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उत्तराध्ययनसूत्र में विनय का विवेचन -
3571 न पक्खओ न पुरओ नेव किच्चाण पिट्ठओ। न जुजे उरुणा उरुं. सयणे नो पडिस्सुणे।। उत्तरा. 1.18 ।। गुरुजन के आगे-पीछे, ना बाजू में अड़कर बैठे।
ना शय्या पर से उत्तर दें, ना जांघ सटा कर ही बैठे।। अर्थात् शिष्य को चाहिए कि वह गुरु से कन्धा भिड़ाकर नहीं बैठे, उनके आगे नहीं बैठे, उनके पीछे अविनीतता से नहीं बैठे। इतना निकट भी नहीं बैठे कि उसके घुटने से गुरु का घुटना स्पर्श हो जाय। शय्या पर लेटे हुए उत्तर नहीं दे।
__ यह गुरु शिष्य की बात है। शिष्य गुरु से ज्ञान सीखता है। ज्ञान मिलता है विनयवान शिष्य को। अनेक बातें हैं विनय की। ज्ञान प्राप्त करते समय गुरु के सामने सीने पर हाथ बांध कर नहीं बैठे, पैर पर पैर रखकर नहीं बैठे। यह अभिमानसूचक मुद्रा है, अंग से अंग स्पर्श करके नहीं बैठे- यह अविनय है। मुनि ब्रह्मचारी है, उसने तीन करण, तीन योग से ब्रह्मचर्यव्रत धारण कर रखा है। ब्रह्मचारियों को अपने अंग का कोई हिस्सा दूसरे के अंग से भिड़ा कर वैसे भी नहीं बैठना चाहिए।
विनय के साथ बैठना शिष्टाचार है। बैठना ऐसा भी होता है, जिससे विकार वृद्धि हो। बैठने का एक ढंग ऐसा भी हो सकता है जिससे राग बढ़े। बैठने का ढंग कभी-कभी शरीर की चंचलता को बढ़ाने वाला भी हो सकता है। बैठने का ढंग व्रत-नियम, चारित्र से गिराने वाला भी बन सकता है। भगवान भी कहते हैं
णेव पल्हत्थियं कुज्जा, पक्खपिंड च संजए। पाए पसारिए वावि, ण चिढे गुरूणतिए।। उत्तरा. 1.19 ।। बैठे नहीं बांधकर पलथी, पक्षपिण्ड से भी न कहीं।
गुरुजन के सम्मुख अविनय से, मुनि पाद-प्रसारण करे नहीं।। जहाँ गुरुजन या बड़े लोग विराजमान हों तो उनके सम्मुख पांव पर पांव चढाकर नहीं बैठे, घुटने छाती के लगाकर नहीं बैठे, पांव पसार कर नहीं बैठे। प्रश्न कैसे करें गुरु से?
गुरुजनों से या अपनों से बड़े हों उनसे कभी कुछ प्रश्न पूछने का प्रसंग उपस्थित हो तो अपने आसन पर बैठे-बैठे ही प्रश्न नहीं करें। शिक्षा
और उपदेश का उद्देश्य होता है, संस्कार धारण करना। जिज्ञासु शिष्य को प्रश्न करना है तो गुरु के समीप जाकर खड़े होकर विनयपूर्वक प्रश्न करे।
__ जीवन में जितना विनय होगा, ज्ञान देने वाला गुरु का मन उतना ही ज्ञान-दान के लिए उमडेगा। गलियार घोडे और जातिवान अश्व में अन्तर होता है। वही स्थिति ज्ञानार्जन करने वाले ज्ञानेच्छुओं की है। प्रवचन के समय कोई आगे आकर तो बैठ जाएगा, पर गर्दन झुकाकर नींद लेने लगेगा। यदि
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