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________________ नन्दीसूत्र का वैशिष्ट्य 373 अन्य आगमों में विद्यमान है । किन्तु अश्रुतनिश्रित के विषय में जो गाथायें यहां दी गई हैं, वे अन्यत्र नहीं मिलती। संभव है देववाचक क्षमाश्रमण ने उदाहरण के रूप में इन गाथाओं का निर्माण स्वयं किया हो। नन्दी को सूत्र कहना सार्थक स्थानांग सूत्र के द्वितीय स्थान प्रथम उद्देशक में श्रुतज्ञान के दो भेद किये गए हैं, जैसे कि अंगप्रविष्टश्रुत और अंगबाह्यश्रुत | अंगबाह्य के भी आवश्यक और आवश्यकव्यतिरिक्त ऐसे दो भेद किये गए हैं I आवश्यकव्यतिरिक्त के भी कालिक तथा उत्कालिक ये दो भेद किये गए हैं। देववचाक क्षमाश्रमण ने स्थानांगसूत्र और व्यवहार सूत्र में आए हुए आगमों के नाम तथा उनके अपने समय में जो आगम विद्यमान थे उनमें जो कालिकश्रुत के अन्तर्गत थे उनका वैसा निर्देश कर दिया और जो उत्कालिक श्रुत थे, उन्हें उत्कालिक निर्दिष्ट कर दिया, जैसे कि चार मूलसूत्रों में से उत्तराध्ययन सूत्र कालिक है और दशवैकालिक, नन्दी, अनुयोगद्वार ये तीनों सूत्र उत्कालिक हैं । इसी प्रकार उपांग आदि सूत्रों के संबंध में भी समझ लेना चाहिए। नन्दी सूत्र में अनुक्रमणिका अंश गौण है, सूत्र अंश ही प्रधान है, अतः इसका सूत्र नाम ही सार्थक है। अक्षर आदि 14 श्रुत का आधार कहां से लिया? नदीसूत्र में श्रुतज्ञान के १४ भेद वर्णित हैं, जैसे कि "से किं तं सुयनाणपरोक्खं ? सुयनाणपरोक्खं चोद्दसविहं पन्नत्तं, तंजहाअक्खरसुयं 1 अणक्खरसुयं 2 सण्णिसुयं 3 असण्णिसुयं 4 सम्मसुयं 5 मिच्छसुयं 6 साइयं 7 अणाइयं 8 सपज्जवसियं 9 अपज्जवसियं 10 गमियं 11 अगमियं 12 अंगपविट्ठ 13 अनंगपविट्ठ14 ।" यह प्रसंग भगवतीसूत्र (पत्र ८०६, सूत्र ७३२) से लिया गया है। वहाँ पर नन्दीसूत्र की अन्तिम गाथा पर्यन्त का निर्देश है। नन्दीसूत्र की अन्तिमगाथा ९० वीं गाथा है । किन्तु श्रुतज्ञान के चतुर्दश भेदों का जो वर्णन विस्तारपूर्वक पहले आ चुका है, उसका पुनः संक्षेप से ८६ वीं गाथा में वर्णन किया गया है, जैसे कि "अक्खर, सन्नी, सम्म, साइयं खलु सपज्जवसियं च । गमियं अंगपविट्ठ, सत्त वि एए सपडिवक्खा । । " अन्त में निष्कर्ष यह निकला कि अक्षरश्रुत अनक्षरश्रुत आदि विषय भी आगमबाह्य नहीं हैं। भारत - रामायण आदि का उल्लेख श्रमण भगवान महावीर स्वामी के समय में गणधरों ने सूत्ररूप से द्वादशांगी की रचना की। उनके समय में भारत, रामायण आदि ग्रन्थ विद्यमान थे, अत: उनका नाम आना असंगत नहीं है । पश्चात् देववाचक क्षमाश्रमण ने भारत और रामायण के साथ अन्य शास्त्रों का भी उल्लेख अपने नन्दीसूत्र में कर दिया, जैसे कि कोडिल्ल (कौटिल्य चाणक्य) आदि । (नन्दीसूत्र, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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