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________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन तृतीय परिच्छेद... [109] धण - धन्व (नपुं.) 4/2659; धन्वन् (नपुं.) 4/2659 यहाँ पर धनुष और चाप के लिए 'धण' शब्द प्रयुक्त हैं। अभिधान राजेन्द्र कोश में आचार्यश्री ने 'धन' - इस प्राकृत शब्द के अन्य अर्थ निम्नानुसार बताये हैं - 'धण ध्वाने (भ्वादि), ध्वण (ध्वन चुरादि), धन धान्योत्पदने (जुहोत्यादि), -इन धातुओं के अर्थ में (अ.रा. 4/2644); वस्तु, धन, सोना-चाँदी, गाय-भैंस घोडे आदि; गुड-शकर, गणिम (जायफलादि), धरिम (कुकुम आदि), मेय (तेल-घी-आदि), परिच्छेद्य (रत्न-वस्त्रादि) ये चार प्रकार के धन; स्नेह, धनिष्ठा नक्षत्र, राजगृही का धन सार्थवाह (4/2645); धन्य, धनार्थी, धनलाभ योग्य, साधु, पुण्यवान्, श्रेयस्कर, सत्पुरुष, अश्वकर्ण वृक्ष, कृतार्थ, अर्थशास्त्र, ज्ञान-दर्शन-चारित्ररुपी धन, काकन्दी एवं राजगृह का धन सार्थवाह, पार्श्वनाथ प्रभु का प्रथम भिक्षादाता श्रावक, अनुत्तरोपपातिकदशांग के तृतीय अध्ययन का नाम, आमलकी, धन्याक, सुरादेव श्रावक की भार्या, मरुदेश, धान्य, इत्यादि (अ.रा. 4/2695) अर्थों में 'धण' शब्द का प्रयोग किया गया है। बल - बल (नपुं.) 5/1287) ___संहननविशेष के कारण उद्भूत प्राण बल (प्राण) है। यह शारीर और मानस दो प्रकार का होता हैं। महासंगाम - महासंग्राम (पुं.) 6/214 चक्रव्यूह आदि व्यूहरचनापूर्वक सैन्य को व्यवस्थित करके किया जानेवाला युद्ध 'महासंग्राम' कहलाता है। महसत्थ - महाशस्त्र (नपुं.) 6/214 उन अस्त्रों की उद्भुतशक्ति के कारण 'नागबाण' आदि दिव्य अस्त्रों को 'महाशस्त्र' कहते हैं । महासिलाकंटय - महाशिलाकंटक (पुं.) 6/219 जिस युद्ध में हस्ति, अश्वादि को तृणादि से किया गया प्रहार भी बडी शिला के प्रहार जैसी वेदना उत्पन्न करता था ऐसा राजा कोणिक और राजा चेटक के बीच हुआ सौधर्मेन्द्र और चमरेन्द्र की सहाययुक्त महायुद्ध 'महासिलाकंटक' के नाम से प्रसिद्ध हैं। रहमुशल - रथमुशल (पुं.) 6/499 जहाँ चमरेन्द्र देव के प्रभाव से (बिना योद्धा के) मुशलयुक्त रथने दौडकर महाजनों का क्षय किया, एसे राजा कोणिक के पुत्रों और राजा चेटक का ऐतिहासिक युद्ध 'रथमुशल' संग्राम के नाम से जाना जाता हैं। वुग्गह - व्युद्गु (पुं.) 6/1411 दण्डादि प्रहार पूर्वक किये जानेवाले युद्ध को 'व्युद्ग्रह' कहते हैं । संगाम - संग्राम (पुं.) 7/76 ___ बडे लोगों के समक्ष होते क्लेश (तंदुलीय सूत्र) या रण के अग्रिम भाग के युद्ध को संग्राम (सूत्रकृतांग 1/3/1) कहते हैं । संगामिया - संग्रामिकी (स्त्री.)7/76 युद्ध का समय उपस्थित होने पर सामन्तादि की जानकारी हेतु जो वाद्य (नगाडा) बजता हैं, उसे 'संगामिया' कहते हैं । सणाह - सन्नाह (पुं.) 7/306 तलवार आदि शस्त्र को सन्नाह कहते हैं । सत्थ - शस्त्र (नपुं.) 7/334 तलवारादि आयुध को 'सत्थ' कहते हैं। अग्नि, विष आदि स्वकायिक, परकायिक भेद से द्रव्य उपकरण है, जबकि, असंयम से दुर्ध्यान में लीन मन-वचन-काय भाव-शस्त्र हैं। जीवों के ऊपर शासन के लिए शस्त्र होते हैं। . सव्वबल - सर्वबल (न.) 7/594 हस्तिसैन्यादि समस्त सैन्य के विषय में 'सव्वबल' शब्द का प्रयोग किया जाता हैं। सहस्सजोहि - सहस्रयोधिन् (पुं.) 7/603 सहस्र मल्लों (योद्धाओं) के साथ एकाकी ही युद्ध करनेवाले योद्धा को 'सहस्रयोधी' कहते हैं । सूर - शूर (पुं.) 7/1029-30 युद्ध में जो वीर होते हैं उनको 'शूर' कहते हैं। "चलं राज्यैश्वर्यं धनकनकरसार: परिजनो, नृपत्वाद् यल्लभ्यं चलममरसौख्यं च विपुलम् । चलं रुपारोग्यं चलमिह चलं जीवितमिदं, जनो दृष्टो यो वै जनयति सुखं सोऽपि हि चलः ॥ -अ.रा.पृ. 1/845 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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