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________________ द्वादशांगी की रचना, उसका हास एवं आगम-लेखन 33 ९. महापन्नवणा १०. पमायप्पमाय ११. नंदी १२. अणुओगदाराई १३. देविन्दथव १४. तंदुलवेयालिय १५. चंदाविज्जय १६. सूरपण्णत्ति १७. पोरिसिमंडल १८. मंडलपवेस १९. विज्जाचरणविणिच्छओ २०. गणिविज्जा २१. झाणविभत्ती २२. मरणविभत्ती २३. आयविसोही २४. वीयरागसुयं २५.संलेहणासुयं २६. विहारकप्पो २७.चरणविहि २८. आउरपच्चक्खाण २९. महापच्चक्खाण आदि कालिक श्रुत १. उत्तरज्झयणाई २. दसाओ ३. कप्पो ४. ववहारो ५. निसीह ६. महानिसीहं ७. इसिभासियाई ८. जंबूदीवपण्णत्ती ९. दीवसागरपण्णत्ती १०. चंदपण्णत्ती ११. खुडियाविमाणपविभत्ती १२. महल्लियाविमाणपविभत्ती १३. अंगचूलिया १४. वग्गचूलिया १५. विवाहचूलिया १६. अरुणोववाए १७. वरुणोववाए १८. गरुलोववाए १९. धरणोववाए २०. वेसमणोववाए २१. वेलंधरोववाए २२. देविन्दोववाए २३. उट्ठाणसुयं २४. समुट्ठाणसुय २५. नागपरियावणियाओ २६. निरयावलियाओ २७. कप्पिया २८. कप्पवडंसिया २९. पुप्फियाओ ३०. पुप्फचूलियाओ ३१. वण्हिदसाओ इस प्रकार कुल ७८ श्रुत बताये गये हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा द्वारा वर्तमान में ४५ आगम माने जाते हैं, पर स्थानकवासी और तेरापन्थ परम्परा में ११ अंग, १२ उपांग, ४ मूल, ४ छेद और १ आवश्यक इस प्रकार ३२ शास्त्रों को प्रामाणिक मानते हैं। ४५ सूत्रों की संख्या इस प्रकार है __ 11 अंग १. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. भगवती ६.ज्ञाताधर्मकथांग ७. उपासकदशांग ८. अंतकृतदशांग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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