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________________ [106]... तृतीय परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन | 3. राजनैतिक शब्दावली | राजनैतिक शब्दावली शीर्षक के अन्तर्गत राजा, राज्य और प्रशासन से संबन्धी शब्दों का परिचय प्रस्तुत किया गया हैं। राज्य के सात अंगों से सम्बद्ध शब्दावली का परिचय देने के लिए भी यह शीर्षक उपयुक्त है किन्तु अधिक विस्तार से बचते हुए केवल संकेत देने का प्रयास किया गया हैं। अंतेउर - अन्तःपुर (न.) 1/101 राजा की स्त्रियों (रानियों) के निवास स्थान को 'अंत:पुर' कहते हैं। अभोग्य यौवनाओं का जुर्णतःपुर, भोग्य यौवनाओं का नवंतःपुर, और राज कन्याओं का कन्यांत:पुर - इस प्रकार अंत:पुर के तीन प्रकार हैं। ये अंत:पुर राजमहल में होते हैं अथवा वसंतोत्सवादि के निमित अंत:पुर का स्त्री वर्ग उद्यान में आने पर वह भी अंत:पुर जैसा हो जाता हैं। दंडघर, दंडरक्षक, द्वारपाल और कंचुकी तथा महत्तर (पुरुष) अंत:पुर के रक्षक होते हैं। अंत:पुर राग-द्वेष का निमित्त होने से जैनागमों में जैन साधु को अंत:पुर में प्रवेश करने का निषेध किया हैं। अकम्हा दंड - अकस्माद् दण्ड (पुं.) 1/122 राजादि के द्वारा अन्य को दण्ड देने पर अन्य निर्दोष को उस दण्ड के द्वारा दण्डित करने की क्रिया 'अकस्माइंड' कहलाती हैं। अच्चीकरण - अर्चीकरण (न.) 1/195 राजादि के गुणों का प्रशंसा रुप से वर्णन 'अर्चीकरण' कहलाता हैं। वह संयम बाधक, शरीर बाधक, उपसर्गजनक, वैर-विरोधकारक होने से भिक्षु के लिए अर्चीकरण निषिद्ध हैं। अट्टारससेणि - अष्टादशश्रेणि (स्त्री.) 1/253 ____ 1. कुम्हार, 2. पटेल, 3. सोनी, 4. दर्जी (सूचकार), 5. गांधी, 6. नाई (कासवगा), 7. माली, 8. कार्यकर, नौकर, दास., 9. तंबोली, 10. चमार, 11. यंत्रपीलक, 12. मलेच्छ (गंछिअ) 13. रंगकार-छीपा (छिपय) 14. कसारा, 15. जुलाहा (बुनकर) 16.....(गुआर) 17. भील, 18. मच्छीमार - ये अठारह प्रकार की राजा की प्रजा होती हैं। अमच्च - अमात्य (पुं.) 1/734 जिसने राजा के साथ में जन्म लिया हो, जो राज्य और राजा की हितचिंता करनेवाला हो, जो राजा को भी शिक्षा और हितशिक्षा देता हो, जो व्यवहार कुशल और नीतिकुशल हो उसे 'अमात्य' कहते हैं। आईरण - आजीरण (त्रि.) 2/9 युद्ध में विजय प्राप्त करनेवाले को और राज्यावस्था में संग्राम विजेता (राजा) को 'आजीरण' कहते हैं। आउहधरिय - आयुधगृहिक (पुं.) 2/52 आयुधशाला के अध्यक्ष (अधिकारी, रक्षक) को 'आयुधगृहिक' कहते हैं। आरक्खिय - आरक्षिक (पुं.) 2/402 कोटवाल (नगर रक्षक) को 'आरक्षिक' कहते हैं। उत्तरसाला-उत्तरशाला (स्त्री.) 2/795 क्रीडा गृह, हस्तिशाला, अश्वशाला और राजा के मूल गृह से अलग राजा का दूसरा अलग गृह 'उत्तरशाला' कहलाता हैं। उवरोह - उपरोध (पुं.) 2/935 राजनीति में अन्य शत्रु राजा के सैन्य के द्वारा नग/राज्य को घेरना - 'उपरोध' कहलाता हैं। अन्य जगह 'उपरोध' शब्द का अनुरोध, आवरण, बाधा, संघट्टन, नगर के किले के बाहर चारों और खाई इत्यादि अर्थ होते हैं। कर - कर (पुं.) 3/356 प्रजा के द्वारा राजादि को देने योग्य भाग (धन, द्रव्य) को 'कर' कहते हैं। कोडुंबिय - कौटुम्बिक (त्रि.) 3/677 ___ 'राजा' एवं राजकुटुम्ब के मुख्य सेवक को कौटुम्बिक' (पुरुष) कहते हैं। गणराय - गणराज (पुं.) 3/821 प्रयोजन उपस्थित होने पर जहाँ 'गण' (प्रजा, समुदाय) निर्णय करता है, ऐसे गणप्रधान राजा को 'गणराज' कहते हैं। अन्यत्र इसका अर्थ 'सेनापति' भी किया हैं। गुम्मिय - गौल्मिक (पुं.) 3/934 जो राजपुरुष अपने स्थान पर रहता हुआ मुसाफिरों की रक्षा करता हैं, उसे 'गौल्मिक' कहते हैं। यह आरक्षकों का वरिष्ठ अधिकारी होता हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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