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________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन द्वितीय परिच्छेद ... [91] 7. अभिधान राजेन्द्र कोश का स्वरुप एवं प्रकाशन अभिधान राजेन्द्र कोश के पुनर्मुद्रण का कार्य किया। यह कार्य नयन प्रिन्टिंग प्रेस, अहमदाबाद में 1 वर्ष के समय में पूर्ण हुआ । लोकार्पण': अभिधान राजेन्द्र कोश को समझने के लिये प्राकृत भाषा एवं संस्कृत भाषा का ज्ञान होना आवश्यक हैं क्योंकि यह कोश पर्यायकोश के रुप में अथवा किसी लोकोक्ति कोश के रुप में अथवा अन्य किसी पुस्तक कोश के रुप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है, अपितु इसे संदर्भ कोश, ज्ञान कोश एवं व्याख्या कोश के रुप में प्रयुक्त किया जा सकता है। वस्तुस्थिति यह है कि यह कोश किन्हीं विशेष संदर्भों का विवेचन प्रस्तुत नहीं करता हैं और न ही किन्हीं विशेष शब्दों की व्याख्या ही प्रस्तुत करता है, अपितु जैन आगमों में प्रयुक्त प्राकृत भाषा के शब्दों का संदर्भ सव्याख्या विवरण प्रस्तुत करता हैं । स्वरुप : अभिधान राजेन्द्र कोश सात भागों में विभक्त 'प्राकृत विश्वकोश' हैं। यह ग्रंथ प्रथम रतलाम से एवं द्वितीयावृत्ति के समय अहमदाबाद से "सुपर रोयल चौपेजी" आकार में मुद्रित हैं। हमारे संशोधनानुसार इस ग्रंथ में कुल 9,211 पृष्ठों में मूल ग्रंथ, 200 पृष्ठों में अन्य प्रस्तावना, परिशिष्ट एवं प्रशस्त्यादि सामग्री मुद्रित हैं। सभी भागों में हिन्दी प्रस्तावना, पट्टावल्यादि देने से सातों भागों के प्रायः साढे नौ हजार पृष्ठ हैं। इस ग्रंथराज में आचार्यश्रीने अकारादि वर्णानुक्रम से जैनागमों के करीब 60,000 (साठ हजार) प्राकृत शब्द; 4,50,000 (साढे चार लाख श्लोक, सहस्राधिक सूक्तियाँ, 500 से अधिक शब्दों पर विभिन्न विषयाधीन कथा - उपनय कथा, कहानियाँ एवं महापुरुषों का परिचय आदि ऐतिहासिक सामग्री दी हैं। ग्रंथ संपादक आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी के अनुसार इस ग्रंथ का संदर्भ इस प्रकार रखा हैं - "प्रथम अकारादि वर्णानुक्रम से प्राकृत शब्द, उसके बाद उनका संस्कृत में अनुवाद, तत्पश्चात् लिंगनिर्देश, व्युत्पत्ति, और उनका जैनागमों में प्राप्त अर्थ दिखाया गया हैं । बडे-बडे शब्दों पर अधिकार सूची क्रम से दी गयी हैं, जिससे अध्येता को प्रत्येक बात सुगमता से प्राप्त हो सकती हैं। जैनागमों का ऐसा कोई भी विषय बाकी नहीं रहा है जो इस महाकोश में न आया हो। केवल इस कोश के ही देखने से संपूर्ण जैनागमों का बोध हो सकता हैं । आचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेनसूरि के अनुसार जब अभिधान राजेन्द्र कोश की प्रथमावृत्ति अप्राप्य सी हो गयी तब दिल्ली की एक संस्था ने इसके कुछ भाग प्रकाशन करने का नाजायज लाभ उठाया और उसे अतिशय महँगा कर दिया तब आपकी निश्रा में श्री सौधर्म बृहत्तपोच्छीय त्रिस्तुतिक जैन श्वेताम्बर श्री संघ ने द्वितीय आवृत्ति के प्रकाशन का निर्णय लिया और 'श्री अभिधान राजेन्द्र कोश प्रकाशन समिति' का गठन हुआ। समाज के सम्यग्ज्ञान प्रेमी उदारमना गुरुभक्तों एवं श्री संघों के सहयोग से आचार्यश्री के मार्गदर्शन में अखिल भारतीय त्रिस्तुतीक जैन श्री संघ के अध्यक्ष जैन रत्न