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मंगल कामना सर्व सुख का मूल कारण ज्ञान है | ज्ञान प्रकाश करनेवाला है, श्रुतज्ञान से परमार्थ का यथार्थ दर्शन होता है, ज्ञान से क्रिया सम्यग होती है, ज्ञान शीतल ज्योत्सना की तरह सभी लोगों को आल्हादित करता है, ज्ञान वैराग्यवर्धक है, ज्ञान से चारित्र की शुद्धि सद्गति और सिद्धगति प्राप्त होती है।
देवदर्लभ मनुष्य जीवन में श्रमणधर्म मिलने के बावजूद भी शास्त्रों के रहस्यज्ञान की प्राप्ति अतीव दुर्लभ है, ऐसे सांप्रत समय में वात्सल्यमयी वीरवाणी से अलंकत जैनागमरहस्यज्ञाननिधि"श्री अभिधान राजेन्द्र कोश" पर आधारित प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन" की रचना में मेरी गुरू वर्या पूज्या सा.डॉ. दर्शितकलाश्री म.सा. ने धीरतावीरतापूर्वक अट्ठम एवं आयम्बिलादि के अति उग्र तप विश्वपूज्य गुरू देवश्री का जप एवं संयम जीवन के सारे अनुष्ठान करते हुए एवं मुझे भी पीएच.डी. सम्बन्धी अध्ययन करवाते हुए सर्व प्रमाद के आलम्बन को सर्वथा छोडकर सारा वक्त सतत अप्रमादी होकर, प्रसन्नतापूर्वक अनन्य श्रद्धा, संवेग एवं सम्यग्ज्ञानाराधना में एकाग्रचित्त होकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की, जिसकी मैं आद्योपान्त साक्षी हूँ।
विश्वपूज्य दादा गुरू देवश्री आचार्यदेवेश की दिव्यरुपाद्रष्टि, संयमदाता गुरू देवश्री आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. की असीम आशीवष्टि, प्रेरणा एवं मार्गदर्शन तथा पूज्या गुरू माता तपस्वीरत्ना साध्वीवर्या श्री शशीकलाश्री म.सा. की अमीद्रष्टि से ओतप्रोत यह ग्रन्थ सभी के लिए सम्यग रत्नत्रय की आराधना एवं स्वस्वरूप की साधना के लिये प्रेरणा-स्त्रोत बने यही मंगल कामना।.
- साध्वी डॉ. चिन्तनकलाश्री
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