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[430]... षष्ठ परिच्छेद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
| 2. अभिधान राजेन्द्र कोश में अनुस्यूत |
आचारपरक सूक्तियाँ
प्रथम भाग :
अति सर्वत्र वर्जयेत् । अति सर्वत्र वर्जनीय है।
- अ.रा.पृ. 1/1, धर्म संग्रह सटीक : प्रथम अधिकार अकरणान्मन्दं करणं श्रेयः। नहीं करने की अपेक्षा कुछ करना अच्छा है।
- अ.रा.भा. 1 पृ. 123; विक्रमचरित 1/3 सम सुहदुक्ख सहे य जे, स भिक्ख । सुख दुःख में जो एक रुप रहे वही सच्चा साधु ।
- अ.रा.पृ. 1/1233; दशवैकालिकमूल 10/11 प्रायःस्त्रीणां विश्वासो न कार्यः। प्रायः करके स्त्रियों का विश्वास नहीं करना चाहिए।
- अ.रा.पृ. 1/154 अगीयत्थस्स वयणेण, अमियं पि न घोट्टए। अगीतार्थ के कहने से अमृत भी न पीये।
- अ.रा.पृ. 1/162; महानिशीथसूत्र 6/150 अजीर्णे अभोजनमिति । अजीर्ण में भोजन उचित नहीं।
- अ.रा.पृ. 1/203; धर्मबिन्दु 21/43 अजीर्णे भेषजं वारि, जीर्णे वारि बलप्रदम् । अजीर्ण में पानी औषधि है और पाचन होने पर शक्तिवर्धक है।
- अ.रा.पृ. 1/2033; चाणक्यनीति 8/7%; वाचस्पत्यभिधानकोश आहंसु विज्जाचरणं पमोक्खं । ज्ञान और कर्म से ही मोक्ष प्राप्त होता है।
- अ.रा.पृ. 1/240, 3/556; सूत्रकृतांग 1/12/11 सम लेछु कंचणे भिक्खू । सोना और मिट्टी को समान समझने वाला भिक्ष है।
- अ.रा.पृ. 1/281; 7/281; उत्तराध्ययन 35/13 माणुस्सं खु सुदुल्लहम्। मनुष्यजन्म निश्चय ही दुर्लभ है।
- अ.रा.पृ. 1/322; उत्तराध्ययन 20/11 यत्राकुतिस्तत्र गुणाः वसन्ति । मनुष्य की जैसी आकृति होती है वैसे उसमें गुण रहते हैं।
- अ.रा.पृ. 1/352 सच्चे तत्थ करे हु वक्कमम्। सत्य हो उसी में ही पराक्रम करो ।
- अ.रा.पृ. 1/423; सूत्रकृतांग - 1/2/3/14 अज्ञानं खलु कष्टम् । अज्ञान ही कष्टदायक है।
- अ.रा.पृ. 1/448; आगमीय सूक्तावली पृ. 19;
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