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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक बताये हैं। अन्त में १६ प्रकार के वचनों का उल्लेख है। 12. बारहवें शरीर पद में पांच शरीरों की अपेक्षा चौबीस दण्डकों में से कितने
शरीर हैं? तथा इन सभी में बुद्ध, मुक्त कितने-कितने और कौनसे
शरीर होते हैं? आदि का वर्णन है। 13. तेरहवें परिणामपद में जीव के गति आदि दस परिणामों और अजीव के
बंधन आदि दस परिणामों का वर्णन है। 14. चौदहवें कषायपद में क्रोधादि चार कषाय, उनकी प्रतिष्ठा, उत्पत्ति, प्रभेद
तथा उनके द्वारा कर्मप्रकृतियों के चयोपचय एवं बन्ध की प्ररूपणा की
गई है। 15. पन्द्रहवें इन्द्रियपद में दो उद्देशक हैं। प्रथम में पांचों इन्द्रियों के संस्थान,
बाहल्य आदि २४ द्वारों से विचारणा की है। दूसरे में इन्द्रियोपचय, इन्द्रियनिर्वर्तना, निर्वर्तनासमय, इन्द्रियलब्धि, इन्द्रिय-उपयोग आदि तथा इन्द्रियों की अवगाहना, अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा आदि १२ द्वारों से
चर्चा की गई है। अन्त में इन्द्रियों के भेद-प्रभेद की चर्चा है। 16. सोलहवें प्रयोगपद में सत्यमन प्रयोग आदि १५ प्रकार के प्रयोगों का
२४ दण्डकवर्ती जीवों की अपेक्षा विचार किया गया है। अन्त में ५
प्रकार के गतिप्रपात का चिन्तन है। 17. सतरहवें लेश्यापद में ६ उद्देशक हैं। प्रथम में समकर्म, समवर्ण,
समलेश्या, समवेदना, समक्रिया और समआयु का अधिकार है। दूसरे में कृष्णादि ६ लेश्याओं के आश्रय से जीवों का निरूपण किया है। तीसरे में लेश्या सम्बन्धी प्रश्नोत्तर हैं। चतुर्थ में परिणाम, रस, वर्ण, गन्ध, अवगाढ़, वर्गणा, स्थान, अल्पबहुत्व आदि का अधिकार है। पांचवे में
लेश्याओं के परिणाम हैं। छठे में जीवों की लेश्याओं का वर्णन है। 18. अठारहवें पद का नाम कायस्थिति है। जीव-अजीव दोनों अपनी अपनी
- पर्याय में कितने काल तक रहते हैं, इसका वर्णन है। 19. उन्नीसवें सम्यक्त्व पद में २४ दण्डकवर्ती जीवों में क्रमश: सम्यग्दृष्टि,
मिथ्यादृष्टि व मिश्रदृष्टि का विचार किया है। 20. बीसवें अन्तक्रियापद में कौनसा जीव अन्तक्रिया कर सकता है और
क्यों? का वर्णन है। अन्तक्रिया शब्द वर्तमान भव का अन्त करके नवीन भव प्राप्ति के अर्थ में भी हुआ है, जिसका २४ दण्डक के जीवों के बारे में विचार किया गया है। कर्मों की अन्तरूप अन्तक्रिया तो एकमात्र
मनुष्य ही कर सकते हैं, इसका ६ द्वारों के माध्यम से वर्णन है। 21. इक्कीसवें अवगाहना संस्थान पद में शरीर के भेद, संस्थान, प्रमाण,
पुद्गलों के चय, पारस्परिक संबंध उनके द्रव्य, प्रदेश तथा अवगाहना के
अल्पबहुत्व की प्ररूपणा है। 22. बावीसवें क्रियापद में कायिकी आदि ८ क्रियाओं का तथा इनके भेटों की
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