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अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
गोव - गोप (पुं.) 3 / 1011
यहाँ पर गोरक्षक, ग्रामरक्षक, भूमिरक्षक, समुदायाध्यक्ष आदि अर्थो में 'गोप' शब्द प्रयुक्त
हैं।
णाय - नायक (पुं.) 4 / 2002
अभिधान राजेन्द्र कोश में राजनीति में राष्ट्रमहत्तर ( राष्ट्रपति), नगरादि के प्रधान (मंत्री), अधिपति, स्वामी, मजदूरों के नेता, चक्रवर्ती, राजा, और प्रधान के अर्थ में 'नायक' शब्द प्रयुक्त हैं।
दंडणीइ - दण्डनीति (स्त्री.) 4 / 2422
अपराधियों को अनुशासित करने के लिए दण्ड देने की व्यवस्था/ नीति दण्डनीति कहलाती हैं।
कुलकरों के राज्य में तत्कालीन समय में जैनागमों के अनुसार सर्वप्रथम हकार, मकार और धकार ( धिक्कार) दंडनीति प्रारंभ हुई थी। (अ. रा. भा. 3 पृ. 593 'कुलगर' शब्द)
बल - बल (पुं.) 5 / 1287
शक्ति का संग्रह, सामर्थ्य, शारीरिक बल, मानसबल, देह प्राण, संहननविशेष से उत्पन्न प्राणशक्ति, भारवहनादि सामर्थ्य, हस्ति आदि वाहन, पायबल, अश्वबल, हस्तिबल और रथ बल रुप चतुरंगी सेना, सैन्य एवं अन्यान्य राजा, परिव्राजक आदि के नाम के लिए यहाँ बल शब्द प्रयुक्त हैं । यहाँ लौकिक शरीर बल में तीर्थंकर का सर्वश्रेष्ठत्व एवं दशविध अन्य प्रकार के बलों का उल्लेख किया गया हैं। 1 महत्तर - महत्तर ( त्रि. ) 6 / 174 ; महत्तरंग महत्तरक (पुं.) 6/174
अन्तःपुर के व्यवस्थापक, अन्तःपुर रक्षक (कशुंकी को छोडकर), गाँव का मुखिया, अपने आश्रित जनों का मुख्य पुरुष एवं राज्य के कर्मचारी (कार्यवर्ती) को 'महत्तर' या 'महत्तरग' कहते हैं ।
महामंति महामन्त्रिन् (पुं.) 6/208
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मन्त्री मण्डल के वरिष्ठ (मुख्य) मंत्री को 'महामंत्री' कहते हैं।
रज्ज - राज्य (नपुं. ) 6/476
जितने देशों में एक राजा की आज्ञा प्रवर्तित होती हैं, उतने देशप्रमाण राष्ट्र को 'राज्य' कहते हैं। स्वामी (राजा) अमात्य, राष्ट्र, कोश (निधि), बल (सेना), और सुहृत् ( मित्र, दूत) - इन सात अङ्गो से युक्त 'राज्य' होता है ।
रज्ज धर्म- राजधर्म (पुं.) 6/478
प्रति राज्य में भिन्न कर (टेक्स) आदि को भरना 'राज्यधर्म' हैं।
रज्जवइ - राज्यपति (पुं.) 6/478
स्वतन्त्र राजा को 'रज्जवइ' कहते हैं। रज्जाहिवड़ - राज्याधिपति (पुं.) 6/478
राजा और महामंत्री को 'राज्याधिपति' कहते हैं ।
रज्जुग सभा - रज्जुकसभा (स्त्री.) 6/481
तृतीय परिच्छेद... [107]
राज्य के हिसाब-किताब हेतु लिपिकों की लेखशाला (कार्यालय) को 'रज्जुगसभा' कहते हैं।
राइट्टि - राजर्द्वि (स्त्री.) 6 / 509
राजसंपति को राईट्ठि कहते हैं । वह तीन प्रकार की होती हैं : 1. अतियाम ऋद्धि 2. निर्याण (नगरनिर्गमन) ऋद्धि और 3. काष्ठागार ऋद्धि (बल, वाहन, कोष आदि) ।
राय - राजन् (पुं.) 6/547
जो राज्य करते हैं ऐसे चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, महामाण्डलिक एवं सामान्य राज्यकर्ता को राजा कहते हैं। वह आत्माभिसिक्त और पराभिसिक्त - ऐसे दो प्रकार के होते हैं। राजा के गुणों का वर्णन करते हुए आचार्यश्रीने कहा है- राजा पाँचों प्रकार के कामभागों के सेवन में स्वाधीन, निरुद्विग्न, व्यापारविप्रमुक्त, निर्दोष, स्वस्तिकादि राजलक्षणों से विभूषित, प्रमुदित, निर्दोषमातृक, करुणायुक्त, मर्यादापालक, क्षेमंकर, पालक, रक्षक, शान्तिकर्ता, कल्याणकारी, समृद्ध, विपुल ऋद्धि एवं पुष्कल सैन्ययुक्त संपूर्ण पंचेन्द्रिय पूर्ण, उत्तमलक्षण युक्त, सुरुप, शृङ्गारयुक्त, विद्वान् एवं व्यवहारपटु होता हैं ।
रायणीइ राजनीति (स्त्री.) 6 / 550
राहहाणी
राजाओं की नीति, राजाओं को राज्य संचालन हेतु जानने योग्य साम आदि (साम, दाम, दंड, भेद) उपाय और उन विषयों के प्रतिपादक शास्त्रों को 'राजनीति' कहते हैं।
रायलक्खण राजलक्षण (न.) 6 / 558
राज्य सूचक चिह्न और शुभ लक्षणयुक्त अङ्गोपाङ्ग 'राजलक्षण' कहलाते हैं ।
राजधानी (स्त्री.) 6/559
जहाँ राजा का राज्याभिषेक किया जाता है, जहाँ राजा स्वयं रहता है, राज्य के बीच स्थित मुख्य नगरी को 'राजधानी' कहते हैं।
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