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अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
चतुर्थ परिच्छेद... [251] से गृहस्थ में क्लेश, मारपीट आदि की संभावना होने से इस दोष से दुष्ट 14. आच्छेद्य दोष:आहार साधु के लिए त्याज्य हैं।
साधु-साध्वी के लिए किसी अन्य के स्वामित्व की वस्तु 11. अभ्याहृत दोष :
उनसे छीनकर लाई हुई या चोरी करके लाई हुई वस्तु साधु-साध्वी के साधु-साध्वी के लिए अन्य स्थानादि से सामने लाकर या द्वारा ग्रहण करने पर आच्छेद्य दोष लगता है। आच्छेद्य दोष तीन प्रकार उनके स्थान पर लाकर उन्हें आहारादि देना 'अभ्याहत दोष' है। का है। अभ्याहृत दोष दो प्रकार का हैं
1. प्रभु संबंधी - गृहनायक के द्वारा अपनी पत्नी, पुत्रादि, भाई, 1. आचीर्ण- जो अभ्याहृत आहार कारण होने पर ग्राह्य है, उसे
नौकर,दास-दासी, गोपालादि से छीनकर या 'आचीर्ण अभ्याहृत' हैं। कारण विशेष उपस्थित होने
उनके अधिकार की वस्तु (आहारादि) उन्हें पर जघन्य से उपाश्रय या वसति (साधु का निवास)
बिना पूछे साध्वादि को देना। से तीन घर तक से, उत्कृष्ट से 100 हाथ प्रमाण दूरी से 2. स्वामी संबंधी- ग्रामनायक (सरपंच, मुखिया आदि) के द्वारा और मध्यम उतनी दूरी के बीच के स्थान से यदि
गाँव के दरिद्रादि परिवार या अन्य से आहारादि श्रावक आहारादि लाकर मुनि को प्रदान करें तो वह
छीनकर साध्वादि को देना। आचीर्ण/ग्रहण कर सकते हैं, क्योंकि उतने मार्ग में
3.चोर संबंधी - चोर के द्वारा दूसरों से छीनी गई, चोरी की हुई पैदल चलकर आने से एवं स्थान निकट होने से
वस्तु साध्वादि को देना। श्रावक उपयोग पूर्वक चल सकने के कारण जयणा
इस दोष के सेवन से साधु के प्रति अप्रीति, क्लेश, मानसिक हो सकती हैं।35
तनाव, रुदन तथा साधु को उपसर्ग होने की संभावना रहती हैं। 2.अनाचीर्ण-जो अभ्याहृत आहारादि ग्रहण करने योग्य नहीं है, उसे 'अनाचीर्ण अभ्याहृत' कहते हैं।36
15. अनिःसृष्ट दोष :मुनि स्वक्षेत्र (अपने स्थान) में, पाँव नहीं होने पर या
जिस वस्तु पर पूरी मण्डली का स्वामित्व है- एसे आहारादि पाँव से चलने में असमर्थ होने पर, गोचरी जाने पर को श्रावक के द्वारा मण्डली की अनुमति बिना या आहारादि के स्वामी भी आहार दुर्लभ होने पर, उपद्रव होने पर, गोचरी की आज्ञा के बिना साधु-साध्वी को देने पर साध्वादि को 'अनिःसृष्ट जाने में असमर्थ होने पर, पैदल रास्ता न होने पर, दोष' लगता है। रास्ते में उपद्रव की संभावना होने पर, दुर्भिक्ष होने
यह अनिःसृष्ट दोष मोदक (लड्ड विषयक, भोजन विषयक, पर, राजादि दुष्ट होने के कारण उपद्रव की शंका होने । कोल्हू आदि यंत्र (प्राणक) विषयक, संखडी (विवाहादि) विषयक, पर, स्वयं रोगाविष्ट होने पर, नवदीक्षित साधु या साथ खी/दूध विषयक आदि अनेक प्रकार से है। वाले वृद्ध, रोगी आदि साधु आहारादि के बिना पीडित
इससे लोगों को साधु के प्रति अप्रीति, प्रवचन-उड्डाह, होने पर अभ्याहृत (सामने लाया हुआ) आहार ग्रहण क्लेश, साधु के प्रति आक्रोश, प्राणांत संकट, दाता की आजीविका करने में यतनापूर्वक वर्तता हैं।
विच्छेद इत्यादि की संभावना होने से अनिःसृष्ट पिण्डादि मुनि 12. उद्भिन्न दोष :
के लिए त्याज्य हैं। साधु-साध्वी को घी, तेल, लड्डू, आहारादि प्रदान करने के 16. अध्यवपूरक दोष :लिए मिट्टी आदि से बंद किये गए घडे, कोठी आदि के मुख पर से __साधु-साध्वी का आगमन सुनकर या जानकर स्वयं के लिए मिट्टी वगैरह हटाना या कपाट या ताला आदि खोलकर आहारादि देने पर बन रही रसोई (आहारादि) में साधु-साध्वी को प्रदान करने की बुद्धि 'उद्भिन्न दोष' लगता हैं। मिट्टी आदि हटाने पर या हटाकर पुनः लिपकर से भोजनादि सामग्री बढाना अध्यवपूरक दोष हैं। यह जल, चावलादि बंद करने पर या तालादि खोलने पर षड्निकाय जीवों की हिंसा की
तथा फल, फूल, शाक-शब्जी, बेसन, नमक आदि भेद से अनेक संभावना होने से यह एसा आहार त्याज्य हैं।
प्रकार से हैं। 13. मालापहृत दोष :मेढी (ऊपरी मंजिल) छींका, तान या तलघरादि से आहारादि
34. अ.रा.पृ. 1/730, पञ्चाशक-13 विवरण लाकर साधु-साध्वी को प्रदान करने पर 'मालोपहत दोष' लगता हैं।
35. अ.रा.पृ. 1/731-32-33 यह दो प्रकार से हैं।
36. अ.रा.पृ. 1/730 (1) जघन्य से पाँव ऊँचा करके या पटिया, चौकी आदि पर
37. अ.रा.पृ. 5/733; निशीथ चूर्णि-11720 पर टीका चढकर आहारादि उतारना
38. अ.रा.पृ. 2/867, पञ्चाशक-13 विवरण (2) उत्कृष्ट से - निसरणी द्वारा ऊपरी मंजिल से आहारादि लाना। 39. अ.रा.पृ. 5/257 से 260
जघन्य से मालापहृत आहार लाने में सर्पदंशादि तथा उत्कृष्ट 40. अ.रा.1/197, 198 से निसरणी आदि से गिरने की संभावना होने से प्राणघात तथा पृथ्वीकायादि 41. अ.रा.पृ. 1/336 जीवों की हिंसा की संभावना होने से मालापहृत दोषदुष्ट आहार साधु के
42. अ.रा.पृ. 1/336 लिए त्याज्य हैं।
43. अ.रा.पृ. 1/337, 338 44. अ.रा.पृ. 1/233-234
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