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[88]... द्वितीय परिच्छेद
'उ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 686 से शुरू होकर पृष्ठ क्रमांक 1208 पर 'उहटु' (उद्धृत्य ) अव्यय के साथ पूर्ण हुआ है । और 'ऊकार' पृष्ठ क्रमांक 1209 से शुरु होकर 'ऊहापन्नत' (ऊहाप्रज्ञ ) शब्द के साथ पृष्ठ क्रमांक 1215 पर समाप्त हुआ है। इसके साथ ही द्वितीय भाग भी समाप्त होता है।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोश : तृतीय भाग : विषय वस्तु परिचय:
अभिधान राजेन्द्र कोश की प्रथमावृत्ति में तृतीय भाग में कोश - संशोधक / संपादक उपाध्याय श्री मोहन विजयजी, मुनि दीपविजयजी वं मुनि यतीन्द्र विजयजी द्वारा संस्कृत भाषा में 'प्रस्ताव' शीर्षक से प्रस्तावना लिखी गयी है। तत्पश्चात् भाग 3 के प्रारंभ में ग्रंथकर्ता आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजीने तीसरे भाग के प्रारंभ की सूचना स्वरुप मंगलाचरण किया है
मंगलाचरण :
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन मंगलाचरण:
नमिऊण वद्धमाणं, सारं गहिऊण आगमाणं च । अहुणा चउत्थ भागं वोच्छं अभिहाणराइंदे ॥1॥
वाणि जिणाणं चरणं गुरुणं, काऊण चित्तम्मि सुयप्पभावा । सारंगहीऊण सुयस्स एयं, वोच्छामि भागे तइयम्मि सव्वं ॥1॥ मुख्य विषय वस्तु:
तृतीय भाग में 'ए' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 74 पर एहिय (एहिक) शब्द के साथ समाप्त हुआ है। 'ऐ' वर्ण पर एक मात्र शब्द 'ए' (अयि ) अव्यय है जो इसी पृष्ठ पर दिया गया हैं ।
'ओ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 75 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 161 पर “ओहोवहि' (ओधोपधि) शब्द के साथ समाप्त हुआ है। प्राकृत में औकार न होने से औकारादि शब्द राजेन्द्र कोश में कहीं भी नहीं
है ।
'क' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 162 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 687 पर 'कोहुप्पत्ति' (क्रोधोत्पत्ति) शब्द के साथ समाप्त होता है।
'ख' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 688 से प्रारंभ होकर पृष्ठ क्रमांक 733 'खोल्ल' (खोल) शब्द के साथ समाप्त हुआ है।
'ग' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 774 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 1036 पर 'गोहो' (देशी शब्द ) शब्द के साथ समाप्त हुआ है। 'घ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1037 से प्रारंभ होकर पृष्ठ क्रमांक 1046 पर 'घोसाली' (देशी शब्द ) शब्द के साथ समाप्त हुआ है।
'च' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1047 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 1338 पर 'चोव्वार' (चतुर्वार) शब्द साथ समाप्त हुआ है।
'छ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1339 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 1363 पर 'छोहो' (देशी शब्द ) क्षोभ शब्द के साथ समाप्त होता है। इसके साथ ही तृतीय भाग भी समाप्त होता है। श्री अभिधान राजेन्द्र कोश : चतुर्थ भाग : विषय वस्तु परिचय:
अभिधान राजेन्द्र कोश के चतुर्थ भाग के प्रारंभ में संशोधको के द्वारा संस्कृत भाषा में 'घण्टापथः ' शीर्षक से प्रस्तावना दी गई हैं। तत्पश्चात् भाग - ४ के प्रारंभ में ग्रन्थकर्ता आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने चौथे भाग के प्रारंभ की सूचना स्वरुप मंगलाचारण किया है
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और
है।
पृष्ठ
चौथे भाग में पृष्ठ 1363 से 'ज' वर्ण से प्रारंभ हुआ है क्रमांक 1658 'ज्झर' (क्षर) शब्द (धातु) पर समाप्त हुआ
'झ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1659 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 1675 पर 'झोसेहि' (देशी शब्द ) शब्द पर समाप्त हुआ है।
'ट' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1676 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 1678 पर 'टोलगई' (टोलागति) शब्द पर समाप्त हुआ है।
'ठ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1679 से प्रारंभ होकर पृष्ठ क्रमांक 1732 पर 'ठीण' (स्त्यान) शब्द पर समाप्त हुआ है। 'ड' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1733 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 1735 पर 'डोहल' (दोहद) शब्द के साथ समाप्त हुआ है।
पृष्ठ क्रमांक 1736 पर 'ढ' वर्ण शुरु होकर उसी पृष्ठ पर देह (देशी शब्द ) शब्द के साथ समाप्त हुआ है।
कार पृष्ठ क्रमांक 1737 से शुरु होकर पृष्ठ क्रमांक 2166 पर 'णहूसा' (स्नूषा) शब्द के साथ समाप्त हुआ है।
'त' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 2167 से प्रारंभ होकर 'तोसिय' (तोषित) शब्द पर समाप्त हुआ है ।
'थ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 2370 से प्रारंभ होकर 'थोहरी' (थोहरी) शब्द के साथ पृष्ठ क्रमांक 2418 पर समाप्त हुआ है। 'द' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 2420 से शुरु होकर 'द्वितवर' (द्वितवर) शब्द के साथ पृष्ठ क्रमांक 2643 पर समाप्त हुआ है।
'ध' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 2644 से शुरु पृष्ठ क्रमांक 2770 पर 'ध्रुवु' (ध्रुवम्) शब्द के साथ पृष्ठ क्रमांक समाप्त हुआ है
'न' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 2771 से शुरु होता है, और 'नोमालिया' (नवमालिका) शब्द के साथ पृष्ठ क्रमांक 2777 पर समाप्त होता है। इसके साथ ही चतुर्थ भाग भी समाप्त होता है।
अंत में संशोधकों ने प्रशस्ति सूचक एक श्लोक शार्दूल विक्रीडित छंद में दिया है, जिसमें कहा है कि दप्त भ्रांत विपक्षियों के दमन करने में सिंह समान, राजेन्द्र कोश नामक कोश की रचना से जैन श्रुत को प्रकाशित करनेवाले संघ के उपकारी सूरिपद सुशोभित विजय राजेन्द्रसूरि से बढकर अन्य कौन पुण्यवान है (अर्थात् अन्य कोई नहीं है) ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोश : पञ्चम भाग : विषय वस्तु परिचय:
अभिधान राजेन्द्र कोश के पाँचवें भाग में ग्रंथकर्ता आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने पाँचवे भाग के प्रारंभ होने की सूचना स्वरुप मंगलाचरण किया हैमंगलाचरण:
वीरं नमेऊण सुरेसपुज्जं, सारं गहेऊण तयागमाओ । साहूण सट्ठाण य बोहयं तं वोच्छामि भागम्मि य पंचम्मि ॥ 'प' वर्ण पृष्ठ क्रमांक एक से प्रारंभ होकर पृष्ठ क्रमांक 1140 पर (प्रिय) शब्द के साथ समाप्त हुआ है।
'फ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक 1141 से प्रारंभ होकर पृष्ठ क्रमांक 1163 'फोस' शब्द के साथ समाप्त हुआ है।
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