श्री गगलदास हालचंद संघवी, अहमदाबाद के नेतृत्व में कोश प्रकाशन समितिने Jain Education International आचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी के अनुसार अभिधान राजेन्द्र कोश के प्रथम संस्करण का सामूहिक सातों भागों का लोकार्पण समारोह नहीं हो सकता था क्योंकि वह लगभग 17 वर्ष के लम्बे समयांतराल में छपकर तैयार हुआ था। अतः जैसे-जैसे इसके प्रथमादि भाग छपते गये वैसे-वैसे उसका श्रीसंघ, समाज, विद्वद्वर्ग एवं आचार्य श्रीमद्विजय धनचन्द्रसूरि एवं साधु साध्वी द्वारा प्रचार-प्रसार होता गया । अभिधान राजेन्द्र कोश के इस द्वितीय संस्करण का प्रकाशन होने पर उसके लोकार्पण समारोह के पूर्व श्री राजेन्द्र उपाश्रय / श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर - जूनी कसेरा बाखल, इन्दौर (जहां मैंने इस शोध-प्रबन्ध की रचना संबंधी महत्त्वपूर्ण कार्य किया) में श्रुतभक्ति हेतु परमात्म भक्ति स्वरुप अष्टाहिका महोत्सव का आयोजन हुआ एवं 28 जून 1987 को वहां से अभिधानराजेन्द्र कोश की विशाल शोभायात्रा निकाली गयी जो वैष्णव महाविद्यालय पर धर्मसभा में परिवर्तित हुई । वहाँ अखिल भारतीय श्रीसौधर्म बृहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक जैन श्वेताम्बर श्रीसंघ एवं श्री अभिधान राजेन्द्र कोश प्रकाशन समिति द्वारा इस द्वितीय संस्करण का लोकार्पण समारोह इस भागीरथ कार्य के प्रेरणादाता आचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी एवं मुनिराज श्री अरुण विजयजी तथा भारत के प्रसिद्ध विद्ववर्ग यथा प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. प्रभाकर माचवे (दिल्ली), (अहमदाबाद), श्रीमती आशा लैया (सागर), प्रो. एल. सी. जैन (जबलपुर), शा. इन्द्रमलजी भगवानजी (मद्रास), पं. हीरालाल शास्त्री (जालोर), डो. नेमीचंद जैन (इन्दौर) की निश्रा में अषाढ सुदि द्वितीया, रविवार विक्रम संवत 2044 (मारवाडी)/ 2043 (गुजराती) तदनुसार दि. 28-6-1987 को वैष्णव महाविद्यालयः राजमोहल्ला, इन्दौर में रामकृष्ण विवेकानंद आश्रम, रायपुर के स्वामी आत्मानंदजी के करकमलों से करवाया एवं इसकी प्रथम प्रति आचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेनसूरि को भेंट की गयी । प्रथमावृत्ति के और द्वितीय आवृति के मुद्रण को देखने से ज्ञात होता है कि प्रथम संस्करण में उपलब्ध सामग्री को पुनः वर्ण संयोजन में न लेते हुए केवल उसके पत्रों की मुद्रप्रति (ट्रेसिंग प्रिन्ट) बनाकर ऑफसेट विधि से मुद्रण कराया गया हैं। द्वितीयावृत्ति में यदि कुछ अधिक प्राप्त होता हैं तो केवल इतना ही, कि प्रकाशकीय निवेदन, द्वितीयावृत्ति की प्रस्तावना और समूह छायाचित्र - अतिरिक्त हैं। उपसंहार : शोध प्रबन्ध के इस द्वितीय अध्याय में अभिधान राजेन्द्र कोश का नातिसंक्षेपविस्तरतः परिचय देने का प्रयत्न किया हैं। वस्तुतः यह कोश न केवल जैन कोशपरम्परा में अपितु समग्र प्राकृत कोशपरम्परा में मील का पत्थर हैं। इसकी उपादेयता प्राकृत और संस्कृत दोनों शाखाओं में समान रूप से सिद्ध हैं । 1. अभिधान राजेन्द्र विशेषांकः शाश्वत धर्म, पृ. 91, 92 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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