SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क इति वचनात्। (तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, पृ.६) (ख) द्रव्यश्रुतं हि द्वादशांगवचनात्मकमाप्तोपदेशरूपमेव, तदर्थज्ञान तु भावश्रुतं, तदुभयमपि गणधरदेवानां भगवदर्हत्सर्वज्ञवचनातिशयप्रसादात् स्वमतिश्रुतज्ञानावरणवीर्यान्तरायक्षयोपशमातिशयाच्च उत्पद्यमानं कथमाप्तायत्तं न भवेत? (तत्वार्थश्लोकवार्त्तिक) ९. तद्दिवसे चेव सुहम्माइरियो जंबूसामीयादीणमणेयाणमाइरियाणं वक्खाणिददुवालसंगो बाइचउक्कखयेण केवली जादो। (जयवला, पृ. ८४) १०. अंगपाणत्ति ११. दिगम्बर परम्परा में ११वें पूर्व का नाम कल्याण है। १२. श्वेताम्बर परम्परानुसार पूर्वो की उपर्युक्त पदसंख्या समवायांग एवं नन्दीवृत्ति के आधार पर तथा दिगम्बर परम्परानुसार पदसंख्या धवला, जयधवला, गोम्मटसार एवं अंग पण्णत्ति के अनुसार दी गई है। (सम्पादक) १३. यतोऽनन्तार्थ पूर्व भवति, तत्र च वीर्यमेव प्रतिपाद्यते, अनन्तार्थता चातोऽवगनन्तव्या तद्यथा सव्वनईणं जा होज्ज बालुया गणणमागया सन्ती। तत्तो बहयतरागो. एगस्सस अत्थो पव्वस्स ।।।। सव्वसमुदाणजलं, जइ पत्थमियं हविज्ज संकलियं। एत्तो बहुयतरागो, अत्थो एगस्स पुव्वस्स ।।२।। तदेव पूर्वार्थस्यानन्त्याद्वीर्यस्य च तदर्थत्वादनन्तता वीर्यस्येति। {सूत्रकृतांग, (वीर्याधिकार) शीलांकाचार्यकृता टीका, आ. श्री जवाहरलाल जी म. द्वारा संपादित, पृ. ३३५) १४. नंदीसूत्र (धनपतिसिंह द्वारा प्रकाशित) पृ. ४८२-८४ १५. दो लक्खा अट्ठासीइं पयसहस्साइं पयग्गेणं......(नंदी, पृ. ४५८, राय धनपतिसिंह) १६. चउरासीइपयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ता.....(समवायांग, पृ.१७९अ, राय धनपतिसिंह) १७ तित्थोगाली एत्थं वत्तव्वा होई आणपव्वीए। जे तस्स उ अंगस्स वच्छेदो जहिं विणिहटठो।। व्या. भा. १०.७०४ १८. नंदीचूर्णि, पृ. ९ (पुण्यविजयजी म. द्वारा संपादित) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy