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________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन प्रथम परिच्छेद... [19] 7. दशाई (धार) में सं 1940 फा.सु. सप्तमी को श्री आदिनाथादि 9 जिन प्रतिमाओं की अंजनशलाका और जिनालय में प्रतिष्ठा की। 8. शिवगंज (राजस्थान) में सं. 1945 के माघ सुदि पंचमी के दिन मेघाजी मोतीजी और वनाजी मोतीजी के द्वारा निर्मित श्री अजितनाथजी और चौमुखजी जिनालय के लिये तथा अन्य ग्राम नगरों के लिये दो सौ पचास जिनबिम्बों की अंजनशलाका सहित उक्त दोनों जिनालयों को भी प्रतिष्ठा की। 9. कुक्षी (मालवा) में वि.सं. 1947 के वैशाख शुक्ला सप्तमी को श्री आदिनाथ जिनालय चौबीस देव कुलिकाओं के लिये 75 जिन प्रतिमाओं की अंजनशलाका और दो जिनालयों की प्रतिष्ठा की। 10. तालनपुर तीर्थ (म.प्र.) में वि.सं. 1950 माघ वदि द्वितीया को जमीन से निकली प्राचीन जिनप्रतिमाओं की एवं पार्श्वनाथजी के चरण युगल की प्रतिष्ठा की। 11. खट्टाली (मालवा) में वि.सं. 1950 के माघ सु. द्वितीया के दिन नूतन जिनालय में विराजमान करने के लिये श्रीनेमीनाथादि तीन प्रतिमाओं की अंजनशलाका की और उन्हें जिनालय में प्रतिष्ठित किया। रिंगनोद (मालवा) में वि.सं. 1951 के माघ सु. सप्तमी को नूतन जिनालय के लिये श्री चन्द्रप्रभ आदि 7 जिन प्रतिमाओं की अंजनशलाका की और उन्हें नूतन जिनालय में प्रतिष्ठित किया। झाबुआ (मालवा) में बावन जिनालय समलंकृत श्री ऋषभदेव जिनालय के लिये दो सौ इक्यावन 251 जिन प्रतिमाओं की अंजनशलाका और प्राणप्रतिष्ठा की। बडी काडोद (मालवा) में खेताजी वरदाजी के पुत्र उदय-चन्दजी के बनवाये सौधशिखरी जिनालय में विराजमान करने के लिये सं. 1953 के वैशाख सुदि सप्तमी को श्रीवासुपूज्य प्रभु आदि 15 प्रतिमाओं की अंजनशलाका की और दो जिनालयों की प्रतिष्ठा का । की। 18. 15. पिपलोदा (मध्य भारत) में सं. 1954 वै.सु सप्तमी को श्री सुविधिनाथादि जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा की। राजगढ (धार) वि.सं. 1954 मार्ग शु. दशमी को श्री शांतिनाथ जिनालय की प्रतिष्ठा की। आहोर (राजस्थान) श्री गोडीपार्श्वनाथ जिनालय की बावन (52) देव कुलिकाओं के लिये तथा अन्यत्र ग्राम नगरों में विराजमान करने के लिये नौ सौ इक्यावन छोटे-बड़े जिनबिम्बों की अंजनशलाका की। यह विशाल और विराट तथा अनुपम महोत्सव वि.सं. 1955 की फाल्गुन वदि पंचमी गुरुवार को हुआ था। इस महोत्सव में मालवा, मारवाड आदि देशों की 35 हजार जनता आई थी। इस प्रतिष्ठोत्सव के अवसर पर श्रीमद् गुरुदेव के सहपाठी और अन्य विद्याशिष्य ऐसे अनेक यति भी आये थे जिनमें श्री मोतीविजयजी, श्री रुपविजयजी, फतेसागरजी और ज्ञानसागरजी मुख्य थे। प्रतिष्ठा उत्सव का जलसा और संघ में गुरुदेव के प्रति आदर स्नेह और भक्ति देखकर यतिगण आश्चर्य में पड़ गया था। क्रियोद्धार के दिन यति श्री महेन्द्रविजयजीने गौरवपूर्ण उज्जवल भविष्य का संकेत दिया था, वह वर्तमान में सत्य सिद्ध हुआ। सियाणा (राजस्थान) में परमाईत महाराजा कुमारपाल द्वारा निर्मित श्री सुविधिनाथ चैत्य के चारों ओर श्रीसंघ निर्मित देवकुलिकाओं के लिए वि.सं. 1958 के माघ सु 13 गुरुवार को महोत्सव सहित अजितनाथादि दो सौ एक जिन प्रतिमाओं कीअंजनशलाका एवं प्राणप्रतिष्ठा करके उनको मंदिर में यथास्थान विराजमान करवाया। 19. कोरटा तीर्थ (राजस्थान) में वि.सं. 1956 के वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को श्री आदिनाथादि प्राचीन प्रतिमाओं की नवनिर्मित विशाल जिनालय में प्रतिष्ठा तथा अन्य स्थानों के लिये दो सौ एक जिन प्रतिमाओं की अंजनशलाका की। आहोर (राजस्थान) में सं. 1956 के माघ वदि प्रतिपदा को श्री राजेन्द्रसूरि धर्मक्रिया मंदिर में स्थित श्री शांतिनाथ गृहचैत्य में सर्वधातु की श्री शांतिनाथादि जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। इसी दिन कडोद (मालवा) निवासी शा. खेताजी वरदाजी के पुत्र उदयचन्दजी के द्वारा बनवाये श्री राजेन्द्र जैनागम बृहद् ज्ञान भंडार में ज्ञान प्रतिष्ठा की। इसमें लगभग 1500 हस्त प्रतियाँ और 10 हजार मुद्रित ग्रंथो का संग्रह है। इस ज्ञानसागर में अनेक दुर्लभ प्राचीन कलाकृतियों से सज्जित प्रतियाँ भी हैं। गुडाबालोतान् (जि. जालोर) में शा. अचलाजी दोलाजी द्वारा निर्मित जिनालय में वि.सं 1956 के माघ सुदि पंचमी को श्री धर्मनाथादि जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। बाग (धार, म.प्र.) में वि.सं. 1961 के मार्गशीर्ष सुदि पंचमी के दिन श्री विमलनाथादि सात जिनबिम्बों की अञ्जनशलाका कर जिनालय में प्रतिष्ठित की। राजगढ (धार) में वि.सं. 1961 के माघ सुदि पंचमी को खजांची दौलतराम चुन्नीलालजी के बनवाये श्री अष्टपदावतार-चैत्य में विराजमान करने के लिये तथा अन्य ग्रामों के लिये श्री ऋषभदेवादि इकयावन (51) जिनबिम्बों की अंजनशलाका एवं प्राणप्रतिष्ठा की। राणापुर (मालवा) के श्वेताम्बर श्री संघ द्वारा निर्मित विशाल जिनालय में विराजमान करने के लिये वि.सं. 1962 के फाल्गुन सुदि तृतीया को धर्मनाथादि ग्यारह जिनप्रतिमाओं की अंजनशलाका प्राणप्रतिष्ठा की और जिनालय में उनकी प्रतिष्ठा करवाई। सरसी (मालवा) में वि.सं. 1962 के ज्येष्ठ सु. 4 को श्रीचन्द्रप्रभुजी आदि जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा की। राजगढ (मालवा) में शा. दौलतराम हीराचन्दजी के बनवाये गुरु मंदिर में वि.सं. 1962 के मागशीर्ष सु. 2 के दिन श्री पार्श्वनाथादि जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा की। 26. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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