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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी म.सा. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में सात वक्षस्कारों के अन्तर्गत इतिहास एवं भूगोल संबंधी वर्णन उपलब्ध है। इसमें जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र, कालचक्र, ऋषभदेव, विनीता नगरी, भरत चक्रवर्ती, गंगानदी, पर्वत, विजय, दिक्कुमारी, जम्बूद्वीप के खण्ड, चन्द्रादि नक्षत्र इत्यादि की चर्चा हुई है। आचार्य श्री देवेन्द्रमुनि जी के प्रस्तुत आलेख में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के प्रमुख अंशों पर सुन्दर परिचय उपलब्ध है। यह आलेख आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर से प्रकाशित जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की प्रस्तावना से चयन कर संकलित है। -सम्पादक नन्दीसूत्र में अंगबाह्य आगमों की सूची में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का कालिक श्रुत की सूची में आठवाँ स्थान है। जब आगम साहित्य का अंग, उपांग, मूल और छेद रूप में वर्गीकरण हुआ तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का उपांग में पाँचवाँ स्थान रहा और इसे भगवती ( व्याख्याप्रज्ञप्ति) सूत्र का उपांग माना गया है । भगवती सूत्र के साथ प्रस्तुत उपांग का क्या संबंध है? इसे किस कारण भगवती का उपांग कहा गया है? यह शोधार्थियों के लिये चिन्तनीय प्रश्न है 1 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में एक अध्ययन है और सात वक्षस्कार है। यह आगम पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध इन दो भागों में विभक्त है । पूर्वार्द्ध में चार वक्षस्कार हैं तो उत्तरार्द्ध में तीन वक्षस्कार हैं । वक्षस्कार शब्द यहाँ प्रकरण के अर्थ में व्यवहृत हुआ है, पर वस्तुतः जम्बूद्वीप में इस नाम के प्रमुख पर्वत हैं, जिनका जैन भूगोल में अनेक दृष्टियों से महत्त्व प्रतिपादित है । जम्बूद्वीप से संबद्ध विवेचन के संदर्भ में ग्रन्थकार प्रकरण का अवबोध कराने के लिए ही वक्षस्कार शब्द का प्रयोग करते हैं। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के मूल पाठ का श्लोक प्रमाण ४१४६ है । १७८ गद्य सूत्र हैं और ५२ पद्य सूत्र हैं। जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग दूसरे में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को छठा उपांग लिखा है। जब आगमों का वर्गीकरण अनुयोग की दृष्टि से किया गया तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को गणितानुयोग में सम्मिलित किया गया, पर गणितानुयोग के साथ ही उसमें धर्मकथानुयोग आदि भी हैं। प्रथम वास्कार मिथिला : एक परिचय - जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का प्रारम्भ मिथिला नगरी के वर्णन से हुआ है, जहाँ पर श्रमण भगवान महावीर अपने अन्तेवासियों के साथ पधारे हुए हैं। उस समय वहाँ का अधिपति राजा जितशत्रु था । बृहत्कल्पभाष्य' में साढ़े पच्चीस आर्य क्षेत्रों का वर्णन है। उसमें मिथिला का वर्णन है। मिथिला विदेह जनपद की राजधानी थी। विदेह राज्य की सीमा उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पश्चिम में गंडकी और पूर्व में महीनदी तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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