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________________ जिनागमों की भाषा : नाम और स्वरूप डॉ. के. आर. चन्द्र जिनागमों की मूलभाषा अर्द्धमागधी है। अर्द्धमागधी में ही तीर्थंकर महावीर ने प्रवचन किए थे। गणधरों एवं स्थविरों ने भी अर्द्धमागधी में ही इन आगमों को ग्रथित किया था । किन्तु अर्द्धमागधी प्राकृत व्याकरण की अनभिज्ञता, क्षेत्र विशेष के प्रभाव, महाराष्ट्री प्राकृत के 'उपलब्ध व्याकरण के अभ्यास आदि विभिन्न कारणों से अर्द्धमागधी आगमों का सम्पादन करते / प्रतिलिपि करते समय महाराष्ट्री आदि प्राकृतों का प्रभाव आ गया। प्राकृत भाषा एवं व्याकरण के सम्प्रति विश्वप्रसिद्ध विद्वान डॉ. के. आर. चन्द्र ने जिनागमों में हुए परिवर्तन विषयक यह अपना आलेख पाठकों को उपलब्ध कराया है। लेखक ने आगमों के विभिन्न संस्करणों की तुलना करते हुए अर्द्धमागधी के प्राचीन रूप को सिद्ध कर उसे स्वीकार करने की प्रेरणा भी की है। - सम्पादक जिनागमों में उस जैन आगम - साहित्य ( ई. सन् पूर्व पाँचवीं शताब्दी सेई. सन् ५वीं शताब्दी तक) का समावेश होता है जो श्वेताम्बर जैनों द्वारा रचा गया है और जो दिगम्बर सम्प्रदाय को मान्य नहीं है। इसे ही जैन आगमसाहित्य की संज्ञा दी गई है। दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के प्राचीनतम साहित्य (ई. सन् प्रथम शताब्दी से लगाकर आगे की शताब्दियों तक) को दिगम्बर सम्प्रदाय के 'प्राचीन शास्त्र' की संज्ञा दी गयी है। इसकी भाषा शौरसेनी प्राकृत है जबकि श्वेताम्बर मान्य जिनागमों की भाषा को अर्धमागधी के नाम से जाना जाता है। इस नाम में जो मागधी शब्द है उसका विशेष महत्त्व है। उसे अर्धशौरसेनी या अर्धमहाराष्ट्री क्यों नहीं कहा गया ? अर्धमागधी शब्द में मागधी प्रमुख शब्द है और अर्ध उसका विशेषण है अर्थात् पूर्णत: मागधी नहीं, परंतु आधी मागधी और आधी अन्य भाषा या बोलियाँ जो मगध देश के आस-पास के क्षेत्रों में उस समय बोली जाती थी। कुछ विद्वान ऐसा भी मानते हैं कि यह अर्धमागध देश की भाषा थी । यह कौन सा प्रदेश हो सकता हैक्या गंगा नदी के दक्षिण बिहार का आजकल का प्रदेश ? इसी मगध देश के आस-पास के पड़ौसी राज्यों (प्रदेशों) की बोलियों का अर्धमागधी में समावेश माना जाय (जो उचित भी लगता है जैसाकि भगवान् महावीर के विहार के स्थलों से मालूम होता है) तो इसमें गंगानदी के उत्तर में पूर्व की दिशा में तो इसमें लिच्छवियों का विदेह (दरभंगा), अंग राज्य, भागलपुर, मौर, पश्चिम में कोसल (अयोध्या जिसकी राजधानी थी, पुराना नाम साकेत भी था ) और आधुनिक बंगाल (बंग देश का लाढ प्रदेश) और उड़ीसा कलिंग का कुछ भाग सम्मिलित किया जा सकता है। इन सभी प्रदेशों की बोलियों का किसी न किसी अंश में मूल मागधी पर प्रभाव होने के कारण उसे अर्धमागधी कहा गया हो, ऐसा भाषाशास्त्र के नियमों से प्रतीत होता है । मागधी भाषा के मूल लक्षण पुल्लिंग अकारान्त प्रथम एकवचन की विभक्ति 'ए' के साथ-साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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