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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क
आचार्य मलयगिरि का अभिमत है कि जिससे पदार्थों की परिपूर्णता के साथ मर्यादित ज्ञान हो वह 'आगम' है। अन्य आचार्यों का अभिमत है, जिससे पदार्थों का यथार्थ ज्ञान हो वह 'आगम' है।
ज्ञान का लोप किस प्रकार हुआ इसकी एक ऐतिहासिक घटना इस प्रकार वर्णित है । इतिहास में आचार्य भद्रबाहु व शिष्य स्थूलिभद्र का उल्लेख आता है। भद्रबाहु स्वामी नेपाल में महाप्राण ध्यान की साधना में रत थे। वे चौदह पूर्वधारी थे। उस समय और किसी के पास १४ पूर्वो का ज्ञान नहीं था । उनके देवलोक होने के साथ ही यह पूरा ज्ञान लोप हो जाता, अतः स्थूलिभद्र जो एक विशिष्ट साधक थे, को इस योग्य समझा गया कि वे भद्रबाहु से १४ पूर्वो का ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। यह ज्ञान समय रहते भद्रबाहु स्वामी से ग्रहण करने के लिए चतुर्विध संघ ने स्थूलिभद्र को भद्रबाहु के पास भेजा। आचार्य भद्रबाहु ने संघ की आज्ञा को शिरोधार्य कर स्थूलिभद्र को पूर्वों का ज्ञान सिखाना आरम्भ किया। जब वे दशपूर्व का ज्ञान सीख चुके थे, उस समय वे जीर्ण-शीर्ण खण्डहर में रह कर ज्ञानाभ्यास करते थे। संयोग से स्थूलभद्र की सात सांसारिक बहनें जो साध्वियाँ थी, उनके दर्शन करने के लिए हिमालय की कन्दराओं में आई, तब भटक कर भद्रबाहुस्वामी के पास पहुँच गईं। उन्होंने वहां से स्थूलिभद्र की ध्यान-स्थली जो काफी नीचे थी, बतलाई। वे उस खण्डहर की ओर रवाना हुई तो अर्जित ज्ञान से स्थूलभद्र ने यह जान लिया कि उनकी भगिनी साध्वियाँ उनके दर्शनार्थ उनकी ओर आ रही हैं। अपने ज्ञान का प्रदर्शन अपनी बहनों के सामने करने के भाव से उन्होंने अपना रूप सिंह का बनाकर खण्डहर के द्वार पर बैठ गये। जब वे साध्वियाँ वहां पहुंची तो सिंह को देखकर वे घबरा गई और भद्रबाहु के पास वापस आकर उलाहना दिया कि उन्होंने उन्हें सिंह की गुफा में भेज दिया। यह सुनकर भद्रबाहु स्वामी ने जान लिया कि स्थूलिभद्र ने ही यह नाटक किया है और समझ गये कि स्थूलिभद्र में ज्ञान के अनुरूप गम्भीरता नहीं है, उनका मन चंचल है, प्रदर्शन का कौतुहल है, ज्ञान को पचा नहीं पाये हैं। पूर्वों का ज्ञान पचाने में अक्षमता देखकर उन्होंने आगे की देशना स्थूलिभद्र को देना बन्द कर दिया। स्थूलिभद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ। उनको बहुत पश्चात्ताप हुआ। उन्होंने इसके लिये क्षमायाचना की और आगे की देशना के लिये प्रार्थना की। परन्तु वे इसके लिये बिल्कुल राजी नहीं हुए और इस प्रकार १४ पूर्वो में से अन्तिम चार पूर्वो का ज्ञान भद्रबाहु स्वामी के साथ ही लुप्त हो गया। पात्रता के अभाव में १० पूर्वो का ज्ञान भी स्थूलिभद्र के आगे अधिक नहीं चला। वर्तमान में तो एक पूर्व का ज्ञान भी नहीं है। वर्तमान में ज्ञान बहुत अल्प रह गया है। - ई -14, शास्त्री नगर, जोधपुर
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