों हुई । इनमें विक्रम संवत् 1955,फाल्गुन वदि पंचमी, गुस्वारको आहोर में सम्मपन्न हुई एक साथ 951 जिनबिम्बों की अंजनशलाका विशाल, महत्त्वपूर्ण एवं अत्यंत प्रभाव संपन्न हैं। इस प्रकार 'विषमकाल जिनबिम्ब जिनागम भवियण कुंआधारा' - इस उक्ति को ध्यान में रखते हुए आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी ने अनेकों जिन मंदिरों की प्रतिष्ठा, अंजन शलाका, तीर्थो के जीर्णोद्धार, निर्माण, तीर्थयात्रा, संघ यात्रा के द्वारा अनुपम शासन प्रभावना की, उसी प्रकार सम्यग्ज्ञान की आराधना में भी पीछे नहीं रहें। ज्ञानभक्ति : बार-बार पंञ्चागी के साथ जैन आगमों के अध्ययन के पश्चात् आपने श्रुत की सुरक्षा हेतु वि.सं. 1938 में आलीराजपुर (राजपुर) चातुर्मास में आगमों की हस्तलिखित प्रतियों का संशोधन किया एवं अशुद्धियाँ दूर कर श्रीसंघ को उपदेश देकर लेखकों से लिखवाया। उसी प्रकार वि.सं 1939 में कुक्षी चातुर्मास में अनेक ग्रंथ लिखवाये। अन्य जगह भी अनेक ग्रंथ लिखे, संशोधित किये एवं लिखवाये ।100 साथ ही अभिधान राजेन्द्र कोश की रचना कर आगमों को हमेशा के लिये अर्थ सहित सुरक्षित किया, बल्कि यह कहा जाय कि आगमों के अर्थ की सुरक्षा के लिये ही 'अभिधान राजेन्द्र कोश' की रचना की।101 ज्ञान भण्डार : ग्रंथो की सुरक्षा हेतु ज्ञान भंडारों का निर्माण करवाया जिसमें आचार्यश्री की प्रेरणा से कडोद (म.प्र.) निवासी खेताजी-वरदाजी द्वारा आहोर में निर्मित श्री राजेन्द्र जैनागम बृहद् ज्ञान भंडार अतीव प्रशंसनीय एवं दृष्टव्य है। संगमरमर से निर्मित इस ज्ञानभण्डार में 1,500 हस्तलिखित, एवं ताडपत्रीय प्रतियाँ तथा पुस्तकाकार 10,000 ग्रंथ संग्रहित हैं।102 जिसमें अनेक दुर्लभ प्राचीन कलाकृतियों से सज्जित प्रतियां भी है। इसी प्रकार अपनी अंतिम अवस्था में वि.सं. 1962 में राजगढ में हीराचंदजी पुराणी को प्रेरणा देकर 'श्री पार्श्व गौतम राजेन्द्र ज्ञान भंडार' की स्थापना करवायी।103 100. श्री राजेन्द्रसूरि का रास पृ. 83 101. अभिधान राजेन्द्र कोश भा. 1 उपोद्घात पृ. 13 102. श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी, पृ. 89, 90 103. शिलालेख - श्री पार्श्व-गौतम-राजेन्द्र ज्ञान भण्डार, श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर, राजेन्द्र भवन, राजगढ (जि. धार) म.प्र. (सज्झाय जह सुरकरी करीसुं, अमरेसु हरी गिरिसु कणयगिरी । तह धम्मेसु पहाणो, दाणाई चउह जिणधम्मो ॥ तत्थ वि सुनिकाइयकम्म धम्म जलहरसमो तवो पयरो । तत्थ वि य विसेसिज्जइ, सज्झाओ जिणेहिं भणियं ॥2॥ कम्ममसंखिज्जभवं, खवेइ अणुसमयमेव आउत्तो । अन्नयरंमि वि जोगे, सज्झायंमि य विसेसेण ॥3॥ बारसविहंमि वि तवे, सब्भितरबाहिरे कुसलदिटे। नवि अत्थि नवि य होही, सज्झायसमं तवोकम् ॥4॥ सज्झाएण पसत्थं, झाणं जाणइ य सव्वपरमत्थं । सज्झाए वदंतो, खणे खणे जाइ वेरग्गं ॥5॥ अङ्कमहतिरियनरए, जोइसवेमाणिया य सिद्धी य । सव्वो लोगालोगो, सज्झायविउस्स पच्छक्खो ॥6॥ - अ.रा. 7/1145 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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