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________________ अनुशंसा. इस शोध-प्रबन्ध में अभिधान राजेन्द्र कोश की शब्दावली का आचारपरक दार्शनिक अध्ययन किया गया हैं । उपसंहार सहित यह शोध-प्रबन्ध सात अध्यायों में विन्यस्त हैं। इसमें अपेक्षित उद्देश्यों की पूर्ति में 1-आचारपरक शब्दों का विषयक्रम से संकलन और वर्गीकरण किया गया है। 2-शब्दों की व्युत्पत्ति और निरुक्ति प्रस्तुत की गई है। 3-शब्दों की अन्य कोशग्रन्थों से तुलना की गई है। 4-विभिन्न जैन परम्परा से सम्बद्ध सम्प्रदायों की भिन्नता आरोपित की गई है। इस शोध प्रबन्ध के अध्यायों का विभाजन परिच्छेद के नाम से किया गया है। प्रथम परिच्छेद में आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी के जीवन और कर्तृत्व का निरुपण है। द्वितीय परिच्छेद में कोश साहित्य और अभिधान राजेन्द्र कोश का परिचय दिया गया है। तृतीय परिच्छेद में अभिधान राजेन्द्र कोश की साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और दार्शनिक शब्दावली का परिचय दिया गया है। चतुर्थ परिच्छेद में आचारपरक शब्दावली का आकलन और अनुशीलन प्रस्तुत किया गया है। आचारपरक शब्दावली का साधु और श्रावक की दृष्टि से द्विधा विभाजन किया गया है। पञ्चम परिच्छेद में आचारपरक शब्दावली के वाच्यार्थ का विस्तार है। इसमें श्वेताम्बर, दिगम्बर इन दोनों जैन परम्परा एवं ब्राह्मण , बौद्ध और इतर परम्परा में जैनाचारों के अन्तः सम्बन्धो का निरुपण है। षष्ठ परिच्छेद में आचारपरक शब्दावलियों में निहित कथाओं और सूक्तियों का निरुपण किया गया है एवं सप्तम अध्याय में उपसंहार किया गया है। शोध-प्रबन्ध में 'अभिधान राजेन्द्र' की शब्दावलियों के अनुशीलन में जैनाचार की महत्ता और दार्शनिक दृष्टि से अनुशीलन से यह तथ्य विषयों का पर्याप्त ज्ञान है। लगभग 700 पृष्ठों में इस शोध-प्रबन्ध को सघन और त्रुटिरहित शब्दों में प्रस्तुत किया गया है। अभी तक इस प्रकार का कार्य हमें देखने को नहीं मिला। इससे जिज्ञासुओं और विद्वानों को अत्यन्त लाभ होगा। उत्तम शोध-प्रबन्ध की रचना करनेवाली शोधकर्जी तथा उनके निर्देशक अवश्य ही बधाई के पात्र है। इस शोध प्रबन्ध का प्रकाशन और वितरण अवश्य ही अध्येताओं के लिए महनीय उपयोगी होगा। इसे सद्य और समुचित प्रकाशन करवाने की मेरी दृढ अनुशंसा है। दि. 22-4-2005 प्रो.- रहसबिहारी द्विवेदी-संस्कृत विभाग (रानी दुर्गावती वि.वि.-जबलपुर) साध्वी दर्शितकलाश्री द्वारा 'अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन' - नाम से प्रस्तुत शोधप्रबन्ध का मैंने अवलोकन किया । यह शोधप्रबन्ध नूतन दृष्टिकोण से ओतप्रोत है । सात परिच्छेदों में प्रस्तुत इस शोधप्रबन्ध में अनुसन्धात्रीने आचार्य श्री राजेन्द्रसूरिजी के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व तथा कोश-परम्परा की उपयोगी प्रासङ्गिक चर्चा है तथा फिर चतुर्थ से षष्ठ अध्यायों में आचारपरक शब्दावली का विवेचन किया है । इन अध्यायों में जैनाचार का कोई पक्ष नहीं छूटा है, सामान्यतः सभी पक्षों/बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है। तृतीय अध्याय में अभिधान राजेन्द्र कोश की साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं दार्शनिक शब्दावली का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। शोधप्रबन्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण चतुर्थ परिच्छेद है, जिसमें साध्वाचार एवं श्रावकाचार के आचार संबंधी सिद्धान्तों की चर्चा की गई है। पंचम अध्याय में अन्य परम्पराओं के साथ जैन परम्परा के आचार की तुलना भी महत्त्वपूर्ण है। अभिधान राजेन्द्र कोश अपने आपमें महत्त्वपूर्ण कृति है, जो प्राकृत एवं संस्कृत में निबद्ध है। साध्वी दर्शितकलाने उसके हार्द को हिन्दी भाषा में समझाने का सफल प्रयास करते हए अन्य ग्रन्थों का भी उपयोग किया है। शोधाध्येत्री के श्रम, शोधदृष्टि एवं विश्लेषणात्मक लेखन के आधार पर मैं मौखिक परीक्षा के अनन्तर पीएच.डी. उपाधि प्रदान किए जाने की संस्तुति करता हूँ। प्रो. - धरमचंदजी जैन (जोधपुर वि.वि.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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