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________________ [332]... चतुर्थ परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन कहलाता है। अतिचार-दोषों की 'शुद्धि' के लिए कायिक क्रियाओं (1) उत्थितोत्थित : खडे-खडे धर्मध्यान और शुक्लध्यान रुप का त्याग 'कायोत्सर्ग' है; अथवा काय के प्रति जो ममता विद्यमान चिन्तन करना। है उसका त्याग कायोत्सर्ग है।48 व्युत्सर्ग को कायोत्सर्ग भी कहते (2) उत्थितनिविष्ट : खडे-खडे आर्तध्यान और रौद्रध्यान रुप हैं। वर्णीजी के अनुसार बाहर में क्षेत्र, वास्तु आदि का और अभ्यन्तर चिन्तन करना। में कषायादि का अथवा नियत या अनियत काल के लिए शरीर (3) उपविष्टोत्थित : बैठे-बैठे धर्मध्यान और शुक्लध्यान रुप का त्याग करना व्युत्सर्ग तप है, जिसका अपर नाम कायोत्सर्ग है।" चिन्तन करना। उत्सर्ग, व्युत्सर्जन, उज्झणा, अवकिरण, छर्दन, विवेक, त्यजन (4) उपविष्टोपविष्ट : बैठे-बैठे आर्तध्यान और रौद्रध्यान रुप (त्याग), उन्मोचन और परिशातना/शातना - ये कायोत्सर्ग के एकार्थवाची चिन्तन करना। शब्द हैं।50 अभिधान राजेन्द्र कोश में आचार्यश्री ने कायोत्सर्ग के नौ कायोत्सर्ग के भेद : प्रकार भी बताये हैं - (1) उत्सृतोत्सृत (2) उत्सृत (3) उत्सृतनिषण्ण योत्सर्ग तप में बाह्य और आभ्यन्तर. दोनों प्रकार की (4) निषण्णोत्सृत (5) निषण्ण (6) निषण्णनिषण्ण (7) निष्पन्नोत्सृत वस्तुओं का त्याग किया जाता है। इस दृष्टि से व्युत्सर्ग दो प्रकार (8) निष्पन्न (9) निष्पन्ननिपन्न 165 -इनका विशेष विस्तार अभिधान का है - द्रव्यव्युत्सर्ग और भाव-व्युत्सर्ग 151 द्रव्य व्युत्सर्ग में गण/ राजेन्द्र, पृ. 3/407 से 410 से द्रष्टव्य हैं। शरीरादि बाह्य वस्तुओं का त्याग होता है। भाव व्युत्सर्ग में क्रोधादि आचार्य जिनदास गणी महत्तरने कायोत्सर्ग के दो प्रकार कषायादि आभ्यन्तर वस्तुओं का त्याग किया जाता हैं । द्रव्य व्युत्सर्ग बतलाये हैं -1. द्रव्य कायोत्सर्ग 2. भाव कायोत्सर्ग । शारीरिक चंचलता चार प्रकार का है - शरीर व्युत्सर्ग, गण व्युत्सर्ग, उपधि व्युत्सर्ग और ममता का परित्याग कर जिनमुद्रा में स्थिर होना कायोत्सर्ग कहलाता और भक्तपान व्युत्सर्ग 153 भाव व्युत्सर्ग के तीन भेद बताए गये है। इसे द्रव्य कायोत्सर्ग भी कहते हैं। इसके बाद साधक धर्मध्यान हैं - कषाय व्युत्सर्ग, संसार व्युत्सर्ग और कर्म व्युत्सर्ग 154 और शुक्लध्यान में रमण करता है। मन को पवित्र विचार और उच्च शरीर व्युत्सर्ग- कायोत्सर्ग पूर्वक या कायोत्सर्ग में शरीर का त्याग संकल्प से बांधता है जिससे उसे शारीरिक वेदना नहीं होती। वह करना, शरीर व्युत्सर्ग हैं। शरीर में रहता हुआ भी शरीर से भिन्न चैतन्य का अनुभव करता गण व्युत्सर्ग - गण (गच्छ) का त्याग करना, 'गण व्युत्सर्ग' है, यह भाव कायोत्सर्ग का प्राण है। कहलाता हैं। द्रव्य कायोत्सर्ग भाव कायोत्सर्ग तक पहुंचने की पूर्व भूमिका उपधि व्युत्सर्ग - उपधि अर्थात् अशुद्ध उपकरण अथवा अशुद्ध/ है। द्रव्य कायोत्सर्ग में बाह्य वस्तुओं का विसर्जन किया जाता है अतिरिक्त आसन शयन, वस्त्र और पात्र का त्याग करना उपधि और भाव कायोत्सर्ग में कषायादि का त्याग किया जाता है। व्युत्सर्ग हैं।