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जिनागमों की भाषा
अन्नेहिं (अन्यैः १.१.१.४) अन्नो (अन्य : १.१.१.१७)
ये सभी प्रयोग उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किये गये हैं और ये तो मात्र सूत्रकृतांग के प्रारंभ के प्रथम अध्ययन में से ही उद्धृत किये गये हैं । इस विधि से यदि इस ग्रंथ के सभी अध्यायों में से अर्धमागधी के प्राचीन प्रयोग उद्धृत किये जाय तो उनकी संख्या कितनी बड़ी होगी और इसके सिवाय अन्य प्राचीन आगम ग्रंथों या उनके प्राचीन अंशों में से भी ऐसे ही भाषिक दृष्टि से अपरिवर्तित प्रयोगों के उद्धरण प्रस्तुत किये जाय तो अर्धमागधी प्राकृत का मूल स्वरूप कितना स्पष्ट हो जाएगा।
इसी संदर्भ में हमने अपने 'प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण', द्वितीय संस्करण के अन्त में अर्धमागधी भाषा विषयक नयी विशेषताओं का परिशिष्ट (अध्याय) जोड़ा है जिसमें व्याकरण के कुछ नये नियम दिये गये हैं और 'इसिभासियाइं' में उपलब्ध हो रहे पालि के समान शब्द रूपों की मध्यवर्ती व्यंजनानुसार तालिका भी जोड़ी है। उसी में से कतिपय प्रयोग चुनकर यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे पालि भाषा और अर्धमागधी भाषा कितनी समानता और निकटता रखती है यह स्पष्ट हो जाएगा।
नाम और स्वरूप
'इसिभासियाई' के उदाहरण रूप कुछ प्रयोग
-क्- अणेक, अन्धकार, आकुल, उलूक, एकन्त, परलोक, विपाक, सिलोक ।
-ग- उरग, जोग, पयोग, परिभोग, मिग, राग, संजोग, सोभाग ।
-च- अचलं, अचिरेणं, बम्भचारी, सुचिरं
-ज
- तेजसा, परिजण, भोजणं, महाराज, विजाणति, सहजा ।
-त- अति आतुर, एतं कुतूहलं, गति, जीवितातो, ततियं, दुम्मति, नीति,
,
पितर, माता, विपरीत, सासत, हेतु, अरहता, अंकुरातो, इतो, ततो, सव्वतो, आगच्छति, खादति, देति, भवति, लभति, हणति, हसति, कुरुते, चरते, वदतु, साहेतुं, आहत, भासित, हारित ।
- द्- आदि, उच्छेद, उदय, उपदेस, खादति, छेद, नारद, पमाद, वदति, विसाद, सदा, संपदा, हिदय ।
-न- अनल, अंगना, अनुवत्त, वनदपादव
-प- अपि, उपदेस, रिपु, विपरीत, विपुल
- य- आयुध, ततिय, पयोग, पिय, हिदय
-ख
- सुखेण
- घ - लाघवं लाघवो, विणिघात
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-थ- सारथी
--ध--- अधर, अनिरोधी, असाधु, ओसध, कोध, दधि, बहुधा, मधु, विविध,
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