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________________ जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क व्यक्तिगत रूप से समय-समय पर प्रयास किये, अनेक बार श्रमण-श्रमणी वर्ग और संघ ने एकत्रित हो आगम- वाचनाएँ कीं, किन्तु फिर भी काल अपनी काली छाया फैलाने में येन केन प्रकारेण सफल होता ही गया। परिणामत: उपरिवर्णित दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के कारण द्वादशांगी का समय-समय पर बड़ा ह्रास हुआ। द्वादशांगी का कितना भाग आज हमारे पास विद्यमान है और कितना भाग हम अब तक खो चुके हैं, इस प्रकार का विवरण प्रस्तुत करने से पूर्व यह बताना आवश्यक है कि मूलत: अविच्छिन्नावस्था में द्वादशांगी का आकार-प्रकार कितना विशाल था। इस दृष्टि से आर्य सुधर्मा के समय में द्वादशांगी का जिस प्रकार का आकार-प्रकार था, उसकी तालिका यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। - श्वेताम्बर परम्परानुसार द्वादशांगी की पदसंख्या अंग का नाम समवायांग नंदीसूत्र सम.वृत्ति नंदी वृत्ति के अनुसार १. आचारांग १८००० २. सूत्रकृतांग ३६००० ३. स्थानांग ७२००० ४. समवायांग १४४००० ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ८४००० २८८००० ८४००० २८८००० ६. ज्ञाताधर्मकथा संख्यात हजार संख्यात हजार ५७६००० ५७६००० ७.उपासकदशा ११५२००० ११५२००० ८. अंतकृद्दशा २३०४००० २३०४००० ९. अनुत्तरौपपातिक ४६०८००० ४६०८००० १०.प्रश्नव्याकरण ९२१६००० ९२१६००० ११.विपाकसूत्र १८४३२००० १८४३२००० १२. दृष्टिवाद दिगम्बर परम्परानुसार" द्वादशांगी की पद, श्लोक एवं अक्षर-संख्या अंग का नाम पद संख्या श्लोक संख्या अक्षर संख्या १. आचारांग १८००० ९१९५९२३११८७००० २९९२६९५४१९८४००० २. सूत्रकृत ३६००० १८३९१८४६३७४००० ५८८५३९०८३९६८००० ३. स्थानांग ४२००० २१४५७१५४१०३००० ६८६६२८९३१२९६००० ४. समवायांग १६४००० ८३७८५०७७९२६००० २६८११२२४९३६३२००० ५. विपाकप्रज्ञप्ति २२८००० ११६४८१६९३७०२००० ३७२७४१४१९८४६४००० ६.ज्ञाताधर्मकथा ५५६००० २८४०५१८४९५५४००० ९८१६५९१८५७२८००० ७. उपासकाध्ययन ११७००० ५१७७३५००७१५५००० १९१२७५२०२२८१६०००० ८. अंतकृदशांग २३२८००० ११८९३३९३१८८५२००० ३८०५८८६०७६३२३४००० ९. अनुत्तरौत्पाद ९२२४४००० ८७२२६१७८४१४६००० १५११२३७५८११.६६७००० १० प्रश्नव्याकरण ५३१६०००। ४७.९४०१२३३८९४०००१५२३००८३६२८४६०८००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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