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________________ प्रज्ञापना सूत्र : एक समीक्षा 283] ६. वायगवरवंसाओ तेवीसइमेणं धीरपुरिसेणं, दुद्धरधरेण मुणिणा पुव्वसुयसमिद्धबुद्धीणं। सूयसागरा विणेऊण जेण सुयरयणमुत्तमं दिण्णं, सीसगणस्स भगवओ तस्स नमो अज्जसामस्स।। ७. जैनागम ग्रंथमाला-पण्णवणा सुत्तं। ८. जैन धर्म का मौलिक इतिहास ९. नियुक्तियाँ जो देवर्द्धिगणि के पूर्ववर्ती गिनी भी जाती हैं, उनमे नंदी का उल्लेख है "नंदी अणुओगदारं विहिवदुग्घाइयं च नाउणं'। नियुक्ति संग्रह आव. नि. गाथा १०२६ सत्तं नंदी माइयं-वही गाथा सं.१३६५ द्वादशार नयचक्र की सिंहगणि क्षमाश्रमण की टीका में वर्तमान नंदी से भिन्न पाठ हैं। १०. प्रज्ञापना की मलयगिरि टीका व अनेक ग्रंथों में। ११. समवायांग समवाय ८४ तथा उत्तराध्ययन अ. २८ अन्यथा ह्यनिबद्धमंगोपांगत: समुद्रप्रतरणवद् दुरध्यवसेयं स्यात्। -तत्त्वार्थ भाष्य १२.तत्र सूरप्रज्ञप्ति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, पंचषष्टांगयोरुपांगभूते इतरे (चंद्रप्रज्ञप्ति) तु प्रकीर्णरूपे इति। १३. सुखबोधा समाचारी १११२ ई. (जैन साहित्य का वृहद् इतिहास) १४. सुखबोधा समाचारी वायणाविहि आदि (जैन साहित्य का वृहद् इतिहास) १५. कहीं मात्र 'जाव' शब्द से, कहीं 'जाव' व 'जहा पण्णवणाए' सूत्र निर्देश के साथ, कहीं 'जहा वक्कंतीए, ओहीपयं भणियव्वं' आदि पद के नाम देते हुए, कहीं 'जहा पण्णवणाए ठाणपए' सूत्र के साथ पद का नाम देते हुए आदि तरीकों से संकेत किया गया है। १६. ववगयजरमरणभए सिद्धे अभिवंदिऊण तिविहेण। वंदामि जिणवरिंद तेलोक्कगुरु-महावीरं।। १७. जीव अजीव तत्त्व- श्री कन्हैयालाल लोढ़ा -पाली बाजार, महामंदिर, जोधपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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