57 कायोत्सर्ग करने की विधि :भक्तपान-व्युत्सर्ग - अन्न-जल अर्थात् भोजन-पानी का सर्वथा मन-वचन-काय की एकाग्रतापूर्वक एक स्थान पर स्थिर या आंशिक रुप से नियत या अनियत समय के लिये या यावज्जीव रहकर, मौनपूर्वक, धर्मध्यान/शुक्लध्यान पूर्वक दोनों पैरों के बीच में त्याग करना भक्त-पान व्युत्सर्ग हैं।58 चार अंगुल अन्तर रखकर दाहिने हाथ में मुहपत्ती और बाँये हाथ कषाय व्युत्सर्ग- क्रोध, मान, माया और लोभ -इन चारों कषायों में रजोहरण रखकर कायोत्सर्ग करना चाहिए। कायोत्सर्ग पूर्ण होने का त्याग करना 'कषाय व्युत्सर्ग' हैं।59 पर 'नमो अरिहन्ताणं' बोलना चाहिए। कायोत्सर्ग अभिमान, मोह, संसार व्युत्सर्ग - नरक-तिर्यंच-मनुष्य और सांसारिक कामभोगों 48. अ.रा.प. 3/404; जैन सिद्धान्त कोश-3/620 का, भौतिक सुख-वैभव का त्याग करना 'संसार व्युत्सर्ग' हैं।60 49. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, पृ. 4/619, कर्म व्युत्सर्ग - ज्ञानावरणादि कर्मो के बंधहेतुओं का तथा ज्ञान- ___50. अ.रा.पृ. 3/406 प्रत्यनीकादि का त्याग करना, कर्म व्युत्सर्ग हैं। 1. ज्ञानावरण 2. 51. अ। अ.रा.पृ. 6/1123 दर्शनावरण 3. वेदनीय 4. मोहनीय 5. आयु 6. नाम 7. गोत्र और 52. अ.रा.पृ. 6/1123 53. अ.रा.पृ. 6/1123 8.अंतराय -इन आठ कर्मों के भेद से आठ प्रकार का हैं। 54. अ.रा.पृ. 6/1123 दव्यव्युत्सर्ग और भावव्युत्सर्ग : 55. अ.रा.पृ. 6/1123, 3/404 द्रव्य से गण, उपधि, शरीर, भक्त-पानादि का त्याग तथा ___56. अ.रा.पृ. 3/821 आर्त और रौद्र ध्यान का त्याग-द्रव्य व्युत्सर्ग है, और भाव से स्वस्थान ___57. अ.रा.पृ. 6/1123 58. का त्याग या धर्मध्यान और शुक्लध्यान में लीनता भाव व्युत्सर्ग हैं। अ.रा.पृ. 5/1365 59. अ.रा.पृ. 6/1123 अभिधान राजेन्द्र में कायोत्सर्ग शब्द के अन्तर्गत अन्य तरह से भी 60. वही दो प्रकार दर्शाये हैं 61. अ.रा.पृ. 3/342 (1) चेष्टा कायोत्सर्ग - भिक्षाचर्या, गमनागमनादि संबंधी। 62. अ.रा.पृ. 6/1123 (2) अभिभव कायोत्सर्ग - उपसर्ग आने पर या दिव्यादि से 63. अ.रा.पृ. 3/406 अभिभूत होने पर किया जानेवाला कायोत्सर्ग 64. मूलाचार-973; भगवती आराधना-116/278/27; जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश 3/619; अ.रा.पृ. 3/407 मूलाचार में और भगवती आराधना में व्युत्सर्ग के अन्य 65. अ.रा.पृ. 3/407 चार प्रकार बताये हैं 66. अ.रा.पृ. 3/408, 425,426 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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