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अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
चतुर्थ परिच्छेद... [177] मोक्ष प्राप्ति की प्रक्रिया:
(34) उपधि प्रत्याख्यान - जिनकल्पी अवस्था में रजोहरण और अभिधान राजेन्द्र कोश में आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने
मुखवस्त्रिका (मुहपत्ति) के अतिरिक्त शेष उपधि का त्याग
(35) आहार प्रत्याख्यान - सदोष आहार का त्याग उत्तराध्ययन सूत्र को उद्धृत करते हुए भव्यात्मा की सम्यक्त्व से मोक्ष
(36) कषाय प्रत्याख्यान - क्रोधादि का त्याग प्राप्ति तक के क्रमिक आचरण का वर्णन निम्नानुसार किया है213
(37) योग प्रत्याख्यान - मन-वचन-काया की प्रवृत्ति का त्याग (1) सम्यक्त्व से संवेग - मोक्षभिलाषा
(38) शरीर प्रत्याख्यान - परिस्थिति प्राप्त होने पर शरीर का भी (2) निर्वेद - संसार से विरक्ति (वैराग्य)
त्याग (3) धर्मश्रद्धा - धर्म में श्रद्धा एवं रुचि
(39) साहाय्य प्रत्याख्यान - सहायकों की सेवा लेने का त्याग (4) गुस्साधर्मीशुश्रुषा - तत्त्वोपदेष्टागुरु एवं साधार्मिक की सेवा
(40) भक्तपान प्रत्याख्यान - अनशन ग्रहण करना (5) आलोचना-गुरु के पास पापों का प्रकटीकरण
(41) सद्भाव प्रत्याख्यान - सद्भावपूर्वक पुनः नहीं करने रुप परमार्थ (6) निन्दा - आत्मा साक्षी से स्वयं के द्वारा किये गये पापों की
वृत्ति से त्याग निन्दा
(42) प्रतिस्पता - स्थविरकल्पी साधु योग्य वेश धारण करना (7) गर्हणा - दूसरे लोगों के सामने स्वयं के दोषों का प्रकाशन
(43) वैयावृत्त्य (गुर्वाज्ञा प्राप्त करके) गुरु के कार्य करना, साधुओं (8) सामायिक - शत्रु-मित्र के प्रति समभाव
की गोचरी (आहारादि) लाना (9) चतुर्विशतिस्तव - 24 जिनों का नाम पठन लोगस्सादि सूत्रों
(44) सर्वगुणसंपन्नता - ज्ञानादिगुणयुक्त बनना का पाठ करना
(45) वीतरागता - राग-द्वेष का निवारण (10) वन्दन - द्वादशावर्त वंदनपूर्वक गुरुवन्दना
(46) क्षान्ति - क्षमा (11) प्रतिक्रमण - पाप से निवृत्ति
(47) मुक्ति - निर्लोभता (12) कायोत्सर्ग - अतिचार की शुद्धि हेतु काय ममत्व का त्याग,
(48) भार्दव - मान त्याग कायोत्सर्ग (काउसग्ग)
(49) आर्जव - सरलता (13) प्रत्याख्यान - पच्चक्खाण । मूल-उत्तर गुण को धारण करना
(50) भावसत्य - अन्तरात्मा की शुद्धि (14) स्तवस्तुतिमङ्गल - नमुत्थुणं, आदि स्तव या स्तुति कहना अथवा
(51) करण सत्य - प्रतिलेखन (पडिलेहण) आदि क्रिया में आलस्य जिन भक्ति हेतु स्तवन या एकादि से 108 तक स्तुति कहना
का त्याग करना (15) काल प्रतिलेखना - अस्वाध्याय के चार काल (व्याघात काल) (52) योग सत्य - मन-वचन-काया के योगों में सत्यता का प्रतिलेखन करना अर्थात् शास्त्र-निषिद्ध काल में सूत्रादि
(53) मनोगुप्तित्व - अशुभ विचार से मन का गोपन करना अध्ययन का त्याग करना।
(54) वचन गुप्तित्व - अशुभ वाणी से गोपन करना (16) प्रायश्चित्तकरण - लगे हुए पापों की निवृत्ति हेतु तप करना।
(55) काय गुप्तित्व - काया के अशुभ व्यापार से गोपन करना (17) क्षमापना - कृत अपराध की क्षमापना करना
(56) मनः समाधारण - मन को शुभ स्थान में स्थिर करना (18) स्वाध्याय - वाचनादि पाँच प्रकार का स्वाध्याय करना (57) वचन समाधारणा - वचन को शुभ स्थान में स्थिर करना (19) वाचना - गुरु के समीप सूत्राक्षरों का ग्रहण
(58) काय समाधारण - काया को शुभ स्थान में स्थिर करना (20) प्रतिपृच्छना - गुरु के आगे संदेह पूछना
(59) ज्ञान संपन्नत्व - श्रुतज्ञान से युक्त होना (21) परिवर्तना - सूत्र पाठ को बार-बार पढना
(60) दर्शन संपन्नत्व - सम्यक्त्व से युक्त होना (22) अनुप्रेक्षा - सूत्र (के अर्थ, रहस्य) का चिन्तन करना (61) चारित्र संपन्नत्व - यथाख्यात चारित्र युक्त होना (23) धर्म कथा - धर्म संबंधी वार्ता कहना
(62) स्पर्शेन्द्रियनिग्रह (24) श्रुताराधना - सिद्धान्त की आराधना करना
(63) रसनेन्द्रियनिग्रह (25) एकाग्रमनः सन्निवेसना - चित्त को ध्येय में स्थिर करना (64) ध्राणेन्द्रियनिग्रह (26) संयम - आस्रवों का त्याग करना
(65) चक्षुरिन्द्रियनिग्रह (27) तप - 12 प्रकार का तप करना
(66) श्रोत्रेन्द्रियनिग्रह (28) व्यवदान - कर्म निर्जरा करना
(67) क्रोध पर विजय (29) सुखशातन - विषय सुख की स्पृहा का निवारण करना (68) मान पर विजय (30) अप्रतिबद्धता - नीरागी बनना
(69) मायापर विजय (31) विविक्तशयनासनसेवना - स्त्री-पशु-नपुंसकादि से रहित शयन, (70) लोभ पर विजय आसानादि वापरना
(71) प्रेय्यद्वेषमिथ्यादर्शन विजय - प्रेय्य - प्रेमराग, द्वेष-अप्रीति, (32) विनिवर्तना - पांचों इन्द्रियों के विषयों से विशेष निवर्तन (दूर मिथ्यादर्शन-सांशयिकादि मिथ्यात्व (या अन्य दर्शन) पर विजय
(72) शैलेशीकरण - चौदहवें गुणस्थान में स्थान प्राप्त करना (33) संभोग प्रत्याख्यान - एक मण्डली में भोजन का प्रत्याख्यान, (73) अकर्मता - कर्मो का अभाव अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति
गीतार्थ अवस्था में जिनकल्प ग्रहण करने पर एक मण्डली में भोजन त्याग
213. अ.रा. 7/504; 505; उत्तराध्ययनसूत्र सटीक, अध्ययन 29;
रहना)
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