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________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन 'ब' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1164 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 1133 बोहिसत (बोधिसत्व) शब्द के साथ समाप्त हुआ है। 'भ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1134 से प्रारंभ होकर पृष्ठ क्रमांक 1627 पर भोल (देशी) शब्द के साथ समाप्त हुआ है। इसके साथ ही पंचम भाग भी समाप्त होता है। श्री अभिधान राजेन्द्र कोश : षष्ठ भाग : विषय वस्तु परिचय: अभिधान राजेन्द्र कोश के छठवें भाग में ग्रंथकर्ता आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने छुट्टे भाग के प्रारंभ होने की सूचना स्वरुप मंगलाचरण किया हैं - मंगलाचरण : सिरिवद्धमाणसामिं, नमिऊण जिणागमस्स गहिऊण सारं छट्टे भागे, भविजयजण सुहावहं वोच्छं ||1| मुख्य विषय वस्तु: छट्टे भाग में पांचवें भाग से चले आ रहे मकारादिशब्द प्रकरण पृष्ठ क्रमांक 1 से प्रारंभ होकर पृष्ठ क्रमांक 466 पर 'मोहोदय' (मोहोदय) शब्द के साथ समाप्त हुआ है। यकार का प्राकृत में वर्ण परिवर्तन के नियमानुसार 'ज' होता है। अतः राजेन्द्र कोश में प्राकृत यकारादि शब्द नहीं हैं। 'र' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 467 से प्रारंभ होकर पृष्ठ क्रमांक 589 पर 'रोहेडं' (रोधयित्वा) अव्यय के साथ समाप्त हुआ है। 'ल' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 590 से प्रारंभ होकर पृष्ठ क्रमांक 757 पर 'ल्हिक्क' (नष्ट) शब्द के साथ समाप्त हुआ है। 'व' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 758से प्रारंभ होकर पृष्ठ क्रमांक 1468 पर 'व्रासु' (व्यास) शब्द के साथ समाप्त हुआ है। इसके साथ छठा भाग भी समाप्त होता हैं। द्वितीय परिच्छेद ... [89] श्री अभिधान राजेन्द्र कोश : सप्तम भाग : विषय वस्तु परिचय: अभिधान राजेन्द्र कोश का यह अंतिम भाग हैं। इसमें मंगलाचरण नहीं हैं। इस भाग में 'श' 'ष' 'स' और 'ह' इन चार अक्षरों के शब्द पर ही विवेचन किया गया हैं। Jain Education International - पृष्ठ 1 पर 'शकारादि' शब्द हैं जो 'श' वर्ण से शुरु होकर 'शोभन' शब्द पर समाप्त होता हैं । पृष्ठ क्रमांक 2 पर 'ष' वर्ण मात्र दिया हैं। 'षकार' का प्राकृत में 'स' आदेश होने से 'षकारादि' शब्द सादि शब्दों के अन्तर्गत दिये हैं। पृष्ठ क्रमांक 3 से ‘स' वर्ण शुरु होता हैं और पृष्ठ क्रमांक 1171 पर 'सौअरिय' शब्द के साथ समाप्त हुआ हैं। पृष्ठ क्रमांक 1172 से 'ह' वर्ण प्रारंभ हुआ हैं। और पृष्ठ क्रमांक 1250 पर 'ह्व' शब्द के साथ समाप्त हुआ हैं । इसके बाद पृष्ठ क्रमांक 1250 पर प्राकृत में ग्रंथ समाप्ति सूचक प्रशस्ति प्राकृतभाषामय शार्दूलविक्रीडित छन्द में दी गयी हैं। तत्पश्चात् संस्कृत में 11 श्लोकों में आर्या छन्द में ग्रंथकार की गुरु परम्परा, ग्रंथ प्रारंभ एवं ग्रंथ समाप्ति का स्थान एवं समय आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजीने स्वयं दर्शाया हैं। और यही पर कोश परिपूर्ण हुआ हैं। तत्पश्चात् अन्तिम पृष्ठ पर मुद्रणप्रशस्ति दी गयी हैं। अभिधान राजेन्द्र कोश के प्रथम एवं अंतिम पृष्ठ की मुद्रित प्रति की छाया (स्कैन्ड) प्रतिलिपि शोध प्रबन्ध के परिशिष्ट क्र. 1 में दी गई हैं। अरिहंता तेण वुच्चंति इंदियविसयकसाए, परीसहवेयणाए उवसग्गे । एए अरिणो हंता, अरिहंता तेण वुच्चंति ॥1॥ अट्ठविहं पि य कम्मं, अरिभूयं होइ सव्वजीवाणं । तं-कम्ममरीहंता, अरिहंता तेण वुच्चंति ॥2॥ अरिहंति वंदनमं- सणाणि अरिहंति पुयसक्करं सिद्धिगमणं च अरिहा, अरिहंता तेण वुच्चति ॥3॥ देवासुरमणुएसु य, अरिहा पूया सुरुतमा जम्हा । अरिणो हंताऽरिहंता, अरिहंता तेण वुच्चंति ॥4॥ - अ.रा. पृ. 1/7678 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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