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________________ [126]... तृतीय परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन 4. वस्तु तत्त्व को अवबोध गोचर प्राप्त करानेवाले को 'नय' कहते हैं।16 उपर्युक्त चार निरुक्तियों को 'नय' शब्द का अर्थ स्पष्ट करने के लिए संग्रह करते हुए आगे निरुक्ति के रुप में विशेषावश्यक भाष्य की गाथा को उद्धृत करते हुए आचार्यश्री ने कहा है कि "वक्ता के द्वारा वस्तु की होनेवाली पर्यायों का बोध कराया जाना 'नय' हैं।" अथवा "अनंत धर्मों से आकुलित वस्तु के एक अंश का ग्राहक ज्ञान 'नय' हैं।" इसको और स्पष्ट करते हुए यह कहा गया है कि "प्रायः एक वस्तु की अनेक पर्यायों में से विवक्षित पर्याय का आश्रय करके जो परिच्छेद वक्ता के द्वारा कराया जाता है, उसे 'नय' कहते हैं"18 | आचार्यश्रीने यह स्पष्ट किया है कि जिनवाणी में वस्तु अनंत धर्मात्मक स्वीकृत है और जिनेन्द्र देव का प्रवचन केवलज्ञान रुप प्रमाण से ज्ञात पदार्थ का बोधक है। इसी प्रकार 'नय' भी वस्तु के प्रतिनियत धर्म के व्यवहार की सिद्धि करता है। इसलिए 'नय' भी प्रमाण स्वरुप हैं।19 आलाप पद्धति में 'नय' की प्रामाणिकता स्पष्ट करनेवाला यह कथन प्राप्त होता हैं - "प्रमाण के द्वारा गृहीत वस्तु के एक अंश को ग्रहण करने का नाम 'नय' हैं। अथवा श्रुतज्ञान का विकल्प नय है अथवा ज्ञाता का अभिप्राय नय है अथवा नाना स्वभावों से ही वस्तु को पृथक् करके जो एक स्वभाव में वस्तु को स्थापित करता हैं, वह 'नय' हैं।20 अभिप्राय यह है कि श्रुतज्ञान स्वयं ही प्रमाणरुप हैं (मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाणरुप है)। उस प्रमाण के द्वारा अधिगत पदार्थ के एक अंश का ग्रहण करते हुए वक्ता अपने अभिप्राय से जो सापेक्ष कथन करता है, वह 'नय' हैं। प्रमेयकमलमार्तण्ड में सापेक्ष कथन का स्पष्टीकरण करते हुए यह कहा गया है कि "वस्तु के प्रतिपक्षी धर्मों का निराकरण न करते हुए ज्ञाता के अभिप्राय जो कि वस्तु के एक अंश का ग्रहण करता है, को 'नय' कहते हैं। अभिधान राजेन्द्र कोश में 'णय' (नय) शब्द के अन्तर्गत निम्नाङ्कित विषयों का वर्णन किया गया हैं1. नयनिरुक्ति 2. नयलक्षणनिरुपणपूर्वक नयतत्त्वप्ररुपण 3. नय के स्वरुप की उपपत्ति 4. वस्तुओं के अनन्तधर्मात्मकत्व का निरुपण 5. नय किसे कहते हैं ? नय के भाग 6. नय का आपेक्षिकत्व 7. अपेक्षात्मक वाक्य - नय 8. सामान्य-विशेष विचार 9. सप्तभङ्गी में नय विभाग 10. एकत्र अनेक आकार-प्रमाणधी 11. नयों के प्रमाणाप्रमाणत्व का निर्णय 12. सम्मति तर्क आदि ग्रन्थों में जो अभिनिवेष्टितेतर नय का खंडन है, उसके साधन निमित्त बौद्धादि नय परिग्रह भी शुद्ध पर्यायादि वस्तु की प्राप्ति के कारण से मिथ्यारुप नहीं हैं। - उसका निरुपण 13. नयविभाग में द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक रुप से संक्षेप से नय के दो प्रकार 14. संग्रह-विशेष, द्रव्य-पर्याय के लिये सामान्य-विशेष रुप शब्दवाच्य विचार 15. द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय में नैगमादि नयों का अन्तर्भाव। . 16. नैगमादि सात मूल नयों के विचार में नैगमादि नयों के मतों का संग्रह 17. सिद्धसेन दिवाकर के मत से छ: नय, नैगम नय का संग्रह और व्यवहार नय में अन्तर्भाव . 18. प्रस्थकवसति प्रदेश के. दृष्टान्त से नय प्रमाण परामर्श 19. प्रस्थक दृष्टान्त 20. वसति दृष्टान्त 21. प्रदेश दृष्टान्त 16. 'नयंतीति नया वत्थुतत्तं अवबोहगोयरं पावयंति त्ति ।' अ.रा.पृ. 4/1852 17. स नयइ तेण तहिं वा, तओऽहवा वत्थुणो व जं नयणं । बहुहा पज्जायाणं, संभवओ सो नओ नाम ॥- विशेषावश्यकभाष्य, गाथा-914 18. स एव वक्ता संभवद्भिः पर्यायैर्वस्तु नयति गमयतीति नयः । अथवा नीयते परिच्छिद्यते अनेन, अस्मिन्, अस्माद् वेति नयः, अनन्तधर्माध्यासिते वस्तुन्येकांशग्राहको बोध इत्यर्थः । यदि वा बहुधा वस्तुनः पर्यायाणां संभवाद्धिवक्षितपर्यायेण यन्नयनमधिगमनं परिच्छेदनमसौ नयो नाम । - अ.रा.पृ. 5/1853 19. अ.रा.पृ. 5/1853 20. प्रमाणेन वस्तुसंग्रहीतार्थेकांशो नयः श्रुतविकल्पो वा, ज्ञातुरभिप्रायो वा नयः । नाना स्वभावेभ्यो व्यावृत्य एकस्मिन् स्वभावे वस्तु नयति प्रापयतीति वा नयः । जिनवरस्य नयचक्र, पृ. 15में 'आलाप पद्धति' से उद्धृत 21. अनिराकृतप्रतिपक्षो वस्त्वंशग्राही ज्ञातुरभिप्रायो नयः प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ. 606 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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